फिल्‍म रिव्‍यू : जिंदगी के सफर की कविता है 'मसान'

फिल्‍म रिव्‍यू : जिंदगी के सफर की कविता है 'मसान'

मुंबई:

कान फ़िल्म महोत्सव में दो अवॉर्ड जीत चुकी फ़िल्म 'मसान' रिलीज़ हो चुकी है। 'मसान' को डायरेक्ट किया है नीरज घेवण ने। फ़िल्म में मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं संजय मिश्रा, ऋचा चड्ढा, विकी कौशल, श्वेता त्रिपाठी, पंकज त्रिपाठी और विनीत कुमार ने।

'मसान' की कहानी बनारस के घाटों पर रची-बसी है। यहां बैकड्रॉप में है 'मसान', जहां पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है।

फ़िल्म में दो कहानियां साथ-साथ चलती हैं
पहली कहानी एक निम्न जाति के दीपक की है, जिसे एक उच्च जाति की लड़की से इश्क़ हो जाता है। दूसरी कहानी है देवी की जो एक ऐसे जाल में फंसती है, जिससे वो चाहकर भी निकल नहीं पाती। देवी के क़िरदार में हैं ऋचा चड्ढा और उनके पिता के क़िरदार में हैं संजय मिश्रा।

बात ख़ूबियों और ख़ामियों की
लेखक वरुण ग्रोवर और निर्देशक नीरज घेवण की फ़िल्म का कैमरा वो दिखाता है जो शायद ही किसी हिंदी फ़िल्म की कहानी में दिखाया गया हो। 'मसान' जितनी आपको दिखती है उसकी गहराई उससे ज़्यादा है। फ़िल्म में कुछ ऐसी सच्चाई दिखाई गई है जिसे शायद ही आम लोग जानते हों। फ़िल्म में निर्देशक इशारों-इशारों में बहुत कुछ कह जाते हैं। कई सीन्स जीवन और मृत्यु के संबंध को बड़ी ही खूबसूरती से बयां कर जाते हैं। मसलन एक सीन, जहां फ़िल्म का मुख्य क़िरदार चिता की लकड़ी की आग से अपना चूल्हा जलाता है, या फिर वो सीन जिसमें इलाहाबाद के संगम को कहानी में पिरोया गया।

ये फ़िल्म आपको एक भावनात्मक सफ़र पर भी ले जाती है और काव्यगत ख़ूबसूरती आपको मंत्रमुग्ध भी करती है। फ़िल्म के सभी एक्टर्स का सधा हुआ ख़ूबसूरत अभिनय है। पर यहां संजय मिश्रा, ऋचा चड्ढा और विकी कौशल की तारीफ़ ज़रूरी है। ये तीनों अपने-अपने क़िरदारों को बड़ी खूबसूरती से पर्दे पर निभाते हैं। कई सीन में बिना कुछ कहे ये बहुत कुछ कह जाते हैं।

संजय मिश्रा कमाल के एक्टर हैं। आपने उन्हें कॉमेडी करते देखा होगा पर उन्हें संजीदा क़िरदार में देखना है तो 'मसान' देखें।

फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफ़ी क़िरदारों और बनारस की स्थिति दोनों की वास्तविकताओं को बखूबी दर्शाती है। फ़िल्म का संगीत आपको उसी दुनिया में रखता है जो आप देख रहे हैं फिर चाहे वो शायरी हो या दुष्यंत कुमार की कविता। फ़िल्म कहीं भी सुर से नहीं उतरती।

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बस एक बात जो खली, वो थी एक साथ चलती दो कहानियां क्योंकि फ़िल्म में उन्हें मंज़िल एक साथ कहीं मिलती नहीं दिखी। ये दोनों फ़िल्म में मिलती तो हैं पर एक-दूसरे से जुदा दिखती हैं। ख़ैर, मसान एक ऐसी फ़िल्म है जो सिनेमाघर से निकलने के बाद भी आपके साथ रहेगी। मेरी ओर से फ़िल्म को 4 स्टार्स।