यह ख़बर 14 नवंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

दिल नहीं जीत पाई 'किल दिल’

'किल दिल' की स्टारकास्ट

मुंबई:

फिल्म 'किल दिल' को डायरेक्ट किया है, शाद अली ने। शाद इससे पहले 'साथिया', 'बंटी और बबली' और 'झूम बराबर झूम' जैसी फिल्में बना चुके हैं।

'झूम बराबर झूम देख' दर्शक झूम नहीं पाए थे और मुझे लगता है 'किल दिल' से भी दर्शक दिल नहीं लगा पाएंगे। फिल्म की कहानी देव और टुटू की है (रणबीर सिंह और अली), जो भइया जी के दो अहम खिलाड़ी हैं।

भइया जी लोगों को मारने की सुपारी लेते हैं, जिसे अंजाम तक पहुंचाते हैं, टुटू और देव। यहां भइया जी के किरदार में दिखेंगे गोविंदा, जिनकी करीब 4 साल बाद बड़े पर्दे पर वापसी हो रही है।

कहानी में मोड़ तब आता है, जब देव दिशा यानी परिणीति को दिल दे बैठता है और दिल के हाथों मजबूर होकर देव लोगों को न मारने का मन बना लेता है, पर भइया जी को दिल का मामला समझ नहीं आता।

'किल और दिल' के बाकी खेल को जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। मुझे लगता है कि शायद गुंडे के बाद रणवीर, शाद अली और निर्माता को कुछ वक्त का ब्रेक लेना चाहिए था। इस फिल्म की सबसे बड़ी कमी है, इसकी कहानी, जो एक लाइन में ही खत्म हो जाती है। कहानी में नयापन नहीं है। एक लाइन की कहानी को खींचा गया है, जिसके कारण फिल्म बेअसर लगी। ये सभी जानते हैं कि गोविंदा अच्छे डांसर और कमाल के एक्टर हैं, पर 'किल दिल' में मुझे गोविंदा का किरदार अधपका लगा।

दर्शक सोचने पर शायद मजबूर हो सकते हैं कि इनका किरदार आखिर है क्या और ऐसा क्यों है? रणवीर सिंह की ऊर्जा और अभिनय में ईमानदारी फिल्म की कई कमियां छुपाती हैं। अली और परिणीति बस फिल्म में हैं और ठीक हैं।

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जो अच्छा लगा वह है, फिल्म का संगीत, जिसका श्रेय जाता है, शंकर एहसान लॉय के साथ ही गुलज़ार साहब की लिखावट को। उनकी आवाज में शायरी लुभाती है, पर अफसोस यह फिल्म की कहानी में पिरोई नहीं गई है। मेरी उम्मीदों पर 'किल दिल' खरी नहीं उतर पाई। 2 स्टार के साथ आधा और स्टार, सिर्फ अच्छे संगीत के लिए, यानी 'किल दिल' को मेरी ओर से 2.5 स्टार्स।