यह ख़बर 29 अगस्त, 2012 को प्रकाशित हुई थी

गांधी परिवार के लिए मेरे मन में कोई गुस्सा नहीं है : अमिताभ बच्चन

खास बातें

  • 'सुपरस्टार ऑफ द मिलेनियम' कहे जाने वाले अभिनेता अमिताभ ने दुख बांटते हुए बताया कि लोग मुझे देशद्रोही तक कहते थे, लेकिन मेरे पास मेरा परिवार था, इसलिए मैं सब झेल गया...
नई दिल्ली:

फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन ने कहा है कि गांधी परिवार के प्रति उनकी भावनाओं में कोई परिवर्तन नहीं आया है तथा उनके मन में ‘कोई क्रोध, कोई आक्रोश’ नहीं है। अमिताभ और गांधी परिवार के सम्बंध गत कुछ वर्षों के दौरान तनावपूर्ण रहे हैं।

अमिताभ ने एक समाचार चैनल से कहा, ‘‘यह पहुंच का सवाल नहीं है। जब तक आप समझते हैं, मेरे लिए यह आवश्यक नहीं कि मैं प्रत्येक दिन आपसे मुलाकात करूं और आपकों बताऊं कि मैं आपका मित्र हूं। हमने साथ समय बिताया है। सम्बंधों में ये चीजें मायने नहीं रखतीं।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या वह अभी भी गांधी परिवार के मित्र हैं, अमिताभ ने कहा, ‘निश्चित रूप से, मेरे मन में कोई बदलाव नहीं आया है। मैं उनका हमेशा सम्मान करूंगा। हम कुछ मौकों पर सार्वजनिक कार्यक्रमों के दौरान मिलते हैं। कोई क्रोध, कोई आक्रोश नहीं है। हम अभी तक बहुत सामान्य हैं।’

69 वर्षीय अमिताभ अपने पुराने मित्र राजीव गांधी के सहयोग से वर्ष 1984 में राजनीति में आए। वह सफलतापूर्वक इलाहाबाद लोकसभा सीट से चुनाव जीते। उन्होंने तीन वर्ष बाद उस समय त्यागपत्र दे दिया जब उनके परिवार को बोफोर्स घोटाले में खींचा गया।

बहरहाल अमिताभ इससे इनकार करते हैं कि घोटाले की वजह से दोनों परिवारों के बीच दूरियां आ गईं। वह बोफोर्स विवाद के बाद के दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि उन दिनों सड़कों पर चलना मुश्किल हो गया था।

उन्होंने कहा, ‘जब मैं सड़क पर चलता था या शूटिंग के लिए जाता था लोग मेरे लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करते थे। वे मुझे देशद्रोही कहते। हमने वह सभी झेला। मैं वह सब इसलिए झेल सका क्योंकि मेरे पास एक ऐसा परिवार था जो मेरे साथ खड़ा था।’

उन्होंने कहा, ‘हम अंतत: आरोपों से तब बाहर निकल पाए जब रॉयल कोर्ट ऑफ लंदन ने हमारे पक्ष में फैसला सुनाया। इसके साथ ही हम पर कुछ तीखे आरोप लगाने वाले कुछ लोगों ने हमसे अदालत के बाहर मुलाकात की। उन्होंने कहा कि यह अध्याय समाप्त हुआ और चलिए बाहर में समझौता कर लेते हैं तथा हमने अदालत के बाहर समझौता कर लिया।’
बहरहाल अमिताभ कड़वे दिनों को पीछे छोड़ना चाहते हैं तथा वह यह जानने को इच्छुक भी नहीं हैं कि घोटाले में उनका नाम किसने खींचा।

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उन्होंने कहा, ‘इतिहास की पुस्तकों से कुछ पंक्तियां हटाने से अधिक कुछ बदलने वाला नहीं है। क्या होगा यदि आपको पता भी चल जाए? आप कुछ नहीं कर सकते। इसका प्रभाव केवल मेरे जीवन पर नहीं पड़ा। मैं एक सामान्य मनुष्य हूं। इसने पूरे देश के राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया।’