विनोद खन्ना के बिना किसी भी अन्य सुपरस्टार का स्टारडम वास्तव में सुपरस्टारडम बन पाता, इसमें संदेह है...
बॉलीवुड में स्टार होते हैं, सुपरस्टार होते हैं, और सभी का युग भी होता है... विनोद खन्ना ऐसे एक स्टार रहे हैं, जिन्हें कभी सुपरस्टार नहीं पुकारा गया, जिनका कभी कोई अपना युग नहीं रहा, लेकिन उनके फिल्मों में पदार्पण के बाद कोई भी सुपरस्टार ऐसा नहीं रहा, जिसकी कामयाबी में विनोद खन्ना का योगदान न रहा हो...
'मुकद्दर का सिकंदर' को अमिताभ बच्चन की फिल्म के रूप में सभी याद करते हैं, लेकिन क्या आप 'वकील साहब' और उनकी दोस्ती के बिना 'सिकंदर' के दर्शकों के मन की गहराइयों में उतर जाने की कल्पना कर सकते हैं... इसी तरह 'अमर अकबर एंथनी' का 'एंथनी' भी 'अमर' के बिना उतना पसंद आ ही नहीं सकता था...
'मेरे अपने' के 'छेनू' यानी शत्रुघ्न सिन्हा के सामने 'श्याम' के रूप में खड़े विनोद खन्ना भुलाए नहीं भूलते, और इसी तरह 'मेरा गांव मेरा देश', 'कच्चे धागे', 'बंटवारा', 'क्षत्रिय' में निभाए उनके किरदार भी हमेशा याद रहने वाले हैं... देश के सबसे खूबसूरत और 'रीयल माचो' स्टार कहे जाने वाले इस 'पंजाबी मर्द' ने इन शानदार फिल्मों के अलावा 'हेराफेरी', 'परवरिश' और 'खून पसीना' में अमिताभ बच्चन के साथ, 'कुर्बानी' और 'दयावान' जैसी सुपरहिट फिल्मों में फिरोज़ खान के साथ, 'चांदनी' में ऋषि कपूर के साथ और 'द बर्निंग ट्रेन' में अपने समय के कई स्टारों के साथ काम किया, लेकिन हर फिल्म में उनके किरदार किसी से भी किसी कदर कमतर नहीं थे, और आज तक याद हैं...
वर्ष 1971 में विवाह, और फिर दो पुत्रों का पिता बन जाने के बाद 1975 में आचार्य रजनीश की 'शरण' में चले जाने, लगभग 10 साल बाद लौटकर बॉलीवुड में आने, दूसरा विवाह करने, राजनीति में प्रवेश करने और फिर राजनीति के साथ-साथ फिल्मों में काम करते रहने वाले विनोद खन्ना को उनकी फिल्म 'हाथ की सफाई' के लिए सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था, और उसके बाद उन्हें 1999 में लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड मिला... सच है कि अगर पुरस्कारों की बात करें, तो उनके काम को वैसी सराहना कभी नहीं मिली, जिसके वह हकदार थे, लेकिन उनके बिना किसी सुपरस्टार का स्टारडम वास्तव में सुपरस्टारडम बन पाता, इसमें संदेह है...