यह ख़बर 18 जनवरी, 2013 को प्रकाशित हुई थी

'इंकार' : यौन शोषण के मुद्दे को उभारती एक फिल्म

खास बातें

  • सुधीर मिश्रा ने अच्छा विषय चुना है, जो बताता है कि यौन शोषण की सीमा कहां से शुरू होती है और कहां खत्म। फ़िल्म ऐसे सवाल उठाती है, जिसके बारे में आप गहराई तक सोचने पर मजबूर हो जाएंगे।
मुंबई:

सुधीर मिश्रा की फिल्म 'इंकार' में मुख्य भूमिका में हैं अर्जुन रामपाल, जो एक एडवरटाइजिंग एजेंसी के सीईओ का रोल निभा रहे हैं और फिल्म में उनके किरदार का नाम है राहुल। दूसरी तरफ हैं चित्रांगदा सिंह, जिनके किरदार का नाम है माया और वह अर्जुन की ही कंपनी में काम करती हैं।

राहुल, माया को आगे बढ़ाने के लिए काफी प्रोत्साहन देते हैं और माया को हर वो हुनर सिखाते हैं, जो एक एडवरटाइजिंग एजेंसी के लिए जरूरी होता है। इसी दौरान दोनों के बीच एक रिश्ता पनपता है, लेकिन जैसे-जैसे माया का कंपनी में ओहदा बढ़ता जाता है, वह राहुल को भूलने लगती है। वह यह भी भूल जाती है कि उनकी तरक्की राहुल की ही देन है। इसके चलते दोनों में होते हैं कई झगड़े और माया, राहुल पर यौन शोषण का आरोप लगा देती हैं।

इस मामले की छानबीन करने के लिए बुलाया जाता है मिसेज कामदार यानी दिप्ती नवल को। अब सवाल यह है कि माया का आरोप सही है या ग़लत। इसका जवाब आपको फ़िल्म देखकर ही मिलेगा…लेकिन मैं इतना जरूर कहूंगा कि सुधीर मिश्रा ने बहुत ही अच्छा विषय चुना है, जो बताता है कि यौन शोषण की सीमा कहां से शुरू होती है और कहां खत्म। वहीं, फिल्म की बात करें तो विषय सही ढंग से निकलकर पर्दे पर नहीं दिखता। फ़िल्म में छानबीन ज्यादा नज़र आती है। बार-बार फ्लैशबैक में जाना पड़ता है, जो दर्शकों का कुछ हद तक मनोरंजन नहीं कर पाता।

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अर्जुन का अभिनय कहीं-कहीं बेहतरीन लगता है, पर चित्रांगदा अपनी एक्टिंग से खास प्रभाव नहीं छोड़ पातीं। फिल्म का संगीत कहानी के साथ नहीं जाता, जिसकी वजह से फ़िल्म की कहानी के साथ आप भावनात्मक सफ़र नहीं तय कर पाते, बल्कि दर्शक बनकर मुद्दे की जड़ तक पहुंचने का इंतज़ार करते रहते हैं और इंतज़ार किसी खास अंजाम तक नहीं पहुंचाता। लेकिन मैं कहूंगा कि सुधीर मिश्रा ने एक ईमानदार कोशिश की है। फ़िल्म कुछ ऐसे सवाल उठाती है, जिसके बारे में आप गहराई तक सोचने पर मजबूर हो जाएंगे। फ़िल्म के लिए मेरी रेटिंग है- 2.5 स्टार...