फिल्म रिव्यू : आप भी कर पाएंगे 'तीन' की कहानी के साथ सफर

फिल्म रिव्यू : आप भी कर पाएंगे 'तीन' की कहानी के साथ सफर

मुंबई:

इस हफ्ते रिलीज़ हुई है 'तीन', जिसका निर्देशन किया है रिभु दासगुप्ता ने और इसके कई निर्माताओं में से एक हैं सुजॉय घोष... स्टारकास्ट की बात करें तो फिल्म में हैं अमिताभ बच्चन, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, विद्या बालन और सब्यसाची चक्रवर्ती... कहानी के बारे में ज़्यादा बात नहीं करूंगा, क्योंकि फिल्म में सस्पेंस भी है, जो खुल सकता है, और मैं आपका मज़ा ख़राब नहीं करना चाहता... सो, सिर्फ इतना बताऊंगा कि यह कहानी है जॉन विश्वास की, जो आठ साल पहले हुए अपनी पोती के अपहरण को आज भी नहीं भूल पाया है और आज भी उसे तलाश है उस अपराधी की, जिसने अपहरण किया... फिल्म में जॉन विश्वास के किरदार में हैं अमिताभ बच्चन, फादर मार्टिन के किरदार में नवाज़, विद्या बालन निभा रही हैं इंस्पेक्टर सरिता का किरदार और मनोहर बने हैं सब्यसाची चक्रवर्ती...

फिल्म की ख़ामियां और ख़ूबियां बताने से पहले कुछ ख़ास बातें... फिल्म की रिलीज़ से दो दिन पहले, यानी बुधवार को फिल्म आलोचकों को दिखा दी गई और अगले दिन बृहस्पतिवार को निर्देशक रिभु और अभिनेता अमिताभ बच्चन एक छोटी-सी सभा में पत्रकार और आलोचकों से मुखातिब हुए, जिसमें अमिताभ ने कहा कि सभा के पीछे उनकी मंशा सिर्फ यह है कि उन्हें और फिल्मकारों को उनकी ख़ामियां पता लग सकें, ताकि भविष्य में वे इन्हें सुधार सकें... साथ ही वे आलोचकों का नज़रिया भी जान सकें कि वे किसी फिल्म को किस तरह आंकते हैं, ताकि उसकी मदद से वे भविष्य में अपने काम में सुधार ला सकें...

सभा में मैं भी शामिल था... मैं तो इसे एक निर्भीक पहल कहूंगा, भले ही कुछ लोग इसे प्रचार का नया तरीका कहें, क्योंकि फिल्म दिखाने के बाद कोई भी अभिनेता या फिल्मकार अपनी आलोचनाओं का सामना नहीं करना चाहता और ख़ामियां तो बिल्कुल नहीं सुनना चाहता, लेकिन यहां बिग बी और निर्देशक रिभु ने तारीफ़ें भी सुनीं और ख़ामियां भी, और कुछ बातें जो लोगों को समझ नहीं आईं, उन्हे समझाया भी... तो पहले तो टीम के इस कदम के लिए उन्हें बधाई...

अब मैं बात करूंगा ख़ामियों की, उन खामियों की, जो इस सभा में सामने रखी गईं... इनमें से कुछ के साथ मैं सहमत हूं, और कुछ के साथ नहीं... तो ये है उस सभा में सामने रखी गई ख़ामियां...

बतौर थ्रिलर, कुछ लोगों को फिल्म की गति धीमी लगी...कुछ लोगों को फिल्म में अमिताभ बच्चन और नवाज़ का रिश्ता समझ नहीं आया, या उस पर एक सवालिया निशान था... कुछ को लगा, अमिताभ बच्चन का किरदार चाहता तो कहानी को पहले ही अंजाम तक पहुंचा सकता था और फिल्म में इतना तामझाम सिर्फ फिल्म को गढ़ने के लिए किया गया या सुविधानुसार किया गया... कुछ ने कहा, फिल्म में जो दोषी है, उसे दूसरे अपहरण के बाद पहले ही अनुमान हो जाना चाहिए था, और अपना गुनाह कबूल कर लेना चाहिए था...कुछ का मानना था कि वे बतौर दर्शक फिल्म में लिप्त नहीं हो पाए...

जिन्होंने फिल्म नहीं देखी, उन्हें ये बाते समझ नहीं आएंगी, और वैसे मैं भी खुद बहुत बचकर बोल रहा हूं कि कहीं सस्पेंस न खुल जाए... खैर ये थी वे ख़ामियां जिनका ज़िक्र सभा में हुआ, लेकिन इन सभी बातों से मैं इत्तेफ़ाक नहीं रखता, सिवाय एक के... वह है - अमिताभ बच्चन का किरदार चाहता तो कहानी को पहले ही अंजाम तक पहुंचा सकता था, या पुलिस की मदद ले सकता था... इसके अलावा एक और ख़ामी जो मुझे लगी - फिल्म का किरदार मनोहर जब-जब फिरौती के लिए फोन सुनता है, तो वह आवाज़ क्यों नहीं पहचान पाता...

तो मेरे हिसाब से ये थी ख़ामियां और अब बात ख़ूबियों की, जिनमें पहले वे, जिनका ज़िक्र सभा में हुआ...फिल्म में अमिताभ बच्चन का काम लोगों को काफी पसंद आया, और 'हटके' लगा। फिल्म की एडिटिंग कमाल की लगी। फिल्म के गानों के बोल और संगीत काफी अच्छा लगा। फिल्म का कहानी कहने का तरीका, यानी नैरेटिव कमाल का है। नवाज़ का काम लोगों को 'हटके' लगा।

मेरे हिसाब से ये सभी ख़ूबियां हैं फिल्म में, लेकिन मैं कुछ और जोड़ता हूं... मुझे फिल्म धीमी नहीं लगी और साथ ही मैं फिल्म की कहानी के साथ सफ़र कर रहा था और जॉन विश्‍वास के साथ मैं भी अपराधी की तलाश में था... फिल्म का स्क्रीनप्ले काबिल-ए-तारीफ़ है और स्क्रिप्ट भी... फिल्म की सिनेमोटोग्राफ़ी फिल्म के मिज़ाज को और उम्दा करती है और साथ ही बैकग्राउंड स्कोर फिल्म के इमोशन को उजागर करता है... और साथ ही रिभु का नियंत्रित निर्देशन...

तो कुल मिलाकर ये सभी ख़ूबियां हैं फिल्म में और यकीनन एक अच्छी फिल्म है, तो जाइए और फिल्म देखिए... मेरी तरफ से इस फिल्म को 3.5 स्टार...


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