कोरोना के बाद नया खतरा ‘बोन डेथ’, खून सप्लाई रुकने से गलने-सड़ने लगती हैं हड्डियां

ये एक ऐसी मेडिकल कंडिशन है, जिसमें इंसान की हड्डियां कमजोर होने और फिर सड़ने-गलने लगती हैं. इस बीमारी का मुख्य कारण भी स्टेरॉयड है.

कोरोना के बाद नया खतरा ‘बोन डेथ’, खून सप्लाई रुकने से गलने-सड़ने लगती हैं हड्डियां

प्रतीकात्मक तस्वीर.

मुंबई:

ब्लैक फंगस के बाद अब एक और नई समस्या खड़ी हो गई है. दरअसल, कोविड से ठीक होने के बाद मरीजों में ‘एवैस्कुलर नेक्रोसिस' यानी ‘बोन डेथ' के मामले देखने को मिल रहे हैं. ये एक ऐसी मेडिकल कंडिशन है, जिसमें इंसान की हड्डियां कमजोर होने और फिर सड़ने-गलने लगती हैं. इस बीमारी का मुख्य कारण भी स्टेरॉयड है. जीवन रक्षक स्टेरोईड अब कोविड से ठीक हुए कई मरीजों में ऐसी दिक्कतें पैदा कर रहा है.

अब पोस्ट कोविड मरीज़, ‘एवैस्कुलर नेक्रोसिस' यानी ‘बोन डेथ' नाम की बीमारी के साथ मुंबई के अस्पतालों में पहुंच रहे हैं,. एवैस्कुलर नेक्रोसिस एक ऐसी बीमारी है जिसमें हड्डियों तक पहुंचने वाले खून की सप्लाई स्थायी या अस्थायी रूप से बंद हो जाती है. जिसके कारण हड्डियों के टिशू मर जाते हैं और हड्डियां कमज़ोर पड़ना और गलना शुरू कर देती हैं.

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हिंदुजा, फ़ोर्टिस, जसलोक, Wockhardt, सायन जैसे मुंबई के कई बड़े अस्पताल ऐसे मरीज़ देख रहे हैं और स्टेरॉयड को एक बड़ा फैक्टर मान रहे हैं. हिंदुजा ने पिछली लहर से कुल 19 मरीज देखे, जिनमें से सिर्फ इस साल 16, तो Wockhardt हर हफ्ते दो मरीज देख रहा है.

हिंदुजा अस्पताल के हड्डी रोग के प्रमुख डॉ. संजय ग्रवाल ने बताया, 'अब मेरे पास 19 मरीज़ हैं, अगर मैं 19 मरीज़ देख रहा हूं तो आप अंदाजा लगाइए पूरे हिंदुस्तान या दुनिया भर में इसके कितने मरीज होंगे.'

Wockhardt Hospital के डॉक्टर गिरिश एल भालेराव ने बताया, 'कोविड में इस बीमारी का प्रमाण बढ़ गया है, कोविड से पहले अंदाजन 3 महीने में 2-3 मरीज दिखते थे. पहली लहर में हर महीने में 2-3 मरीज एवैस्कुलर नेक्रोसिस के दिखने लगे और अब दूसरी लहर में वीक्ली बेसिस पर क़रीब दो मरीज देख रहे हैं.'

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डॉ. राहुल पंडित, कोविड टास्क फ़ोर्स ने बताया, 'इस बीमारी का कनेक्शन कोविड से जोड़ा जा रहा है, क्योंकि कोविड के कई मरीजों को ठीक करने के लिए स्टेरोईड का इस्तेमाल हुआ है. ऐसा हो सकता है. क्योंकि करीब 30-40% जो पेशेंट होते हैं इस AVN बीमारी के वो स्टेरोईड की यूज की वजह से होते हैं. पर स्टेरोईड का यूज हाई रहता है और लम्बे वक्त तक रहता है.'

बीएमसी के बड़े अस्पतालों में शामिल सायन हॉस्पिटल से जुड़े ऑर्थपीडिक सर्जन डॉ अभिजीत काले बताते हैं कि कोविड से ठीक होने के करीब डेढ़ महीने बाद एक 25 साल का मरीज भी उनके पास एवैस्कुलर नेक्रोसिस के साथ पहुंचा इस मरीज को कोविड के इलाज के दौरान करीब चार दिन तक स्टेरोईड दी गयी थी.

उन्होंने बताया, 'उनको चार से पांच दिन स्टेरॉयड दिया गया था, इलाज के बाद छुट्टी होते ही करीब डेढ़ महीने के बाद उनको हिप ज्वाइंट में पेन शुरू हुआ, उनके भाई डॉक्टर हैं इसलिए उनको शक हुआ समय पर एक्सरे-MRI हुआ पता चला. MRI करते ही पता चला की दोनों हिप ज्वाइंट में जो खून का दौरा यानी ब्लड सप्लाई है वो बंद नजर आया. इसको कहते है एवैस्कुलर नेक्रोसिस ऑफ हिफ ज्वाइंट. वो सेकंड स्टेज में था तो सेकंड स्टेज में हम ड्रिलिंग करते हैं. ड्रिलिंग की और दवा शुरू की जिससे खून का सप्लाई इम्प्रूव हुआ.'

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जसलोक अस्पताल के अमित पिसपाती का कहना है कि स्टेरॉयड का असर करीब दो साल तक दिखता है, यानी  कोविड से ठीक होने के महीनों बाद तक एवैस्कुलर नेक्रोसिस का खतरा है. उन्होंने बताया, 'सबसे ज़्यादा ये हिप बॉल के अंदर होता है, उसके बाद कंधा, उसके बाद कॉमन है ऐंकल ज्वाइंट. लेकिन हिप ज्वाइंट में सबसे ज़्यादा कॉमन है. कोविड की पहली वेव, दूसरी वेव दोनों में देखा है, अभी नहीं बता सकते की किस वेव में ज़्यादा था क्योंकि इसका जो असर है वो एक साल के बाद ही पता चलेगा, क्योंकि स्टेरोईड का असर कई बार दो-तीन महीने बाद दिख जाता है लेकिन दो साल तक भी इसका असर पता चलता है.'

एक्स्पर्ट्स कहते हैं ये बीमारी जानलेवा नहीं मगर इलाज में देरी विकलांगता का कारण बन सकती है इसलिए एक्स्पर्ट्स की सलाह है, कोविड से जंग में अगर आपने स्टेरॉयड ली है और अगर जोड़ों में किसी तरह के दर्द का सामना कर रहे हैं तो हड्डी के डॉक्टर से ज़रूर सम्पर्क करें.

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