माता-पिता की मौत के बाद रिश्‍तेदारों ने भी छोड़ा, 12 साल की बच्‍ची पर छोटे भाई-बहनों का बोझ

माता-पिता की मौत के बाद रिश्‍तेदारों ने भी छोड़ा, 12 साल की बच्‍ची पर छोटे भाई-बहनों का बोझ

आगरा:

उत्तर प्रदेश में आगरा के एक गांव में 4 मासूम बच्‍चे अकेले जीने को मजबूर हैं वो भी ईंटों से बने कमरेनुमा ढांचे में। वो अपना खाना खुद ही बनाते हैं और उनसे कहा गया है कि हर महीने उन्‍हें 1000 रुपये मिलेंगे।

चारों में बच्‍चों में सबसे बड़ी है सोनिया जिसकी उम्र है 12 साल और अब वो इस परिवार की मुखिया है। चारों बच्‍चों को उनके चाचा ने 2 दिन पहले ही घर से बाहर कर दिया।

उनके माता-पिता ने 2013 में फसलों के नुकसान और गरीबी से तंग आकर ख़ुदकुशी कर ली और बच्चे अपने रिश्तेदारों के साथ रहने को मजबूर हो गए। अब रिश्‍तेदार भी कह रहे हैं कि वे इन बच्चों को साथ नहीं रख सकते।

सोनिया के चाचा राम अवतार का कहना है, 'मेरे खुद तीन बच्‍चे हैं। मैं इतना नहीं कमा पाता कि सात बच्‍चों को पाल सकूं।'

जब बच्‍चे बेघर और भूखे हुए तो उनमें से सबसे छोटा 6 वर्षीय रोहित मंगलवार को मदद की गुहार लगाने थाने पहुंच गया। पुलिस बच्‍चों को लेकर वापस गांव पहुंची और पंचायत को इस मामले में फैसला लेने को कहा।

ग्राम प्रधान रामजीत ने एनडीटीवी को बताया, 'हमने बच्‍चों को एक कमरा और 1000 रुपये प्रति माह देने का निर्णय लिया। जब उससे पूछा गया कि इतने पैसों में ये बच्‍चे खुद कैसे अपने खाने-पीने और बाकी चीजों की व्‍यवस्‍था करेंगे तो उसने कंधे उचकाते हुए कहा कि बड़ी लड़की सोनिया खेतों में काम कर पैसे कमा सकती है।

सोनिया, बस इतने भर से ख़ुश है कि अब उसको और उसके भाइयों को एक जगह मिल गई है, जिसे वे घर कह सकते हैं। लेकिन वो अपनी ज़िंदगी बेहतर करना चाहती है और मानती है कि पढ़ाई-लिखाई से मदद मिल सकती है।

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एनडीटीवी पर खबर दिखाए जाने के बाद प्रशासन का ध्‍यान भी इस ओर गया है। आगरा के जिला मजिस्‍ट्रेट पंकज कुमार ने बताया कि बच्‍चों की जैसे भी संभव हो मदद की जाएगी और जल्‍द ही एक अधिकारी उनसे मिलने भी जाएगा।