इच्छा मृत्यु पर बने दो पैनलों ने की इसकी वकालत, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

इच्छा मृत्यु पर बने दो पैनलों ने की इसकी वकालत, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

नई दिल्‍ली:

इच्छा मृत्यु को लेकर केंद्र सरकार ने कहा है कि उसके दो पैनलों ने इसकी वकालत की है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर करते हुए कहा है कि इच्छा मृत्यु को लेकर ड्राफ्ट बिल तैयार कर लिया गया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के चलते वो आगे नहीं बढ़ रहा है।

केंद्र सरकार ने कहा है कि इस मामले पर उन्होंने एक एक्सपर्ट कमिटी (DGHS) बनाई थी। इस कमेटी ने ऐसे लोग जो अस्पताल में वेंटिलेटर पर हैं, उनकी इच्छामृत्यु को लेकर अपनी सहमति दी थी और बाद में दूसरी कमेटी ने भी जताई। लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट की संविधानपीठ में होने के चलते सरकार आगे नहीं बढ़ पाई।

अदालत ने केंद्र से रुख साफ करने को कहा था
इच्छा मृत्यु को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से अपना रुख साफ करने को कहा था। कोर्ट में लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखे गए ऐसे लोगों का मसला उठाया गया था, जिनके ठीक होने की अब कोई उम्मीद नहीं बची है। इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि अगर किसी इंसान का दिमाग काम करना बंद कर दे, वो बस वेंटिलेटर के सहारे ही जिंदा हो और उसके बचने की कोई उम्मीद भी न हो तो ऐसे में क्या उसे इच्छा मृत्यु दी जा सकती है या नहीं? कोर्ट ने केंद्र को इन सवालों के जवाब देने के लिए एक फरवरी तक का समय दिया था।

क्या है मामला
लगभग 42 साल से कोमा में रहीं मुंबई की नर्स अरुणा शानबॉग को इच्छा मृत्यु देने से सुप्रीम कोर्ट ने साल 2011 में मना कर दिया था। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि डॉक्टरों के पैनल की सिफारिश, परिवार की सहमति और हाई कोर्ट की इजाज़त से कोमा में पहुंचे लाइलाज मरीज़ों को लाइफ स्पोर्ट सिस्टम से हटाया जा सकता है।

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कौन थीं अरूणा शानबॉग
27 नवंबर 1973 को मुंबई के केईएम हॉस्पिटल के वार्ड ब्वॉय सोहनलाल वाल्मीकि ने अरुणा शानबाग के साथ बलात्कार किया था। अरुणा वहां जूनियर नर्स के रूप में कार्य कर रही थी। इस क्रम में उसकी आवाज दबाने के लिए वाल्मीकि ने कुत्ते के गले में बांधी जाने वाली चेन से उसका गला जोर से लपेट दिया था, जिसके बाद वो कोमा में चली गईं थी।