एक्सक्लूसिव : दिल्ली सरकार की एंबुलेंसों में आठ महीनों में 26 बच्चों का जन्म

नई दिल्ली:

दिल्ली सरकार के कैट्स यानी सेंट्रलाइज्ड एक्सिडेंट एंड ट्रॉमा सर्विस के एंबुलेंस में मई से लेकर दिसंबर तक 26 बच्चे पैदा हुए। आठ महीनों के दौरान हर महीने औसतन तीन डिलीवरी। मजबूरी में एंबुलेंस के कर्मचारी को डिलीवरी एंबुलेंस के भीतर ही करवानी पड़ी और एंबुलेंस के भीतर डिलीवरी के ज्यादातर मामलों में जाम के चलते एंबुलेंस सही समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाई।

सड़कों पर ट्रैफिक की हकीकत और एंबुलेंस की हालत को लेकर हम लगातार खबर दे रहे हैं और इसी कड़ी में एक ऐसे सच से हमारा वास्ता पड़ा जो वाकई झकझोड़ देने वाला है। ट्रैफिक में एंबुलेंस का फंसना, रेड लाइट पर रुके रहना और गाड़ियों का उसको ओवरटेक करना। शायद इन चीजों को देखने के हम आदि हो चुके हैं, लेकिन उन 26 महिलाओं के बारे में सोचिए जो घर से अस्पताल में डिलिवरी के लिए निकली और मजबूरन उनकी डिलीवरी एंबुलेंस के भीतर ही करवानी पड़ी।

ट्रैफिक में फंसी एंबुलेंस जिसे लेबर पेन से कराहती किसी महिला को फौरन अस्पताल पहुंचाने की जल्दी हो, ऐसी आफत की कल्पना ही रोंगटे खड़े कर देती है। फिर उनकी सोचिए जो ऐसे हालात से गुजर चुके हैं।

वजीराबाद के संगम विहार की सलमा की डिलीवरी भी कैट्स एंबुलेंस के भीतर करवाई गई। 28 नवंबर को जब सलमा की तबियत बिगड़ी तो घरवालों ने कैट्स एंबुलेंस के लिए 102 नंबर पर कॉल किया और एंबुलेंस को हिंदूराव अस्पताल पहुंचने में काफी वक्त लगा जिसके चलते एंबुलेंस स्टाफ को एंबुलेंस के भीतर ही डिलीवरी करवानी पड़ी। सलमा के ससुर मंजूर आलम अंसारी कहते हैं कि अल्लाह का शुक्र था कि सब ठीक-ठाक हो गया। नहीं तो जान पर भी बन सकती थी।

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ठीक इसी दौर से मेहरौली की रूबी को भी गुजरना पड़ा। 30 सितंबर को जब कैट्स की एंबुलेंस रूबी को लेकर मेहरौली से मालवीय नगर अस्पताल के लिए निकली तो करीब डेढ़ घंटा जाम खा गया। तबीयत लगातार बिगड़ती गई और लेबर पेन इतना बढ़ गया कि स्टाफ को डिलीवरी अस्पताल पहुंचने से पहले ही एंबुलेंस के भीतर करवानी पड़ी। रूबी ये कहना नहीं भूलतीं कि लोगों को एंबुलेंस को जितनी जल्दी हो रास्ता दे देना चाहिए। रूबी एंबुलेंस स्टाफ का भी शुक्रिया अदा कर रही हैं, जिनकी वजह से आज उनकी तीसरी बेटी नव्या सही सलामत गोद में खिलखिला रही है।

दिल्ली में कैट्स की 152 एंबुलेंस हैं, जो अलग-अलग इलाकों में तैनात होती हैं और ये एंबुलेंस बिना किसी चार्ज यानी मुफ्त में मरीजों को अस्पताल पहुंचाने का काम करती है। पर ट्रैफिक ही रोड़े अटकाए तो एंबुलेंस क्या कर लेगी। कैट्स के प्रशासनिक अधिकारी राकेश कुमार बताते हैं कि इस तरह का वाक्या नया नहीं है, लेकिन बकायदा इसका रिकॉर्ड वो लोग मई महीने से रख रहे हैं। साथ में अपनी चुनौती का जिक्र करना भी नहीं भूलते और कहते हैं कि लोगों को एंबुलेंस की सायरन को गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि सवाल जिंदगी से जुड़ा होता है।