सेना ने 29 सितंबर को एलओसी पारकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया.
नई दिल्ली: पिछले साल उड़ी आतंकी हमले के बाद सेना ने 29 सितंबर को नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया. लेकिन उस ऑपरेशन को अंजाम देने वाले जांबाज जवानों के साहस की गाथा को साझा करने से सरकार ने इनकार कर दिया. उसके बाद जब इस गणतंत्र दिवस पर इन वीर जवानों के शौर्य को सराहते हुए सरकार ने उनको वीरता पुरस्कार दिए तो उसके बाद से छन-छनकर उस स्ट्राइक के बारे में सूचनाएं निकल रही हैं.
उसी कड़ी में अंग्रेजी वेबसाइट 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' ने इस संबंध में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वैसे तो इस ऑपरेशन में अनेक लोग शामिल थे लेकिन 19 जवान इस अभियान का केंद्रीय हिस्सा थे. उड़ी आतंकी हमले में 17 जवान शहीद हुए थे. उसके बाद ही सेना ने इस अभियान को अंजाम देने का निश्चय किया. इसके लिए सही वक्त का इंतजार किया गया और इसके लिए अमावस्या की रात को चुना गया ताकि उस दिन आसमान में चांद नहीं दिखने से अंधेरा अधिक घना रहता है. उसी की नतीजा था कि 28-29 सितंबर की मध्य रात्रि के आसपास इस बार कीर्ति चक्र से सम्मानित मेजर रोहित सूरी ने आठ सदस्यीय टीम के साथ हमला बोला. इस टीम को आतंकी ढांचे को नष्ट करने का आदेश था.
मेजर सूरी की टीम ने आतंकियों के ठिकाने पर धावा बोलते हुए जब वह अपने लक्ष्य के तकरीबन 50 मीटर के करीब पहुंचे तो उन्होंने दो आतंकियों को ढेर कर दिया. उसके बाद मेजर सूरी ने दो अन्य आतंकियों को जंगल में भागते हुए देखा. जान हथेली पर लेते हुए मेजर सूरी ने उनका पीछा किया और उनको ढेर कर दिया.
एक दूसरे मेजर को 27 सितंबर को ही अपने लक्ष्य पर नजदीक से निगाह रखने का आदेश दिया गया था. नतीजतन वह मेजर अपनी टीम के साथ स्ट्राइक के 48 घंटे पहले ही एलओसी पारकर सर्विलांस कर रहा था. इस टीम ने पूरे टारगेट जोन की मैपिंग की. हथियारों को रखने की जगह को नष्ट किया और दो आतंकियों को ढेर किया. जब यह सैन्य कार्रवाई हो रही थी तभी एक दूसरी जगह से उन पर गोलियां चलाई जाने लगीं. इस मेजर ने खतरे को भांपते हुए तत्काल वहां का रुख किया और वहां छिपे एक आतंकी को मार गिराया. इस मेजर को शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया.
इस स्ट्राइक ऑपरेशन में शामिल तीसरे मेजर ने अपनी टीम के साथ आतंकियों की एक शरणस्थली पर हमला कर उसको नष्ट कर दिया. साथ ही वहां सोते हुए सभी आतंकियों को मार दिया गया. यह मेजर अपने उच्च अधिकारियों को ऑपरेशन के बारे में भी पूरी जानकारी दे रहा था. इस मेजर को शौर्य चक्र दिया गया.
इसके साथ ही चौथे मेजर को ग्रेनेड हमले से दुश्मन के ऑटोमेटिक हथियारों को नष्ट करने और नजदीक से दो आतंकियों को मार गिराने के चलते सेना मेडल से सम्मानित किया गया.
हालांकि यह भी सही है कि सर्जिकल स्ट्राइक कोई साधारण ऑपरेशन नहीं था. आतंकियों ने मोर्चा संभाल लिया था. पांचवें मेजर ने जब तीन आतंकियों को देखा कि वे आरपीजी (रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड) से चौथे मेजर की टीम पर हमला करने जा रहे हैं तो उसने अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए बिजली की गति से उन तक पहुंचकर दो आतंकियों को मार गिराया. तीसरे आतंकी को उसके साथी ने मारा.
अधिकारियों के साथ-साथ जवानों ने भी अप्रतिम साहस का परिचय दिया. एक नायब सूबेदार ने आतंकी ठिकाने पर ग्रेनेड हमला करने के बाद दो आतंकियों को ढेर किया. इसके अलावा जब उसने देखा कि एक आतंकी उसकी टीम पर गोलियां चला रहा है तो उसने साथियों को वहां से हटाते हुए खुद मोर्चा संभाला और उसको मार गिराया. इस पूरे मिलिट्री ऑपरेशन की सबसे बड़ी कामयाबी यह भी रही कि इसमें कोई सैनिक शहीद नहीं हुआ. बस सर्विलांस टीम का एक सदस्य जख्मी हुआ.