श्रमिक स्पेशल ट्रेन (Shramik Special Trains) : अब तक 80 लोगों की हो चुकी है मौत

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए गए लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूर अपने घरों की ओर वापस लौटने लगे. सरकार पर दबाव बढ़ा तो रेल मंत्रालय ने उनको पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाने शुरू कीं.

श्रमिक स्पेशल ट्रेन (Shramik Special Trains) : अब तक 80 लोगों की हो चुकी है मौत

श्रमिक स्पेशल ट्रेन से प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्य पहुंचाया जा रहा है.

नई दिल्ली :

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए गए लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूर अपने घरों की ओर वापस लौटने लगे. सरकार पर दबाव बढ़ा तो रेल मंत्रालय ने उनको पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाने शुरू कीं. लेकिन इन ट्रेनों में भी प्रवासी मजदूरों की समस्याएं कम नहीं हुई हैं. मिले आंकड़ों की मानें तो श्रमिक स्पेशल में अब तक 80 लोगों की मौत हो चुकी है. ये मौतें  9 से 27 मई के बीच हुई हैं.  मिली जानकारी के मुताबिक  23 मई को 10 मौत, 24 मई को 9 मौत, 25 मई को 9 मौत, 26 मई को 13 मौत, 27 मई को 8 मौत इनमें से 11 मौतों को लेकर कारण बताए गए हैं. जिनमें  पुरानी बीमारी या फिर अचानक बीमार पड़ने का हवाला दिया गया है.  इसमें एक उस शख्स की भी मौत हुई है जिसको कोरोना वायरस से संक्रमित बताया गया है. 

गौरतलब है कि गंतव्य तक पहुंचने में श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में होने वाली देरी को लेकर गंभीर आलोचना से घिरे रेलवे ने शुक्रवार को यह कहते हुए अपना बचाव किया कि वे कोई नियमित ट्रेनें नहीं थीं तथा प्रवासी श्रमिकों के लाभ के लिए उनका मार्ग बढ़ाया जा सकता है, घटाया जा सकता है एवं उनके ठहराव तथा मार्ग बदले जा सकते हैं. 

रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष वीके यादव ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि कभी कोई ट्रेन 'गुम' नहीं हो सकती तथा एक मई से जब से श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलने लगी हैं, तब से अब तक कुल 3,840 ऐसी ट्रेनों में केवल चार ट्रेनों ने ही अपने गंतव्य पर पहुंचने में 72 घंटे से अधिक समय लिया.

यह स्पष्टीकरण तब आया है जब विलंब को लेकर यहां तक कह दिया गया कि प्रवासी ट्रेनें अपने गंतव्य पर पहुंचने से पहले ही 'गायब' हो रही हैं. रेलवे के आंकड़े के हिसाब से 36.5 प्रतिशत ट्रेनों का गंतव्य बिहार में था जबकि 42.2 फीसद ट्रेनें उत्तर प्रदेश गयीं, फलस्वरूप इन मार्गों पर असमान दबाव पड़ा. 

यादव ने बार बार कहा कि ये असाधारण वक्त था. उन्होंने देरी की शिकार हुई ट्रेनों को लेकर की जा रही आलोचना के संदर्भ में रेलवे का बचाव किया और कहा कि यात्रियों को भोजन के 85 लाख पैकेट और पानी की सवा करोड़ बोतलें दी गयीं. 

उन्होंने कहा कि खास शिकायतों की जांच की गयी है और भोजन की आपूर्ति में कोई विसंगति नहीं पायी गई.

उन्होंने कहा, 'कोरोना वायरस के चलते कई अनुबंधकर्ता भोजन वितरण के लिए ट्रेनों में सवार नहीं होना चाहते थे. हम शुरू में उन्हें प्रवासियों की खातिर पैकेट देते थे. लेकिन अब हमारे कर्मचारी ट्रेनों में चढ़ने और भोजन का वितरण करने के लिए मास्क और दस्तानों का इस्तेमाल कर रहे हैं.'

यादव ने दृढता के साथ कहा, 'इसलिए 3840 ट्रेनों में से महज एक या दो फीसद ट्रेनों में ये घटनाएं हुई . 98-99 फीसद मामलों में चीजें सुचारू रहीं.'

उन्होंने यह भी कहा कि रेलवे उन लोगों की सूची तैयार कर रहा है जिन्होंने श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में जान गंवाई. उन्होंने साथ ही पहले से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे लोगों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों से अनावश्यक यात्रा से बचने की अपील की. 

उन्होंने कहा, 'रेलवे की नियंत्रण प्रणाली है, यदि कोई बीमार पाया जाता है तो ट्रेन तत्काल रोकी जाती है, डॉक्टर उसकी जान बचाने की कोशिश करते हैं. कई यात्रियों को रेलवे के डॉक्टरों ने देखा, 31 सफल प्रसव कराये गये. कई मामलों में मरीजों को निकटतम अस्पताल में भेजा गया. मैं समझता हूं कि वे मुश्किल घड़ी में सफर कर रहे हैं.'

यादव ने कहा, 'हर मौत की जांच की जाती है. हम मौतों और उनके कारणों पर राज्य सरकारों के सहयोग से डाटा तैयार कर रहे हैं. जब हमारे पास आंकड़े हो जायेंगे, तब हम उसे जारी करेंगे. मैं बिना किसी आंकड़े के टिप्पणी नहीं करना चाहता.' उनसे इन ट्रेनों में हुई मौतों पर सवाल पूछा गया था. 

उन्होंने यह भी कहा कि इन प्रवासी ट्रेनों में 90 फीसद ट्रेनें नियमित मेल एक्सप्रेस ट्रेनों से अधिक औसत रफ्तार से चलीं. यादव ने कहा, ‘‘ये फर्जी खबर है कि एक ट्रेन सूरत से नौ दिनों में सिवान पहुंची....हमने बस 1.8 फीसद ट्रेनों का मार्ग बदला. 20-24 मई के दौरान , उत्तर प्रदेश और बिहार से अधिक मांग होने के कारण 71 ट्रेनों के मार्ग बदले गये, क्योंकि देश भर से 90 फीसद ट्रेनें उत्तर प्रदेश और बिहार ही जा रही थीं'

उन्होंने कहा कि एक मामले में एक ट्रेन लखनऊ भेजी गयी जिसे इलाहाबाद जाना था और उस ट्रेन के लिए कहा गया कि ट्रेन 'गुम' हो गयी. उन्होंने कहा कि जब यह महसूस किया गया कि ट्रेन में इलाहाबाद के कम और लखनऊ के जयादा लोग हैं तब उसका मार्ग बदला गया.

उन्होंने कहा, 'हमने राज्य सरकार से बातचीत की और कानपुर में इस ट्रेन को लखनऊ भेजने का निर्णय लिया. ये कोई सामान्य ट्रेनें नहीं थीं.  रेलवे ने उनमें पूरा लचीलापन बनाये रखा.  राज्य सरकारों को ट्रेनों का मार्ग बीच में पूरा कर देने, बढ़ाने, ठहराव स्थल बदलने, मार्ग बदलने की छूट दी गयी थी. प्रवासी मजदूरों को घर तक पहुंचाने में मदद के लिए जो भी करना पड़ेगा , हम करेंगे.'

हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि रेलवे के पास यात्रियों के गंतव्य के बारे में सूचना कैसे नहीं थी.  नियमानुसार उसके पास यात्रियों के सवार होने से पहले , जहां से ट्रेन चलती है, उस राज्य से लेकर उसके गंतव्य का पूरा विवरण होना चाहिए. 

बिहार के लिए 51 ट्रेनों, उत्तर प्रदेश के लिए 16, झारखंड के लिए दो और मणिपुर के एक ट्रेन के मार्ग में परिवर्तन किया गया.  मार्ग परिवर्तन वाली ट्रेनें महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और राजस्थान से चली थीं.  यादव के अनुसार, 28 मई तक 3840 ट्रेनों ने 52 लाख यात्रियों को पहुंचाया. उन्होंने कहा कि पिछले एक सप्ताह में 1524 श्रमिक ट्रेनें चली हैं और 20 लाख से अधिक यात्री पहुंचाये गये. 

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उन्होंने कहा, 'रेलवे ने भेजने वाले राज्यों के कभी सभी अनुरोधों को समायोजित किया और हम श्रमिकों की आवाजाही की सभी मांग पूरा करने के लिए तैयार हैं.' अध्यक्ष ने फिर कहा कि किसी भी प्रवासी से टिकट का भुगतान नहीं कराया गया. (इनपुट भाषा से भी)