उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री उम्मीदवार : बीजेपी और आरएसएस करेंगे अलग अलग सर्वे

उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री उम्मीदवार : बीजेपी और आरएसएस करेंगे अलग अलग सर्वे

खास बातें

  • बीजेपी और आरएसएस अलग अलग सर्वे करवाएंगे
  • सर्वे के परिणामों के आधार पर सीएम उम्मीदवार पर विचार किया जाएगा
  • कांग्रेस ने पहले ही शीला दीक्षित को सीएम उम्मीदवार के लिए चुन लिया है
नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले तमाम राजनीतिक पार्टियों में से बीजेपी ही एक अकेली पार्टी है जिसने अभी तक मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का चयन नहीं किया है.

सूत्रों की मानें तो अगले कुछ हफ्ते अहम हैं और राजनीतिक रूप से सबसे अहम राज्य के लिए बीजेपी काफी गहन और ज़मीनी सर्वे किए जाने के बाद ही अपना उम्मीदवार चुनेगी. हमेशा की तरह बीजेपी की यह कोशिश अपनी सैद्धांतिक शाखा आरएसएस से तालमेल करती दिखेगी. सूत्रों के मुताबिक बीती रात बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने आरएसएस के दूसरे सबसे बड़े नेता भैयाजी जोशी के साथ बैठक भी की है.

बताया जा रहा है कि यह दोनों इस फैसले पर पहुंचे हैं कि यूपी में पीएम मोदी जैसे बड़े नेता के आसपास अभियान केंद्रित करने से बेहतर होगा कि मुख्यमंत्री उम्मीदवार की घोषणा के साथ चुनावी मैदान में उतरा जाए. पहले तो बीजेपी और आरएसएस के तमाम ज़मीनी स्तर पर जुटे कार्यकर्ता अलग अलग सर्वे करेंगे और फीडबैक इकट्ठा करके ऊपर तक पहुंचाएंगे, जिसका विश्लेषण किया जाएगा. बाद में आरएसएस और बीजेपी दोनों ही विचार साझा करेंगे. एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने नाम न बताए जाने की शर्त पर कहा, 'हमें उम्मीद है कि दोनों सर्वे के नतीजे एक ही होंगे लेकिन यह एक कठिन और पेचीदा काम होने वाला है. और ऐसा भी हो सकता है कि बीजेपी बगैर किसी सीएम उम्मीदवार के चुनाव लड़े.'

उम्मीदवार की घोषणा से वोटरों पर असर
इधर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनकी पार्टी समाजवादी पार्टी दोबारा सत्ता में आना चाहेगी, वहीं कांग्रेस ने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का नाम यूपी सीएम के लिए आगे किया है. बीएसपी प्रमुख मायावती भी एक बार फिर मुख्यमंत्री पद हासिल करने की उम्मीद के साथ चुनावी मैदान में उतरेंगीं. समाजवादी पार्टी को यादव जाति से सबसे ज्यादा समर्थन हासिल है, बीएसपी दलित वोट बैंक पर निर्भर है, वहीं कांग्रेस ने दीक्षित को चुनकर ब्राह्मण वोट को अपील करने की सोची है. ऐसे में बीजेपी नेतृत्व का कहना है कि क्योंकि उन्होंने ऊंची और पिछड़ी जातियों को मिलाने की भरसक कोशिश की है इसलिए उनके लिए उम्मीदवार को चुनना ज़रा चुनौतीपूर्ण है - एक उम्मीदवार की घोषणा से कई अहम वोटर अलग थलग हो सकते हैं.

2014 लोकसभा चुनाव में दलितों और पिछड़ी जाति का एक हिस्सा बीएसपी और सपा से अलग होकर बीजेपी से जा मिला था. लेकिन इस बार पार्टी की कोशिश है कि ऊंची जाति के समर्थकों को खोए बिना ही पिछड़े वर्ग का साथ बना रहे. बीजेपी को गुजरात में दलितों पर हुए हमले की भी चिंता है और उन्हें डर है कि इसका खामियाज़ा वह चुनाव में भुगत सकते हैं. गौ रक्षकों द्वारा किए गए यह हमले पीएम मोदी की उस कोशिश पर सवालिया निशान खड़ा करते हैं जिसके तहत वह पार्टी की दलितों के लिए प्रतिबद्धता पर ज़ोर देते दिखाई देते हैं. बता दें कि उत्तरप्रदेश में 21 प्रतिशत आबादी दलितों की है.

जहां एक तरफ सर्वे और उनके नतीजों का इंतज़ार है, वहीं बीजेपी नेताओं ने इस बात की तरफ भी इशारा किया है कि पिछले महीने हुए इस तरह के सर्वे में वरुण गांधी जैसे नेताओं के प्रति काडर का समर्थन दिखाई दिया था. हालांकि इन परिणामों को पार्टी ने निर्णायक न बताते हुए खारिज कर दिया था.


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