बाबू के भरोसे चल रहा है दिल्ली लोकायुक्त दफ्तर

अरविंद केजरीवाल की फाइल फोटो

नई दिल्‍ली:

एंटी करप्शन हेल्पलाइन लॉन्‍च करने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार के कार्यकाल में अब तक लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो पाई है। बीते डेढ़ साल से लोकायुक्त कार्यालय में न तो लोकायुक्त है और न ही रजिस्ट्रार।

डिप्टी सेक्रेटरी के भरोसे बीते डेढ़ साल से लोकायुक्त दफ्तर चल रहा है। बीते डेढ़ साल में करीब साढ़े पांच सौ शिकायतें आई हैं लेकिन उनकी जांच के लिए लोकायुक्त ही नहीं है। ऐसे में ये शिकायतें दफ्तर में पड़ी धूल खा रही हैं और शिकायतकर्ता दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं। जबकि नियम के मुताबिक छह महीने के अंदर लोकायुक्त की नियुक्ति जरूरी होती है।

दिल्ली में लोकायुक्त की भूमिका इसलिए भी जरूरी है क्योंकि हवलदार से लेकर अधिकारियों के भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए एंटीकरप्शन हेल्पलाइन और एंटी करप्शन ब्रांच मौजूद है। लेकिन पार्षद, नेता, मंत्री और मुख्यमंत्री के आचरण और भ्रष्टाचार की शिकायत सुनने के लिए लोकायुक्त नहीं है।

हालांकि इस बारे में जब दिल्ली सरकार के लोकनिर्माण मंत्री सतेंद्र जैन से बात की गई तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ नहीं मालूम है। उनके पास वैसे ही पांच मंत्रालयों का काम है। सरकार के वरिष्ठ मंत्री की बात से आपको अंदाजा लग गया होगा कि जनलोकपाल के मुद्दे पर सरकार से इस्तीफा देने वाली आम आदमी पार्टी दिल्ली में लोकायुक्त के प्रति गंभीर नहीं है।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

वहीं लोकायुक्त नियुक्ति करने की गुहार लगा चुके नेता प्रतिपक्ष बिजेंद्र गुप्ता कहते हैं कि लोकायुक्त होते तो मंत्री के फर्जी डिग्री की जांच जैसे कई मामलों पर उनकी भूमिका अहम होती। यही वजह है कि सरकार लोकायुक्त के मामले को लटकाए रखना चाहती है। लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर अब वो कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाने जा रहे हैं।
 
कैसे होती है लोकायुक्त की नियुक्ति
दिल्ली में लोकायुक्त दिल्ली के चीफ जस्टिस और नेता प्रतिपक्ष की राय से दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर जस्टिस हो सकते हैं। उपराज्यपाल राष्ट्रपति के आदेश पर लोकायुक्त की नियुक्ति करता है। लेकिन इसका नोटिफीकेशन दिल्ली सरकार के कैबिनेट की राय लेकर चीफ सेक्रेटरी जारी करता है। उसके बाद सरकार उपयुक्त उम्मीदवारों की सूची उपराज्यपाल को भेजती है।