यह ख़बर 11 नवंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

अभिज्ञान का प्वाइंट : महाराष्ट्र की सियासत के गहराते सवाल

नई दिल्ली:

महाराष्ट्र की सियासत में मेरे हिसाब से इस बात पर कोई बहस भी नहीं हो सकती कि 1995 के बाद भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के चुनाव में ऐतिहासिक नतीजे दिए हैं। लेकिन पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाने की वजह से यही नतीजे अब बीजेपी पर सवाल उठा रहे हैं।

पहले आखिरी समय पर नाटकीय तरीके से शिवसेना से रिश्ते तोड़ना और फिर बैगेर शिवसेना से समझौता तय हुए अपना मुख्यमंत्री बनाना और उद्धव ठाकरे में असमंजस पैदा करना। क्या शिवसेना आखिरकार बीजेपी के साथ आएगी या नहीं ये सेना और बीजेपी की समस्या है?

लेकिन इससे कहीं ज़्यादा बड़ी समस्या है कि महाराष्ट्र जैसे राज्य का क्या होगा? हाल के सालों में महाराष्ट्र का कर्ज़ 2 लाख 70 हज़ार करोड़ से ज़्यादा का हो गया है। ऐसे में एक अहम सवाल यह है कि एक अल्पमत की सरकार को चलाते हुए क्या−क्या कड़े फ़ैसले देवेंद्र फडणवीस ले पाएंगे और क्या फडणवीस अलग−अलग दबावों के सामने नहीं झुक जाएंगे?

भले ही उनकी छवि ईमानदार नेता की बताई जा रही है, लेकिन यह महाराष्ट्र की सबसे बड़ी चुनौती है। भाषणबाज़ी और बयानबाज़ी, सब अपनी जगह ठीक हैं, लेकिन महाराष्ट्र में सिस्टम के भ्रष्टाचार का लंबा इतिहास रहा है। तो क्या एक अल्पमत का मुख्यमंत्री इस इतिहास को बदल पाएगा और अगर अपनी शर्तों के साथ शिवसेना और बीजेपी में कोई समझौता होता है तो क्या बीजेपी अपना वजूद आगे बढ़ा पाएगी?

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

सियासी तौर पर ये बात साफ़ है कि शिवसेना हो या कोई और पार्टी वह बीजेपी को कोई ऐसा मौका देना नहीं चाहेगी कि वह अपनी ताकत महाराष्ट्र में बढ़ा सके और बीजेपी का सिर्फ़ यही एजेंडा है, क्योंकि उसकी सोच और सपना दोनों यही था कि महाराष्ट्र में बैगेर किसी के साथ आए उसकी सरकार जिससे वह एक कदम पीछे रह गई।