महाराष्ट्र : ऋषिकेश को बैल की जगह नहीं जुतना पड़ेगा, प्रशासन ने की मदद

महाराष्ट्र : ऋषिकेश को बैल की जगह नहीं जुतना पड़ेगा, प्रशासन ने की मदद

ऋषिकेश और अरुण गावंडे (फाइल फोटो)

खास बातें

  • एनडीटीवी इंडिया की खबर का असर
  • पुस्तकें दीं, पढ़ाई के व्यय का इंतजाम हुआ
  • कृषक परिवार में तकलीफें कम होने की आशा जगी
मुंबई:

एक बेबस किसान, जिसके पास खेत जोतने के लिए बैल किराये पर लेने के पैसे भी नहीं थे। उसने मजबूरी में बेटे की पढ़ाई छुड़वाई और उसे खेत में काम पर लगा दिया। जब यह खबर हमने आप तक पहुंचाई तो प्रशासन भी हरकत में आया। कई लोगों ने मदद की पेशकश की। अब वह छात्र वापस स्कूल में मेहनत करेगा। किसान को भी मदद पहुंचाने के लिए प्रशासन ने पहल शुरू कर दी है।

तहसीलदार से कराई गई जांच
24 घंटे में ही एनडीटीवी इंडिया की इस खबर का असर हुआ। सरकार ने 12वीं में पढ़ने वाले ऋषिकेश को स्कूल भेजने की पहल शुरू कर दी है। अब उसे खेत में बैल की जगह मेहनत करने की जरूरत नहीं है। अकोला के एसडीएम संजय खडसे ने कहा " हमने इस खबर की तहसीलदार से जांच कराई तो पता लगा कि दहीगांव में रहने वाले अरुण गावंडे के पास बच्चे को स्कूल भेजने के पैसे नहीं हैं। प्रशासन ने उसे सारी पाठ्य सामग्री मुहैया करा दी है और स्वयंसेवी संगठनों की मदद से उसकी पढ़ाई के पूरे खर्च का भी इंतजाम हो गया है।"

फसल बर्बाद हुई, ऊपर से कर्ज का बोझ  
अकोला के दहीगांव में रहने वाले अरुण गावंडे ने महाराष्ट्र बैंक से 36 हजार का कर्ज लिया था। तीन साल से सूखे की वजह से फसल बर्बाद हो रही थी, सो वह कर्ज चुका नहीं पा रहे थे। ऐसे में और कर्ज मिलना मुश्किल था। दो एकड़ में सोयाबीन और तुअर को बचाने के लिए जब पैसे नहीं थे तो बेटे को खेत में जोतना पड़ा। लेकिन अब उन्हें उम्मीद है कि उनकी तकलीफें कम होंगी।

कई लोगों ने की मदद की पेशकश
एसडीएम से मिलने के बाद अरुण गावंडे के बेटे ऋषिकेश ने कहा "हमें कई फोन आए, कई लोगों ने मदद की पेशकश की। आज प्रशासन की तरफ से मुझे सारी किताबें मिल गई हैं।'' वहीं अरुण गावंडे का कहना था "पहले मुझे लगा कि मैं कुछ नहीं कर सकता, कुछ नहीं बदलेगा। लेकिन अब एक नई उम्मीद जगी है।''

प्रदेश में औसतन आठ किसान रोज कर रहे हैं खुदकुशी
2016 में महाराष्ट्र में 1274 किसान खुदकुशी कर चुके हैं, यानी औसतन हर रोज़ आठ। पिछली इसी अवधि की तुलना में यह आंकड़ा 16 फीसदी ज्यादा है। सबसे ज्यादा निराशा विदर्भ में है जहां 557 किसान इस साल भी अपनी जान दे चुके हैं। ऐसे में प्रशासन और लोगों की ऐसी पहल इस अंधेरे में उम्मीद की थोड़ी रोशनी देती है।


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