यह ख़बर 05 नवंबर, 2013 को प्रकाशित हुई थी

नेहरू ने पटेल को ‘पूर्णत: साम्प्रदायिक’ कहा था : आडवाणी

लालकृष्ण आडवाणी का फाइल फोटो

नई दिल्ली:

देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल को लेकर अन्य विवाद खड़ा करते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने एक किताब के हवाले से आज आरोप लगाया कि जब पटेल ने स्वतंत्रता के बाद भारत में हैदराबाद के विलय के लिए सेना भेजने का सुझाव दिया था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें ‘पूर्णत: साम्प्रदायिक’ व्यक्ति कहा था।

आडवाणी ने अपने ब्लॉग की नई पोस्टिंग में एमकेके नायर की पुस्तक ‘द स्टोरी ऑफ एन एरा टोल्ड विदआउट इल विल’’ का उद्धरण दिया। इस किताब में हैदराबाद के खिलाफ ‘पुलिस कार्रवाई’ से पहले हुई कैबिनेट की बैठक में नेहरू और पटेल के बीच हुए ‘तीखे वार्तालाप’ का जिक्र किया गया है।

हैदराबाद का निजाम पाकिस्तान में शामिल होना चाहता था और उसने पड़ोसी देश में एक दूत भी भेजा था तथा उसने वहां की सरकार को काफी धन भी हस्तांतरित किया था। निजाम के अधिकारी स्थानीय लोगों पर कथित रूप से अत्याचार कर रहे थे।

आडवाणी ने नायर की किताब के हवाले से लिखा, कैबिनेट की एक बैठक में पटेल ने इन बातों के बारे में बताया और मांग की कि हैदराबाद के आतंकभरे शासन को समाप्त करने के लिए सेना भेजी जाए। आमतौर पर विनम्रता और शिष्टाचार के साथ बात करने वाले नेहरू ने आपा खोते हुए कहा था, आप पूरी तरह से साम्प्रदायिक हैं। मैं आपकी सिफारिश को कभी नहीं मानूंगा।

आडवाणी ने अपने ब्लॉग में कहा, पटेल इससे विचलित नहीं हुए, बल्कि वह अपने कागजात लेकर कमरे से चले गए। भाजपा पिछले कुछ समय से यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि सरदार पटेल ऐसे नेता थे, जो हिंदुत्व विचारधारा के निकट थे।

आडवाणी ने 31 अक्तूबर को पटेल की 138वीं वर्षगांठ पर दुनिया में सबसे लंबी 182 मीटर की उनकी प्रतिमा बनाने की परियोजना के उद्घाटन के मौके पर देश के इस पहले गृहमंत्री की प्रशंसा की थी।

इस परियोजना को शुरू करने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत के लोगों को एक करने वाली पटेल की धर्मनिरपेक्षता की जरूरत है न कि इन दिनों प्रचलित ‘‘वोटबैंक धर्मनिरपेक्षता’’ की।

आडवाणी और मोदी दोनों ने खुद को पटेल की विरासत को आगे ले जाने वाले नेता के तौर पर प्रदर्शित करने की कोशिश की है।

भाजपा ने यह भी आरोप लगाया है कि कांग्रेस ने कभी पटेल के योगदान की प्रशंसा नहीं की और उसने केवल नेहरू-गांधी परिवार की सराहना की है।

आडवाणी ने अपने ब्लॉग में लिखा कि तत्कालीन गर्वनर जनरल राजाजी ने हैदराबाद में सेना भेजने के लिए नेहरू को मनाया।

राजाजी ने हालात लगातार बिगड़ते जाने पर इस मसले पर चर्चा के लिए नेहरू और पटेल को राष्ट्रपति भवन बुलाया। इस बीच सेना को युद्ध के लिए तैयार रखा गया था।

राजाजी ने उस बैठक के दौरान ब्रिटिश उच्चायुक्त के एक पत्र का भी इस्तेमाल किया, जिसमें हैदराबाद में रज़ाकारों द्वारा दो दिन पहले एक कॉन्वेंट की 70 वर्षीय नन का बलात्कार करने की घटना पर विरोध जताया गया था। पटेल के निकट सहयोगी वीपी मेनन ने बैठक के पहले राजाजी को यह पत्र दिया था।

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आडवाणी ने किताब के हवाले से कहा, राजाजी ने अपने खास अंदाज में हैदराबाद में स्थिति का वर्णन किया। उन्हें लगा कि भारत की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए इस मामले पर निर्णय लेने में और देरी नहीं की जानी चाहिए, लेकिन नेहरू अंतरराष्ट्रीय परिणामों को लेकर चिंतित थे। तब राजाजी ने ब्रिटिश उच्चायुक्त का पत्र दिखाया। उन्होंने कहा, नेहरू ने पत्र पढ़ा। उनका चेहरा लाल हो गया, गुस्से के चलते उनके शब्द नहीं निकल रहे थे। वह अपनी कुर्सी से उठे, अपनी मुट्ठी को मेज पर मारा और चिल्लाए, हमें एक क्षण भी व्यर्थ नहीं करना चाहिए। हम उन्हें सबक सिखाएंगे। आडवाणी ने कहा,  राजाजी ने तत्काल मेनन से कहा कि वह योजना के अनुसार कार्य करने के लिए चीफ कमांडर को सूचित करें।