राफेल डील पर बोले वायुसेना के एयर मार्शल एसबी देब-विमान जल्दी मिलने से है मतलब, भले ठेका निजी कंपनी को मिले.
खास बातें
- राफेल डील पर बोले वायुसेना के एयर मार्शल एसबी देब
- बोले-विमान से मतलब, चाहे निजी कंपनी को ही ठेका क्यों न मिले
- सियासी घमासान के बीच वायुसेना के प्रमुख की राय है अहम
नई दिल्ली: राफेल डील पर मचे सियासी घमासान के बीच वायुसेना के एयर मार्शल एसबी देव ने भी अहम बयान दिया है. उन्होंने राफेल डील पर सवाल उठाने वालों को एक प्रकार से कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है. डील को उचित ठहराया है.राफेल डील का मामला इस वक्त सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. ऐसे में जब एयर मार्शल एसबी देव से मीडिया ने सवाल किया तो पहले उन्होंने इस मसले पर कोई कमेंट न करने की बात कही. फिर बाद में उन्होंने विचार रखे. यह पूछे जाने पर कि क्या HAL द्वारा 'तेजस' विमान के निर्माण में देरी किए जाने की वजह से आप उसका ठेका निजी क्षेत्र को देने के पक्ष में हैं, भारतीय वायुसेना के उपप्रमुख एयर मार्शल एसबी देव ने कहा, "बिल्कुल पक्ष में हूं... वायुसेना की नीति है कि कुछ भी हमारे पास जल्द से जल्द पहुंचे, और पैसा देश में ही रहे, बस, इसी की ज़रूरत है..."
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एयर मार्शल एसबी देव का कहना है, "यह जानना ज़रूरी नहीं है कि पैसा रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रम (DPSU) के पास जा रहा है, या निजी क्षेत्र के पास... जब तक पैसा हमारे ही देश में रहता है, निवेश देश में ही हुआ, और विमान भी हम तक जल्दी पहुंचा, तो उसे ठुकराने का क्या औचित्य है..."वहीं वायुसेना के उपप्रमुख एसबी देव ने यह भी कहा कि मुझे इस मसले पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए, हमें लगता हैं कि लोगों को जानकारी नहीं है. हम विमान का इंतजार कर रहे हैं. क्योंकि राफेल सुंदर और सक्षम विमान हैं.'
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बता दें कि फ्रांस की अपनी यात्रा के दौरान, 10 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि सरकारों के स्तर पर समझौते के तहत भारत सरकार 36 राफेल विमान खरीदेगी. घोषणा के बाद, विपक्ष ने सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री ने सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की मंजूरी के बिना कैसे इस सौदे को अंतिम रूप दिया. मोदी और तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलोंद के बीच वार्ता के बाद 10 अप्रैल, 2015 को जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया कि वे 36 राफेल जेटों की आपूर्ति के लिए एक अंतर सरकारी समझौता करने पर सहमत हुए.
पीएम मोदी के सामने हुए समझौते में यह बात भी थी कि भारतीय वायु सेना को उसकी जरूरतों के मुताबिक तय समय सीमा के भीतर विमान मिलेंगे. वहीं लंबे समय तक विमानों के रखरखाव की जिम्मेदारी फ्रांस की होगी. आखिरकार सुरक्षा मामलों की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के बीच 2016 में आईजीए हुआ. भारत और फ्रांस ने 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए 23 सितंबर, 2016 को 7.87 अरब यूरो (लगभग 5 9,000 करोड़ रुपये) के सौदे पर हस्ताक्षर किए. विमान की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होगी. आरोप? कांग्रेस इस सौदे में भारी अनियमितताओं का आरोप लगा रही है. उसका कहना है कि सरकार प्रत्येक विमान 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है जबकि संप्रग सरकार ने प्रति विमान 526 करोड़ रुपये कीमत तय की थी. पार्टी ने सरकार से जवाब मांगा है कि क्यों सरकारी एयरोस्पेस कंपनी एचएएल को इस सौदे में शामिल नहीं किया गया.
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