कोरोना महामारी के बीच दिल्‍ली और लखनऊ के सामने मंडरा रहा यह 'बड़ा खतरा': रिपोर्ट

रिसर्च के निष्‍कर्ष डराने वाले हैं. यह बताते हैं कि भारत के सभी 1.4 अरब लोग उन क्षेत्रों में रहते हैं जहां वार्षिक औसत कण प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों से अधिक है.

कोरोना महामारी के बीच दिल्‍ली और लखनऊ के सामने मंडरा रहा यह 'बड़ा खतरा': रिपोर्ट

देश के ज्‍यादातर शहरों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्‍तर पर पहुंच गया है (प्रतीकात्‍मक फोटो)

नई दिल्ली:

ऐसे समय जब पूरी दुनिया कोरोना की महामारी का सामना कर रही है, शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट (EPIC) में वायु प्रदूषण को कोरोना से भी खतरनाक किलर बताया गया है. रिपोर्ट में (परिणाम के लिहाज से )वायु प्रदूषण को आपसी संघर्ष और आतंकवाद से भी बदतर करार दिया गया है. वायु प्रदूषण के मामले में भारत का स्‍थान बांग्लादेश के बाद दुनिया में दूसरे नंबर पर आता है. रिसर्च के निष्‍कर्ष चौंकाने वाले हैं. यह बताते हैं कि भारत के सभी 1.4 अरब लोग उन क्षेत्रों में रहते हैं जहां वार्षिक औसत कण प्रदूषण (Annual average particulate pollution)विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों से अधिक है. यदि यह स्‍तर बना रहा तो उत्‍तर भारत में लगभग 25 करोड़ लोगों की औसत आयु 8 साल तक कम हो सकती है.

रिपोर्ट कहती है, "वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा COVID-19 के पहले भी था और COVID-19 के बाद भी होगा." गौरतलब है कि वायु प्रदूषण का किसी व्यक्ति के हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क और अन्य प्रणालियों और अंगों पर घातक प्रभाव पड़ता है. रिपोर्ट बताती है कि हवा में व्‍याप्‍त छोटे-छोटे कणों के प्रदूषण (Particulate pollution) के कारण दिल्‍ली के लोगों की औसत आयु 9.4 साल तक कम हो सकती है जो सभी राज्‍यों में सबसे ज्‍यादा है. शहरों की बात करें तो सबसे ज्‍यादा प्रभावित यूपी की राजधानी लखनऊ है. नबाबों के शहर लखनऊ में प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों से 11 गुना अधिक है. अगर प्रदूषण का यही स्तर जारी रहा तो लखनऊ में प्रदूषण के कारण औसत आयु 10.3 वर्ष तक कम हो सकती है.

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पूर्वी राज्‍य बिहार और पश्चिम बंगाल यदि WHO के मानकों के अनुरूप कण प्रदूषण (Particulate pollution) को कम करने में सफल होते हैं तो अपने निवासियों की औसत उम्र में करीब 7 साल का इजाफा कर लेंगे. यूपी के मामले में यह अवधि 8.6 साल तक हो जाती है. EPIC की यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब वैज्ञानिक COVID-19 और वायु प्रदूषण के बीच संबंधों की जांच कर रहे हैं. कुछ रिपोर्ट्स जैसे कि हार्वर्ड की रिपोर्ट में कोरोना वायरस से मौतों की उच्‍च मृत्‍यु दर को वायु प्रदूषण के साथ जोड़ा गया है.

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रिपोर्ट बताती है कि चीन ने वायु प्रदूषण के खिलाफ युद्ध स्‍तर पर काम किया और इस पर नियंत्रण करने में काफी हद तक सफलता हासिल की. चीन ने "प्रदूषण के खिलाफ युद्ध" का ऐलान 2014 में घोषित किया था. इसके तहत 270 बिलियन डॉलर और राजधानी बीजिंग के लिए अहम से 120 बिलियन की राशि का आवंटन किया गया. इसके प्रयासों से सर्वाधिक प्रदूषित माने जाने वाले Beijing-Tianjin- Hebei एरिया में Particulate pollution में 41 फीसदी तक की कमी दर्ज हुई. भारत ने भी प्रदूषण के खिलाफ 'जंग' की घोषणा कर दी है, इस साल के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) का बजट सिर्फ 460 करोड़ रुपये है जो काफी कम है. सीधी सी बात है वायु प्रदूषण को कम करने के मामले में भारत को अभी बहुत कुछ करना है.