2019 में 'बुआ-भतीजा' का साथ, कमजोर कर देगा 'हाथ'! BJP को फायदा या नुकसान, जानें UP का सियासी समीकरण
अजित सिंह ने कहा कि कांग्रेस को लेकर सपा और बसपा फैसला करेगी कि उसे लोकसभा चुनाव के मद्देनदर गठबंधन में रखना है या नहीं. हालांकि, सूत्रों की मानें तो आरएलडी ने सपा-बसपा गठबंधन से 5 सीटों की मांग की है, जबकि सपा-बसपा गठबंधन आरएलडी को तीन सीटें देने को तैयार है. दरअसल, आरएलडी ने जिन पांच सीटों की मांग की है, वह हैं- हाथरस, कैराना, बागपत, मुज़फ़्फरनगर और कैराना. हालांकि, अभी तक सीटों पर पूरी तरह से सहमति नहीं बनी है. दरअसल, सीटों पर बातचीत को अंतिम रूप देने के लिए दो दिन पहले जयंत चौधरी अखिलेश यादव से मिलने लखनऊ गए थे. वहां अखिलेश यादव ने उन्हें सीटों को लेकर भरोसा दिलाया है. बहराहल, शनिवार को होने वाले अखिलेश यादव और मायावती के साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में जयंत चौधरी प्रेस कांफ्रेंस में नहीं जाएंगे. बता दें कि शनिवार को लखनऊ में ताज होटल में अखिलेश यादव और मायवती साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगी और महागठबंधन का औपचारिक ऐलान करेंगी.
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बहरहाल, राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा है कि उत्तर प्रदेश की ये दोनों बड़ी पार्टियां यानी सपा-बसपा 37-37 लोकसभा सीटों पर साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगी. बता दें कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं. यूपी की सियासी गलियाओं में चर्चा इस बात पर भी है कि बसपा-सपा गठबंधन में अमेठी और रायबरेली की सीटें छोड़ दी जाएंगी और वहां किसी भी उम्मीदवार को नहीं उतारा जाएगा. इसके बाद जो सीटें बच रही हैं उससे राष्ट्रीय लोकदल और अन्य छोटी पार्टियों के लिए छोड़ा जायेगा. यानी सपा और बसपा के बीच गठबंधन की बात सही साबित होती है तो इसका मतलब है कि कांग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा नहीं होगी और यूपी की अन्य क्षेत्रीय पार्टियों को जोड़ने की सपा-बसपा पूरजोर कोशिश करेगी. इस तरह से देखा जाए तो सपा-बसपा का संगम होता है तो कांग्रेस बड़ा झटका तो होगा. साथ ही साथ बीजेपी के लिए भी किसी बड़े झटके से कम नहीं होगी.
सपा और बसपा के गठबंधन का नेता कौन? अखिलेश यादव या मायावती
सपा-बसपा का गठबंधन न सिर्फ कांग्रेस , बल्कि बीजेपी के लिए भी सिरदर्द है. कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी के लिए झटके की बात को समझने के लिए लोकसभा चुनाव 2014 के वोट शेयर पर गौर करने की जरूरत होगी. दरअसल, 2014 में भले ही बसपा को एक भी सीट नहीं मिल पाई थी, मगर उसका वोट फीसदी सपा के करीब ही था. 2014 लोकसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और उसने 80 में से 71 सीटें जीत कर सबको चौंका दिया था. उस वक्त 71 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने रिकॉर्ड करीब 42 फीसदी वोट हासिल किए थे. वहीं, समाजवादी पार्टी के खाते में करीब 22 फीसदी वोटों के साथ 5 सीटें आई थीं. 2014 में मायावती की बसपा को एक भी सीट नहीं मिल पाई थी, मगर उसके करीब 20 फीसदी वोट थे. वहीं, कांग्रेस ने रायबरेली और अमेठी की सीटें जीती थीं और उसने करीब 7 फीसदी वोट शेयर हासिल किए थे.
खबर यह भी है कि मायावती और अखिलेश यादव के सपा-बसपा को लेकर औपचारिक ऐलान से पहले यूपी कांग्रेस की टीम भी दिल्ली में मैराथन बैठक करेगी और आगे की रणनीति पर चर्चा करेगी. कांग्रेस भी बसपा-सपा गठबंधन के मद्देनजर भविष्य की रणनीति पर चर्चा करेगी और इसमें राज बब्बर और पीएल पुनिया शामिल होंगे.
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बता दें कि विधानसभा चुनाव में जहां बीजेपी को 39.6% वोट मिले तो सपा और बीएसपी को 22 फीसदी. दोनों के वोटों को मिला दें तो 44 फीसदी हो जाता है. कांग्रेस को मात्र 6 फीसदी ही वोट मिले थे. वहीं, बात करें लोकसभा चुनाव 2014 की तो बीजेपी को उत्तर प्रदेश में 42.6% वोट मिले थे. सपा को 22 फीसदी और बीएसपी को 20 फीसदी वोट मिले थे. बहरहाल, ऐसी खबरें हैं कि 15 जनवरी के बाद सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप दिया जा सकता है.
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