भ्रष्टाचार निवारण संशोधन विधेयक को राज्यसभा की मंजूरी

उच्च सदन ने आज भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया. इस विधेयक में 1988 के मूल कानून को संशोधित करने का प्रावधान है.

भ्रष्टाचार निवारण संशोधन विधेयक को राज्यसभा की मंजूरी

राज्यसभा ने पास किया भ्रष्टाचार निवारण संसोधन विधेयक

नई दिल्ली:

भ्रष्टाचार पर लगाम कसने व ईमानदार कर्मचारियों को संरक्षण देने के साथ-साथ रिश्वत देने के आरोपियों को अधिकतम सात साल की सजा के प्रावधान वाले एक महत्वपूर्ण संशोधन विधेयक को आज राज्यसभा की मंजूरी मिल गयी. उच्च सदन ने आज भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया. इस विधेयक में 1988 के मूल कानून को संशोधित करने का प्रावधान है. विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा कि यह संशोधन विधेयक स्थायी समिति के साथ साथ प्रवर समिति में भी भेजा गया था. साथ ही समीक्षा के लिए इसे विधि आयोग के पास भी भेजा गया था. उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कानूनों में बदलाव की जरूरत तब तक पड़ती रहेगी जब तक हमारा समाज भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्त नहीं हो जाता.

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उन्होंने कहा कि 2014 में वर्तमान सरकार के सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शासन का मूलभूत मंत्र दिया था कि न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन.  उन्होंने कहा कि इसी बात को ध्यान में रखते हुए वर्तमान विधेयक में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि ईमानदार अधिकारियों के कोई भी अच्छे प्रयास बाधित नहीं हों. उन्होंने कहा कि इस सरकार के शासन में आने के बाद जनता का विश्वास भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई करने वालों पर बहाल हुआ है. उन्होंने कहा कि इसी का प्रमाण है कि चालू वित्त वर्ष की प्रथम तिमाही में आयकर दाताओं द्वारा अग्रिम आयकर जमा करवाने में 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई. चर्चा के दौरान कई सदस्यों ने विधेयक के इस प्रावधान पर आपत्ति जतायी थी कि सरकारी कर्मचारियों पर भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई करने से पहले लोकपाल या लोकायुक्त से अनुमति लेनी होगी. अब चूंकि देश में अभी तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं हुई है.

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ऐसे में लोकपाल या लोकायुक्त नहीं होने पर इसके लिए मंजूरी कौन देगा. इन आशंकाओं पर मंत्री ने स्वीकार किया कि यह तकनीकी रूप से व्यावहारिक नहीं है. उन्होंने कहा कि यह संशोधन विधेयक और लोकपाल विधेयक पिछली सरकार के कार्यकाल में एक साथ बनाया गया था. चूंकि उस समय लोकपाल का मुद्दा बहुत चर्चा में था, इसलिए शायद विधेयक में लोकपाल का प्रावधान कर दिया गया. उन्होंने इस विधेयक में रिश्वत देने वाले को अधिकतम सात साल की सजा के प्रावधान का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जरूरी है. विधेयक में रिश्वत लेने वाले के लिए न्यूनतम तीन साल और अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान है. इससे पूर्व विधेयक पर हुयी चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के उप नेता आनन्द शर्मा ने आरोप लगाया कि पिछले चार साल में न केवल भ्रष्टाचार पनपा है बल्कि उसे संरक्षण भी प्रदान किया गया है.

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उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार ने अभी तक जो भी कार्रवाई की है, देश की जनता उससे संतुष्ट नहीं है. उन्होंने कहा कि 2014 के आम चुनाव से पहले तत्कालीन सरकार के मंत्रियों, योजनाओं और नीतियों को गलत बताया गया. यहां तक की भ्रष्टाचार के जो आरोप लगाये गये उसके छीटे तत्कालीन प्रधानमंत्री तक गये. शर्मा ने कहा कि आज भ्रष्टाचार को रोकने का दावा करने वाली सरकार के शासन में नीरव मोदी और मेहुल चौकसी जैसे लोग बैंकों से करोड़ों रूपये लेकर देश से फरार हो जाते हैं किंतु उनको रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया जाता है. उन्होंने सवाल किया कि यदि भारत में भ्रष्टाचार नहीं हो रहा तो स्विस बैंकों में भारतीयों का धन 50 प्रतिशत कैसे बढ़ गया. (इनपुट भाषा से) 


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