बिहार के सीएम नीतीश कुमार के अचानक बदले सुर का क्या राजनीतिक अर्थ है?

पिछले दो दिनों में बिहार  विधानसभा के अंदर और बाहर  नेताओं की जो मुलाक़ातें हुई हैं उससे राजनीतिक अटकलों का बाज़ार गर्म है.

बिहार के सीएम नीतीश कुमार के अचानक बदले सुर का क्या राजनीतिक अर्थ है?

तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विधानसभा चैम्बर में पहुंचे थे. (फाइल फोटो)

खास बातें

  • CAA, एनसीआर-एनपीआर पर बहस
  • तेजस्वी का कार्यस्थगन प्रस्ताव पारित हुआ
  • नीतीश मिलने गए पहुंचे तेजस्वी
पटना:

पिछले दो दिनों में बिहार  विधानसभा के अंदर और बाहर  नेताओं की जो मुलाक़ातें हुई हैं उससे राजनीतिक अटकलों का बाज़ार गर्म है. सबसे पहले मंगलवार को जैसे बिहार विधानसभा का सत्र शुरू हुआ विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने नए नागरिक क़ानून , एनपीआर और एनआरसी के मुद्दे पर कार्यस्थगन प्रस्ताव पेश किया. स्थगन प्रस्ताव पर अगर सत्ता पक्ष बहस के लिए तैयार न हो तो आम तौर पर खारिज हो जाता है. लेकिन बिहार विधानसभा अध्यक्ष विजय चौधरी ने तेजस्वी के इस प्रस्ताव को मंज़ूर कर लिया. चर्चा के दौरान तेजस्वी को जवाब देते हुए नीतीश ने कहा कि नागरिकता क़ानून के विरोध का अभी कोई मतलब नहीं है क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एनपीआर की प्रश्नावली में कुछ सवालों पर मानना है कि  मुस्लिम वर्ग के  भविष्य में एनआरसी होने पर उन्हें दिक़्क़त आ सकती है और बिहार में एनआरसी की कोई ज़रूरत नहीं हैं. लेकिन नीतीश का भाषण ख़त्म होने  के बाद भी इस बात को लेकर संशय बना हुआ था कि ये प्रस्ताव पारित हुआ कि नहीं. और जैसे ही सदन ख़त्म हुआ तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विधानसभा चैम्बर में पहुंच गये और आग्रह किया कि आज ही इसे पारित करा लिया जाये. इस पर  मुख्यमंत्री नीतीश  कुमार ने विधानसभा अध्यक्ष से बात की जिन्होंने सदन में उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी के बजट भाषण के बाद प्रस्ताव पढ़ा और इसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया. 

हालांकि बीजेपी में इसको लेकर नाराज़गी है. उस पर उप मुख्य मंत्री सुशील मोदी ने ट्वीट कर सफ़ाई दी कि बिहार सरकार नागरिकता कानून को लेकर प्रतिबद्ध है. इस पर समझौते का कोई सवाल नहीं है. वहीं एनआरसी पर पीएम मोदी ने पहले ही कह दिया है कि एनआरसी पर किसी भी स्तर पर चर्चा नहीं हुई है. बिहार सरकार ने चाहती है कि एनपीआर 2010 के फॉर्मेट पर हो. बीजेपी और जेडीयू पूरी तरह से सीएए और एनपीआर के पक्ष में है.

लेकिन बुधवार को बिहार विधानसभा में बजट राज्यपाल के अभिभाषण पर पहले तेजस्वी यादव ने सरकार की आलोचना की. उसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा जवाब दिया गया बाद में विधानसभा अध्यक्ष के चैम्बर में जब नीतीश कुमार पहुंचे तो उसके बाद राजद के बड़े नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी भी वहीं पहुंचे, उन्होंने इच्छा जाहिर की कि तेजस्वी यादव को भी यहां बुलाया जाए. सिद्दीकी के आग्रह पर तेजस्वी यादव को बुलाया गया. तेजस्वी यादव तुरंत अध्यक्ष के चैम्बर में पहुंचे और दोनों ने चाय भी पी. लेकिन मौजूद लोगों के अनुसार कोई राजनीतिक चर्चा नहीं हुई. कई लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुधवार को अपने भाषण के दौरान इस बात को लेकर ख़ुश थे कि विपक्ष ने उनकी पूरी बात के दौरान न केवल सुनी बल्कि बायकॉट करने की परंपरा को ख़त्म किया.

पूर्व में भी नीतीश कुमार का यह कटु अनुभव रहा है कि वो चाहे बीजेपी हो या आरजेडी उनके भाषण के दौरान सदन का बहिष्कार कर बाहर चले जाते थे. और ख़ुद नीतीश कुमार मानते थे कि अगर सामने विपक्ष के सदस्य बैठे न हो तो भाषण देने का मज़ा नहीं आता है लेकिन 2 दिनों के दौरान दो बार कि इस मुलाक़ात का सब लोग अपने अपने तरीक़े से अर्थ निकाल रहे हैं.

वहीं जनता दल युनाइटेड के नेता जिसमें मंत्री और विधायक शामिल हैं उनका कहना है कि कुछ ज़्यादा तिल का ताड़ बनाया जा रहा है क्योंकि लोग भूल जाते हैं कि शुक्रवार को यही नीतीश कुमार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पूर्वी क्षेत्रों के मुख्यमंत्रियों की भुवनेश्वर में बुलायी बैठक में भी शामिल होने जा रहे हैं. अगर बीजेपी से उनकी कोई नाराज़गी या परेशानी आती है तो वो है बजट सत्र का हवाला देकर किनारा कर सकते थे. 

वहीं यह बात आरजेडी के नेता भी मानते हैं कि एनआरसी और एनपीआर पर जो रुख नीतीश कुमार ने अपनाया है उसके बाद मुस्लिम समुदाय के बीच जो नीतीश कुमार की साख गिर गई थी वह पहले से बेहतर हो गई है. लेकिन नीतीश कुमार के क़रीबी मानते हैं कि अगर कल को केंद्र सरकार ने एनपीआर पर नीतीश कुमार के सुझाव को मान भी लिया तो मुस्लिम समुदाय के बीच जो उनकी साख बढ़ी ही है वो वोटों में तब्दील इतनी आसानी से नहीं हो पाएगी.  इसके बारे में  नीतीश कुमार को कोई गलतफहमी नहीं है.  यह बात नीतीश कुमार भी भलीभाँति जानते हैं.क्योंकि ट्रिपल तलाक़ और 370 पर केंद्र सरकार के स्टैंड के ख़िलाफ़ भी क़दम लेने के बावजूद उनका यही कटु अनुभव रहा है कि बिहार के उपचुनावों में मुस्लिम मतदाताओं ने 20 प्रतिशत भी उन्हें अपना वोट नहीं दिया.

लेकिन यह भी सच है कि 2015 के चुनाव में जो महागठबंधन बना था उसकी वजह से नीतीश कुमार को शत प्रतिशत मुस्लिम वोटरों का समर्थन भी मिला था वहीं बीजेपी के नेता कहते हैं कि नीतीश कुमार 15 वर्षों तक बिहार की सत्ता पर राज करने के बाद भले ही वो 2020 का चुनाव भी NDA का नेता के रूप में लड़ें लेकिन राजनीति वो अब अपने ही शर्तों पर करेंगे. 

बीजेपी के एक मंत्री कहते हैं कि नीतीश एक ऐसे परिपक्व नेता हैं जहां एक ओर वो मुस्लिम समाज के लोगों को नागरिक क़ानून पर बने नए बिल को ज़्यादा तूल ना देने की सलाह दे रहे हैं  वहीं बीजेपी नेताओं की सांप्रदायिक बयानबाजी पर अपनी नाराज़गी छिपाने में देर नहीं करते.  इसलिए नीतीश कुमार को भले बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से बहुत मधुर सम्बंध ना हो लेकिन बिहार बीजेपी के साथ सरकार चलाने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन अब वो राजनीति और शासन  फ़िलहाल अपने शर्तों पर ही करेंगे इसलिए सहयोगी और विपक्ष उनसे अब समझौते से ज़्यादा मुद्दों पर सहयोग की उम्मीद कर सकते हैं. 

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