यह ख़बर 09 जुलाई, 2014 को प्रकाशित हुई थी

वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आर्थिक सर्वे पेश किया, वित्तीय घाटा पाटने पर जोर

मुंबई:

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज मोदी सरकार का पहला आर्थिक सर्वे 2013−14 को संसद की पटल पर पेश कर दिया है। सर्वे में कहा गया है कि खराब मॉनसून की वजह से देश की अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर से गुजर रही है। सर्वे के मुताबिक, विकास दर 5.4−5.9 के बीच रहने की उम्मीद है।

इस बार खराब मॉनसून की वजह से जोखिम बढ़ा है, साथ ही मनरेगा की वजह से मजदूरों की कमी हुई है जबकि मजदूरी में इजाफा हुआ है।

सर्वे के मुताबिक, आर्थिक विकास दर धीमी रही है, जिसका खासकर उद्योग क्षेत्र पर असर पड़ा है। सर्वे में कहा गया है कि साल 2013−14 में कृषि और उसके सहयोगी सेक्टर में विकास दर 4.7 रही है। बीते लगातार दो सालों से यानी 2012−13 और 2013−14 में देश जीडीपी की विकास दर 5 से नीचे रही है।

इसके अलावा वित्तीय घाटा 4.5 रहा है, जिसे अगले दो सालों में कम करने पर जोर दिया गया है जबकि बैलेंस ऑफ पेमेंट की हालत में नाटकीय तरीके से सुधार हुए है। चालू खाते का घाटा 88.2 अरब डॉलर से घटकर 32.4 अरब डॉलर हुआ है। महंगाई की वजह से आरबीआई के लिए ब्याज दरों में छूट देना मुश्किल हो रहा है। सिब्सिडी के क्षेत्र में सुधार किए जाने की जरूरत है। 2013−14 में विदेशी मुद्रा का भंडार 292 अरब डॉलर से बढ़कर 304 अरब डॉलर पहुंचा है।

आर्थिक सर्वे के मुख्य बिंदु :-

- 2012-13 में उद्योग का विस्तार सिर्फ एक फीसदी हुआ और 2013-14 में यह दर और कम 0.4 फीसदी हो गई।

- 2013-14 में कुल एफडीआई (हिस्सेदारी प्रवाह, आय का फिर से निवेश और अन्य पूंजी सहित) आगमन 36.4 अरब डॉलर रहा। शुद्ध एफडीआई आगमन 2013-14 में 21.6 अरब डॉलर रहा।

- उद्योग को कुल बैंक ऋण प्रवाह 2013-14 में 14.9 फीसदी बढ़ा, जो 2011-12 के 20.9 फीसदी और 2012-13 के 17.8 फीसदी से कम है।

- नीतियों में अब निकट भविष्य में विकास के प्रमुख उत्प्रेरकों को लक्षित करने की जरूरत है। इनमें से प्रमुख हो सकते हैं निजी कंपनियों द्वारा किया जाने वाला निवेश, महत्वपूर्ण सुधार की दिशा में आगे बढ़ना और अधोसंरचना संबंधी बाधाओं को दूर करना।

- समग्र आर्थिक माहौल में सुधार के साथ उद्योग में तेजी की उम्मीद है और अगले दो साल में विकास दर धीमे-धीमे बढ़ सकती है।

- कृषि निर्यात 2013-14 में साल-दर-साल आधार पर 5.1 फीसदी बढ़कर 3,792.2 करोड़ डॉलर का रहा, अकेले समुद्री उत्पादों का निर्यात इस दौरान 44.8 फीसदी बढ़ा।

- 2011 में चावल को निर्यात की अनुमति मिलने के बाद से इसके निर्यात में वृद्धि का रुझान है। 2010-11 में 257.2 करोड़ डॉलर का निर्यात हुआ और 2013-14 में 774.2 करोड़ डॉलर का निर्यात हुआ।

- 2008-09 और 2013-14 के बीच कृषि निर्यात में दुग्ध, पॉल्ट्री, मांस और समुद्री उत्पादों के निर्यात की हिस्सेदारी बढ़कर दोगुनी हो गई।

- 2012-13 में समाप्त पांच वर्षों के दौरान खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का विस्तार 8.4 फीसदी की दर से हुआ जो कृषि क्षेत्र के मुकाबले अधिक तेज है।

- 2013-14 में सात लाख करोड़ रुपये कृषि ऋण के लक्ष्य के मुकाबले 7,30,765 करोड़ रुपये का ऋण दिया गया।

- अधिक खरीदी के कारण एक जून 2014 तक केंद्र सरकार के पास 6.984 करोड़ टन अनाज भंडार। इतने बड़े भंडार के बाद भी ऊंची खाद्य महंगाई।

- पिछले दो सालों के दौरान पांच फीसदी से नीचे रही विकास दर को पीछे छोड़ते हुए 2014-15 में आर्थिक विकास दर 5.4-5.9 फीसदी रह सकती है।

- बैलेंस ऑफ पेमेंट की स्थिति 2013-14 में, और खास कर पिछली तीन तिमाहियों में काफी सुधरी। निकट भविष्य में इसे बरकरार रख पाना एक चुनौती होगी।

- 2001-2012 के बीच देश के सेवा क्षेत्र की चक्रवृद्धि सालाना विकास दर चीन के बाद सर्वाधिक नौ फीसदी रही। इस दौरान चीन की दर 10.9 फीसदी थी।

- जीडीपी के मामले में दुनिया के शीर्ष 15 देशों में सेवा क्षेत्र के जीडीपी के मामले में 2012 में भारत का स्थान 12वां। इसी दौरान वैश्विक जीडीपी में सेवा क्षेत्र का योगदान 65.9 फीसदी और रोजगार में सेवा क्षेत्र का योगदान सिर्फ 44 फीसदी रहा, जबकि भारत के मामले में यह क्रमश: 56.9 फीसदी और 28.1 फीसदी रहा।

- 2013-14 में फैक्टर लागत (मौजूदा मूल्य) पर जीडीपी में सेवा क्षेत्र का योगदान 57 फीसदी रहा, जो 2000-01 के मुकाबले छह फीसदी अधिक है।

- 2013-14 में सेवा क्षेत्र में एफडीआई प्रवाह 37.6 फीसदी गिरावट के साथ 6.4 अरब डॉलर रहा, जबकि एफडीआई में समग्र तौर पर 6.1 फीसदी वृद्धि रही।

- निर्यात : विश्व सेवा निर्यात में भारत का योगदान 1990 के 0.6 फीसदी से बढ़कर 2013 में 3.3 फीसदी हो गया और यह योगदान वस्तु निर्यात के मुकाबले अधिक है। देश के कुल सेवा निर्यात में 46 फीसदी योगदान करने वाले सॉफ्टवेयर सेवा निर्यात की वृद्धि दर 2013-14 में घटकर 5.4 फीसदी रह गई। करीब 12 फीसदी योगदान करने वाले यात्रा सेक्टर में 0.4 फीसदी गिरावट रही।

- पीएफआरडीए अधिनियम, कमोडिटी वायदा कारोबार को वित्त मंत्रालय के तहत लाना और एफएसएलआरसी रिपोर्ट पेश किया जाना 2013-14 में मील के तीन पत्थर रहे।

- एफएसएलआरसी ने अपनी रिपोर्ट में व्यापक स्तर पर सुझाव दिए हैं। ये मुख्य रूप से शासन व्यवस्था में सुधार के सिद्धांतों की प्रकृति से संबंधित हैं।

- बैंकों की सकल गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में वृद्धि। समग्र तौर पर बैंकिंग सेक्टर का एनपीए मार्च 2011 के कुल ऋण के 2.36 फीसदी से बढ़कर दिसंबर 2013 में 4.40 फीसदी हो गया।

- आरबीआई ने अधोसंरचना, लौह और इस्पात, कपड़ा, उड्डयन और खनन क्षेत्र की पहचान संकटग्रस्त क्षेत्र के रूप में की है।

- नई पेंशन प्रणाली (एनपीएस), जिसे अब राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली कहा जा रहा है, के साथ देश की पेंशन प्रणाली का व्यापक सुधार हुआ है। यह देश में वृद्धावस्था के टिकाऊ समाधान की बुनियाद प्रस्तुत करता है।

- सात मई 2014 तक एनपीएस के तहत 67.11 लाख सदस्य थे और उनकी कुल संपत्ति 51,147 करोड़ रुपये थी।

- असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए 2010 में शुरू की गई स्वावलंबन योजना को 2010-11, 2011-12 और 2012-13 में दाखिला लेने वाले लाभार्थियों के लिए विस्तारित किया गया। सह-योगदान का लाभ 2016-17 तक उपलब्ध होगा।

- दीर्घावधि विदेशी कर्ज दिसंबर 2013 के अंत में कुल विदेशी कर्ज का 78.2 फीसदी था, जो मार्च 2013 के अंत में 76.1 फीसदी। दीर्घावधि कर्ज दिसंबर 2013 के अंत में मार्च 2013 के अंत के मुकाबले 25.1 अरब डॉलर (8.1 फीसदी) बढ़ा, जबकि लघु-अवधि कर्ज चार अरब डॉलर (4.1 फीसदी) घटा, जिससे आयात घटने का पता चलता है।

- 20113-14 में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर घटकर तीन साल के निचले स्तर 5.98 फीसदी पर आ गई।

- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर में भी गिरावट का रुझान।

- थोक और उपभोक्ता दोनों प्रकार की महंगाई दर में गिरावट की उम्मीद।

- वित्तीय घाटा कम किया जाना देश के लिए जरूरी बना रहा।

- वित्तीय घाटा कम किए जाने के लिए सिर्फ खर्च-जीडीपी अनुपात घटाने की जगह अधिक कर-जीडीपी अनुपात का सुझाव।

- आक्रामक नीतिगत पहल ने 2013-14 में सरकार को वित्तीय घाटा कम करने में मदद की।

- 2013-14 में वित्तीय घाटा जीडीपी का 4.5 फीसदी।

- केंद्र और राज्य सरकारों की कुल देनदारी जीडीपी के अनुपात में कम हुई।

- वर्ष 2013-14 में देश के बकाया-भुगतान की स्थिति काफी सुधरी है। चालू खाता घाटा 32.4 अरब डॉलर (जीडीपी का 1.7 फीसदी) रहा, जो 2012-13 में 88.2 अरब डॉलर (जीडीपी का 4.7 फीसदी) था।

- रुपये की वार्षिक औसत विनिमय दर 2013-14 में प्रति डॉलर 60.50 रुपये रही, जो 2012-13 में 54.41 रुपये थी और जो 2011-12 में 47.92 रुपये थी।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

- देश का विदेशी पूंजी भंडार मार्च 2014 के आखिर में बढ़कर 304.2 अरब डॉलर हो गया, जो मार्च 2013 के आखिर में 292 अरब डॉलर था।

(इनपुट्स आईएएनएस से)