यह ख़बर 07 मार्च, 2011 को प्रकाशित हुई थी

'इच्छामृत्यु कानूनी, लेकिन अरुणा को जीना पड़ेगा'

खास बातें

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि असाधारण परिस्थितियों में रोगी को 'पैसिव यूथेन्सिया' की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन अरुणा को अनुमति नहीं मिलेगी।
मुंबई:

मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) अस्पताल में 37 साल से एक ही बिस्तर पर बेसुध पड़ी ज़िन्दगी काट रही अरुणा रामचंद्र शानबाग को जीना ही पड़ेगा, और उसे इच्छामृत्यु नहीं मिलेगी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने बहुप्रतीक्षित फैसले में व्यवस्था दी है कि असाधारण परिस्थितियों में रोगी को 'पैसिव यूथेन्सिया' (ऐसी मृत्यु, जिसमें रोगी का इलाज रोक दिया जाए या उसे जीवनरक्षक उपकरणों से हटा लिया जाए) की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन 'एक्टिव यूथेन्सिया' (ऐसी मृत्यु, जिसमें रोगी का जीवन इंजेक्शन इत्यादि देकर खत्म कर दिया जाए) अवैध है। सोमवार को न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ ने नर्स अरुणा की ओर से उनके जीवन पर किताब लिखने वाली पिन्की वीरानी द्वारा दायर की गई याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि प्रस्तुत मामले में तथ्यों, परिस्थितियों, चिकित्सीय साक्ष्यों तथा अन्य सामग्री से पता चलता है कि पीड़ित को इच्छामृत्यु दिए जाने की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरुणा के मामले में सुनाए गए इस निर्णय से अब हमारा देश भी उन मुल्कों की फेहरिस्त में दर्ज हो गया है, जहां किसी न किसी रूप में इच्छामृत्यु वैध है। पीठ ने हालांकि यह भी कहा कि चूंकि मौजूदा समय में हमारे देश में इच्छामृत्यु को लेकर कोई कानून नहीं है, परंतु मरणासन्न स्थिति वाले रोगी को 'असाधारण मामलों में' पैसिव यूथेन्सिया की अनुमति दी जा सकती है। पीठ ने स्पष्ट किया कि जब तक संसद इसे लेकर कोई कानून नहीं बनाती, यह फैसला इच्छामृत्यु के दोनों तरीकों (एक्टिव और पैसिव यूथेन्सिया) पर लागू रहेगा तथा पैसिव यूथेन्सिया के लिए भी हाईकोर्ट से स्वीकृति लेना अनिवार्य होगा। पैसिव यूथेन्सिया की अनुमति के लिए पीठ ने स्पष्ट किया कि रोगी के माता-पिता, जीवनसाथी, अन्य संबंधी अथवा निकट संबंधियों के न होने की स्थिति में निकट मित्र या उपचाररत डॉक्टर जीवनरक्षक उपकरण या इलाज हटाने का फैसला कर सकता है, सो, अरुणा के मामले में यह निर्णय करने का अधिकार केईएम अस्पताल के स्टाफ को है, जो पिछले कई दशकों से उसका उपचार और देखभाल कर रहा है। अदालत ने कहा कि अस्पताल का स्टाफ चाहता है कि अरुणा को जीने दिया जाए, इसलिए याचिकाकर्ता को अरुणा की ज़िन्दगी के बारे में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि केईएम अस्पताल स्टाफ भी भविष्य में अपना विचार बदलता है तो उसे बंबई हाईकोर्ट से अनुमति लेनी होगी। उल्लेखनीय है कि अस्पताल की ओर से प्रस्तुत वकील वल्लभ सिसोदिया ने याचिका को विरोध करते हुए अदालत को जानकारी दी थी कि अस्पतालकर्मी, विशेषकर अरुणा की इलाज और तीमारदारी कर रहे डॉक्टर और नर्सें पिछले 37 साल से काफी अच्छा काम कर रहे हैं और वे उसे मारे जाने के आग्रह के विरुद्ध हैं। उल्लेखनीय है कि इस समय 60 वर्ष की हो चुकी अरुणा के साथ अस्पताल में ही 27 नवम्बर, 1973 को अस्पताल के एक सफाईकर्मी ने बर्बर तरीके से बलात्कार किया था। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को जानकारी दी कि अस्पताल के एक सफाईकर्मी ने अरुणा के गले में कुत्ते की चेन लपेटकर झटक दिया था, जिससे वह कोमा में चली गई थी। याचिका के अनुसार, बलात्कारी ने अरुणा से बलात्कार की कोशिश की, लेकिन चूंकि उसका मासिक धर्म जारी था, उसने अरुणा के साथ अप्राकृतिक दुष्कर्म किया। अरुणा की ओर से विरोध को रोकने के लिए आरोपी ने उसके गले में चेन लपेटकर झटका दिया था। इस जघन्य अपराध को अंजाम देने के बाद आरोपी मौके से फरार हो गया था। याचिकाकर्ता ने बताया कि गला घुट जाने से अरुणा के मस्तिष्क को ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद हो गई और उसका कार्टेक्स क्षतिग्रस्त हुआ। इस आक्रमण के कारण अरुणा की ग्रीवारज्जु के साथ-साथ मस्तिष्क नलिकाओं में भी अंदरूनी चोट पहुंची। याचिकाकर्ता के मुताबिक वारदात के बाद पिछले 37 साल में अरुणा का वजन बेहद कम हो गया है और उसकी हड्डियां चरमरा चुकी हैं। बिस्तर पर पड़े रहने के कारण उसकी त्वचा में भी संक्रमण हो गया है, उसकी कलाइयां अंदर की ओर मुड़ गई हैं, दांत नष्ट हो चुके हैं और उसे केवल मथा हुआ भोजन दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अरुणा लगातार बेहोशी की हालत में है, उसका मस्तिष्क असल में मृत हो चुका है और उसे दुनिया की कोई सुध नहीं है। इसी आधार पर याचिकाकर्ता ने अरुणा के लिए इच्छामृत्यु की मांग की थी। पीठ ने इस मामले में विभिन्न पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद पिछले सप्ताह अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मुद्दे पर अपना-अपना पक्ष रखने वालों में अटार्नी जनरल जीई वाहनवती, अदालत की मदद के लिए नियुक्त किए गए वकील टीआर अध्यार्जुना, अस्पताल की ओर से वल्लभ सिसोदिया और याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत हुए वकील शेखर नफाडे शामिल थे। पीठ ने कहा कि वह वरिष्ठ अधिवक्ता अध्यार्जुना की दलील से सहमत है कि हमारे देश में भी विशेष परिस्थितियों में पैसिव यूथेन्सिया की अनुमति होनी चाहिए। पीठ ने इसका विरोध करने वाले वाहनवती की दलील को ठुकरा दिया।(इनपुट एजेंसियों से भी) संबंधित वीडियो : अरुणा को नहीं मिलेगी इच्छामृत्यु... | जीना ही होगा अरुणा को... | अरुणा की इच्छामृत्यु पर फैसला...


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