खाड़ी देशों में बेरोज़गारी की मार झेल रहे भारतीय, इधर घरवाले चुका रहे हैं कीमत

खाड़ी देशों में बेरोज़गारी की मार झेल रहे भारतीय, इधर घरवाले चुका रहे हैं कीमत

कवि श्यामला का परिवार

खास बातें

  • खाड़ी देशों में करीब 70 लाख भारतीय काम करते हैं
  • मंदी के कारण कई भारतीय हुए बेरोजगार
  • परिजनों से फोन पर बात करने के लिए नहीं हैं पैसे
चेन्नई:

चेन्नई से लगभग 100 किमी दूर कांचीपुरम जिले के वेंबक्कम में पांच परिवारों में हर एक सदस्य खाड़ी देशों में काम करता है. इन्हीं परिवारों में से एक परिवार पांडीश्वरी का है. पांडीश्वरी का पति बालामुर्गन शादी के महज सात माह बाद ही कुवैत चला गया था. लगभग एक साल से घर नहीं लौटा है. यहां तक कि अपनी बेटी युवैती को देखने भी नहीं आया.

एक फोन कॉल के लिए तरस रहे परिजन
कच्चे तेल के दामों में मंदी के कारण बालामुर्गन जैसे कई भारतीय बेरोजगार हो गए हैं. 24 वर्षीय पांडीश्वरी ने बताया कि उसके पति की जब नौकरी चली गई थी तब वह कॉल कम किया करते थे. कोई खबर न होने पर उसके लिए हर रात अपने पति के फ़ोन का इंतजार करना किसी दु:स्वप्न से कम नहीं था. संयुक्त परिवार होने के कारण वह अपने पति से बात भी नहीं कर पाती थी. हालांकि, अब बालामुर्गन को नौकरी मिल गई है. आज वह भाग्यशाली है कि उसकी अपने पति से वीडियो पर बात हो गई.

भर्राए गले से वह कहती है, "मैं कई समस्याओं से जूझ रही हूं और मेरे पति भी. इसलिए हम बहुत सीमित बात करते हैं. हम एक दूसरे को दिलासा देने का प्रयास करते हैं. बाद मैं मुझे रोना आ जाता है. इसके अलावा मैं और कर भी क्या सकती हूं."

कवि श्यामला को अपने पति के पार्थव शरीर का इंतजार
कुछ ही दूर पर रहने वाले परिवार दुखद त्रास्ती से गुजरा है. कवि श्यामला के पति मुथुवेल राजा की मौत कुछ दिनों पहले ही कुवैत में हो गई. राजा वहां स्थानीय लोगों के संपर्क से काम करने गए थे लेकिन उन्हें कोई नौकरी नहीं मिली. सभी ने उनकी तस्वीरें देखीं जिसमें राजा अस्पताल में कोमा में दिखाई दे रहे थे. उनका पार्थव शरीर अभी तक भारत नहीं आया है. श्यामला के तीन बच्चों को नहीं मालूम कि अब उन्हें अपने पिता का चेहरा फिर से देखने को नहीं मिलेगा.

हालांकि, राजा के परिजन साजिश की आशंका जता रहे हैं. श्यामला ने बताया, "मुझे पूरा भरोसा है कि उन्हें स्थानीय संपर्क के लोगों ने पीट-पीटकर मार डाला है. उन्हें कोई बीमारी नहीं थी. वह कभी भी बीमार नहीं हुए. यहां तक कि उन्हें कभी भी सिर दर्द तक नहीं हुआ."  

श्यामला के ससुर का कहना है, "सरकार को उसे नौकरी देनी चाहिए ताकि वह अपने तीन बच्चों का भरण-पोषण कर सके. उन्हें इस मामले की सच्चाई का पता लगाना चाहिए."

इस समुदाय के बीच कार्य करने वाला संगठन अरुणोदय माइग्रेंट इनिशिएटिव्स इन पीड़ित परिवारों की सहायता करता है. इस समूह की कोऑर्डिनेटर जे. जयंती ने बताया, "विदेश में रहने वाले पतियों और यहां पर रहने वाली उनकी पत्नियों से हम बात करते हैं. हम इस तरह से काम करते हैं कि पति-पत्नी के बीच बेहतर समझदारी बने."  
 
पांडीश्वरी और कवि श्यामला की कहानी वेंबक्कम में इसी तरह की त्रास्दी से गुजर रही हजारों महिलाओं की व्यथा को व्यक्त करती है. एक तरफ जहां उनके पति बेरोजगारी से जूझ रहे हैं, वही यहां भारत में उनके परिजन ज़िंदगी की कई विषम परिस्थितियों से मुकाबला करने को मजबूर हैं.


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