लॉकडाउन में भूखे रह रहे थे इस मंदिर के बंदर, आसमां बेगम ऐसे रख रही हैं इनका ख्याल

44 साल की आसमां बेगम पिछले सात महीने से बंदरों के लिए बिस्किट, केले, चने, दाल और अन्य चीजें लेकर आती है. इस लॉकडाउन के कारण आसमां बेगम ने बंदरों को भूखा नहीं रहने दिया. बता दें, उन्हें जिला प्रशासन और पुलिस से भी इस काम में मदद मिल रही है.

गुवाहटी:

कोरोनावायरस के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान जहां आम आदमी को कई परेशानी का सामना करना पड़ा, वहीं जानवरों की भी कई परेशानी बढ़ी. ऐसे में गुवाहाटी में आसमां बेगम नाम की महिला पिछले 7 महीने से बंदरों के लिए खाना लेकर जाती है और उन्हें चाव से खाना खिलाती है.

आपको बता दें, लॉकडाउन के कारण लोग सड़कों पर नहीं उतर रहे थे, जिस वजह से सड़कों पर रहने वाले लोगों को खाना नहीं मिल रहा था. ऐसे में गुवाहटी में आसमां बेगम ने जानवरों को खाना खिलाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली. वह लॉकडाउन के दौरान बंदरों के लिए खाना लेकर आती थी. आज उनकी चर्चा चारों तरफ हो रही है. लोग उनके इस नेक काम की वाहवाही कर रहे हैं.

44 साल की आसमां बेगम पिछले सात महीने से बंदरों के लिए बिस्किट, केले, चने, दाल और अन्य चीजें लेकर आती है. इस लॉकडाउन के कारण आसमां बेगम ने बंदरों को भूखा नहीं रहने दिया. बता दें, उन्हें जिला प्रशासन और पुलिस से भी इस काम में मदद मिल रही है.

आसमां बेगम ने NDTV से बात करते हुए कहा, 'जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तो हम सब ने अपने और अपने पालतू जानवरों के लिए खाने का सामान जमा कर दिया, लेकिन मेरे दिमाग में ये बात आई कि उन जानवरों का क्या होगा तो बाहर रहते हैं. उन्होंने कहा, बंदरों को वैसे भी भगवान की तरह माना जाता है.'

बता दें, आसमां बेगम गुवाहटी के मंदिर में रह रहे बंदरों को खाना खिलने आती है. ये मंदिर सदियों पुराना है. पहले श्रद्धालु जानवरों को खाना खिलाया करते थे, लेकिन लॉकडाउन के दौरान यहां लोग पूजा करने नहीं आते थे. पहले पूजा करने आने वाले लोग ही बंदरों को खाना दे दिया करते थे.

मंदिर के पंडित ने कहा, 'जब मंदिर बंद हो गया था, उस दौरान बंदरों के लिए खाने का इंतजाम करना मुश्किल हो गया था. सभी पुजारी घर लौट गए. आसमां ने इस मंदिर में आकर बंदरों का खाना दिया.'

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