Ayodhya Case : ज्यूरिस्टिक पर्सन के सवाल पर वकील ने कहा, 18-20 पीएचडी करनी पड़ेंगी

मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा- धर्मशास्त्र ने दो तरह के लोगों को ज्यूरिस्टिक पर्सन माना है, एक वे जिनको मानते हैं, और दूसरे जो खुद को ज्यूरिस्टिक पर्सन बना लेते हैं

Ayodhya Case : ज्यूरिस्टिक पर्सन के सवाल पर वकील ने कहा, 18-20 पीएचडी करनी पड़ेंगी

सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले में सोमवार को 29 वें दिन की सुनवाई हुई.

खास बातें

  • धवन ने कहा कि टाइटल की बात करें तो उनका राम चबूतरा पर ही हक है, बस
  • 22 दिसंबर 1949 तक लगातार नमाज हुई, तब तक वहां अंदर कोई मूर्ति नहीं थी
  • दोनों पक्षकारों के पास सन 1885 से पुराने राजस्व रिकॉर्ड नहीं
नई दिल्ली:

अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले (Ayodhya Case) में सोमवार को 29 वें दिन की सुनवाई हुई. कोर्ट (जस्टिस बोबड़े) ने पूछा कि अब तक कितने तरह के ज्यूरिस्टिक पर्सन को मान्यता मिली है. क्या उनकी सूची आप पेश कर सकते हैं? इस पर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि इसके लिए तो मुझे 18-20 पीएचडी करनी पड़ेंगी. उन्होंने कहा कि वैसे धर्मशास्त्र ने दो तरह के लोगों को ज्यूरिस्टिक पर्सन माना है. एक तो वे जिनको मानते हैं, और दूसरे जो खुद को ज्यूरिस्टिक पर्सन बना लेते हैं. कोर्ट तीसरे तरह की चीज़ को ज्यूरिस्टिक पर्सन बनाने पर सवाल कर रहा है, जो न तो खुद से है, न ही लोगों ने बनाया. अब आप इलाहाबाद के किले से चारों ओर के इलाके को ज्यूरिस्टिक पर्सन मान लें, जहां हनुमान और संगम है, तो ये कोई नए तरह के देवता हो जाएंगे.

धवन ने कहा कि पब्लिक लॉ ग्राउंड और प्राइवेट लॉ ग्राउंड की कसौटी पर इसे अलग-अलग कस सकते हैं. टाइटल की बात करें तो उनका राम चबूतरा पर ही हक है, बस. राजीव धवन ने कहा कि 1528 में पौने पांच सौ साल पहले मस्जिद बनाई थी और 22 दिसंबर 1949 तक लगातार नमाज हुई. तब तक वहां अंदर कोई मूर्ति नहीं थी. एक बार मस्जिद हो गई, तो हमेशा मस्जिद ही रहेगी.

धवन ने हाइकोर्ट के जस्टिस खान और अग्रवाल के तीन फैसलों के अंश के हवाले से मुस्लिम पक्ष के कब्जे की बात कही. उन्होंने कहा कि बाहरी अहाते पर ही उनका अधिकार था. लगातार और खास तौर पर कब्जे का कोई प्रूफ नहीं है. जबकि जस्टिस शर्मा ने हिन्दू पक्षकारों के अधिकार और पूजा की बात स्वीकारी है. हालांकि दोनों पक्षकारों के पास 1885 से पुराने राजस्व रिकॉर्ड भी नहीं हैं.

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राजीव धवन ने कहा कि धर्मशास्त्र में अपने से कुछ नहीं जोड़ा जा सकता. इस बारे में बहुत कुछ चर्चाएं चलती रहती हैं. जैसे कि पीएम मोदी कहते हैं कि हम देश बदल रहे हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं समझा जाना चाहिए कि संविधान बदला जा रहा है. उन्होंने कहा कि औरंगजेब ने कई मंदिरों को अनुदान भी दिए. नाथद्वारा मंदिर के बारे में भी यही मान्यता है. इसके मौखिक और लिखित प्रमाण भी हैं. बड़ी तादाद में लोग अगर किसी मंदिर में दर्शन-पूजन करते हैं तो यह कोई आधार नहीं है उसके ज्यूरिस्टिक पर्सन होने का.

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धवन ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले की खामी यह है कि एक ही जगह के दो ज्यूरिस्टिक पर्सन नहीं हो सकते. वैसे ही जैसे गुरुद्वारा और गुरुग्रंथ साहब दो ज्यूरिस्टिक पर्सन नहीं हो सकते. सिर्फ गुरुग्रंथ साहब जब गुरुद्वारा में होते हैं तभी वो गुरुद्वारा बनता है. उन्होंने ठाकुर गोकुलनाथ जी का हवाला देते हुए कहा कि वल्लभाचार्य ने सात मूर्तियां अपने सातों पोतों को दीं. गोकुल में उस पर ही विवाद हुआ. तब भी कोर्ट ने मूर्ति को ज्यूरिस्टिक पर्सन नहीं माना था.

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जस्टिस बोबड़े ने राजीव दवन को टोका कि बिना मूर्ति के भी तो कोई देवता हो सकता है. जैसे आकाश तत्व- चिदंबरम नटराज. धवन ने कहा कि लेकिन ऐसी जगह पर कुछ न कुछ निर्माण, ढांचा या आकार जरूर होना चाहिए जिससे यह विश्वास हो कि यह जगह ज्यूरिस्टिक पर्सन है. चिदंबरम इसका अपवाद हो सकता है. जस्टिस बोबड़े ने कहा कि चिदंबरम तो विशिष्ट केस था. धवन ने कहा कि गूगल के मुताबिक यह मंदिर चोल काल में 10 वीं शताब्दी में बनाया गया था. पीएस नरसिम्हा ने बताया कि चिदंबरम में शिव के पांच मंदिर बनाए गए. पांच तत्वों के प्रतीक, पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि और वायु.  चिदंबरम आकाश के प्रतीक हैं.

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अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को सुबह 10.30 से शाम पांच बजे तक सुनवाई करेगा. शुक्रवार को एक बजे तक सुनवाई होगी. पहले ही कोर्ट ने साफ कर दिया था कि मामले की सुनवाई पूरी करने के लिए एक घंटे ज्यादा बैठना पड़े तो कोर्ट बैठेगा.

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