अयोध्या मामला: मध्यस्थता समिति ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट, 10 मई को सुनवाई...

अयोध्या रामजन्मभूमि-बाबरी भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ कल सुनवाई करेगी. जस्टिस खलीफुल्ला कमेटी ने मध्यस्थता को लेकर अपनी रिपोर्ट दाखिल कर दी है. इसी को लेकर शुक्रवार सुबह 10.30 बजे सुनवाई होगी.

अयोध्या मामला: मध्यस्थता समिति ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट, 10 मई को सुनवाई...

प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली:

अयोध्या रामजन्मभूमि-बाबरी भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ कल सुनवाई करेगी. जस्टिस खलीफुल्ला कमेटी ने मध्यस्थता को लेकर अपनी रिपोर्ट दाखिल कर दी है. इसी को लेकर शुक्रवार सुबह 10.30 बजे सुनवाई होगी. CJI रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ मामले की सुनवाई करेगी. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को अपने फैसले में मामले में मध्‍यस्‍थता को मंजूरी दे दी थी और तीन मध्‍यस्‍थों की नियुक्ति भी की थी. इन मध्‍यस्‍थों में जस्टिस कलीफुल्ला (Kalifulla), वकील श्रीराम पंचू (Sriram Panchu) और आध्यात्मिक गुरु श्री-श्री रविशंकर हैं. मध्‍यस्‍थता कमेटी ने 13 मार्च से सभी पक्षों को सुनना शुरू किया था. 

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इससे पहले 9 अप्रैल को रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में एक और याचिका दाखिल की गई थी. निर्मोही अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका दाखिल की थी और इस याचिका में केंद्र सरकार की अयोध्या में अधिग्रहीत की गई अतिरिक्त जमीन को वापस देने की अर्जी का विरोध किया गया था. अखाड़ा ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को पहले भूमि विवाद का फैसला करना चाहिए. केंद्र के जमीन अधिग्रहण करने से अखाड़ा द्वारा संचालित कई मंदिर नष्ट हो गए. ऐसे में केंद्र को ये जमीन किसी को भी वापस करने के लिए नहीं दी जा सकती. अखाड़ा ने ये भी कहा था कि रामजन्मभूमि न्यास को अयोध्या में बहुमत की जमीन नहीं दी जा सकती. अखाड़ा ने ये याचिका केंद्र सरकार की जनवरी की याचिका पर दाखिल की थी जिसमें सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई थी कि वो विवादित भूमि के अलावा अधिग्रहीत की गई जमीन को वापस लौटाना चाहता है. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की अर्जी पर सुनवाई नहीं की है.

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अयोध्‍या विवाद का पूरा इतिहास
सवा सौ साल पहले हुए मंदिर मस्जिद झगड़े के पहले बाबरी मस्जिद के दरवाजे के पास बैरागियों ने एक चबूतरा बना रखा था. 1885 में महंत रघुबर दास ने अदालत से मांग की कि चबूतरे पर मंदिर बनाने की इजाजत दी जाए. यह मांग खारिज हो गई. 1946 में विवाद उठा कि बाबरी मस्जिद शियाओं की है या सुन्नियों की. फैसला हुआ कि बाबर सुन्नी की था इसलिए सुन्नियों की मस्जिद है. जुलाई 1949 में प्रदेश सरकार ने मस्जिद के बाहर राम चबूतरे पर राम मंदिर बनाने की कवायद शुरू की. लेकिन यह भी नाकाम रही. 1949 में ही 22-23 दिसंबर को मस्जिद में राम सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां रख दी गईं. 29 दिसंबर 1949 को यह संपत्ति कुर्क कर ली गई और वहां रिसीवर बिठा दिया गया. 1950 से इस जमीन के लिए अदालती लड़ाई का एक नया दौर शुरू होता है. इस तारीखी मुकदमे में जमीन के सारे दावेदार 1950 के बाद के हैं. 16 जनवरी 1950 को गोपाल दास विशारत अदालत गए. कहा कि मूर्तियां वहां से न हटें और पूजा बेरोकटोक हो. अदालत ने कहा कि मूर्तियां नहीं हटेंगी, लेकिन ताला बंद रहेगा और पूजा सिर्फ पुजारी करेगा. जनता बाहर से दर्शन करेगी. 1959 में निर्मोही अखाड़ा अदालत पहुंचा और वहां अपना दावा पेश किया.

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1961 में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड अदालत पहुंचा. मस्जिद का दावा पेश किया. 1 फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला जज ने जन्मभूमि का ताला खुलवा के पूजा की इजाजत दे दी. 1986 में कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाने का फैसला हुआ. 1989 में वीएचपी नेता देवकीनंदन अग्रवाल ने रामलला की तरफ से मंदिर के दावे का मुकदमा किया. नवंबर 1989 में मस्जिद से थोड़ी दूर पर राम मंदिर का शिलान्यास किया गया. 25 सितंबर 1990 को बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से एक रथ यात्रा शुरू की. इस यात्रा को अयोध्या तक जाना था. इस रथयात्रा से पूरे मुल्क में एक जुनून पैदा किया गया. इसके नतीजे में गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में दंगे भड़क गए. ढेरों इलाके कर्फ्यू की चपेट में आ गए. लेकिन आडवाणी को 23 अक्टूबर को बिहार में लालू यादव ने गिरफ्तार करवा लिया. 1990 में कारसेवक मस्जिद के गुम्बद पर चढ़ गए और गुम्बद तोड़ा. वहां भगवा फहराया. इसके बाद दंगे भड़क गए. जून 1991 में आम, चुनाव हुए और यूपी में बीजेपी की सरकार बन गई. 30-31 अक्टूबर 1992 को धर्म संसद में कारसेवा की घोषणा हुई.

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नवंबर 1992 में कल्याण सिंह ने अदालत में मस्जिद की हिफाजत करने का हलफनामा दिया. लेकिन 6 दिसंबर 1992 को लाखों कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद गिरा दी. कारसेवक 11 बजकर 50 मिनट पर मस्जिद के गुम्बद पर चढ़े. करीब 4.30 बजे मस्जिद का तीसरा गुम्बद भी गिर गया. इस घटना के बाद मुख्यमंत्री कल्याण सिंह जिन्होंने अदालत में हलफानामा देकर मस्जिद की हिफाजत की जिम्मेदारी ली थी, अपनी बात से पलट गए थे. उन्होंने इस पर फख्र जताया था. कल्याण सिंह ने कहा था, अधिकारियों का कर्मचारियों का किसी रूप में कहीं कोई दोष नहीं. कसूर नहीं, सारी जिम्मेदारी मैं अपने ऊपर लेता हूं. इस्तीफा देता हूं. किसी कोर्ट में कोई केस चलना है तो मेरे खिलाफ करो. किसी कमीशन में कोई इन्क्वायरी होनी है तो मेरे खिलाफ करो. हाईकोर्ट ने 2003 में झगड़े वाली जगह पर खुदाई करवाई ताकि पता चल सके कि क्या वहां पर कोई राम मंदिर था.

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2005 में यहां आतंकवादी हमला हुआ. लेकिन आतंकवादी वहां कुछ नुकसान नहीं कर सके और मारे गए. 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने आदेश पारित कर अयोध्या में विवादित जमीन को राम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बांटने का फैसला किया जिसे सबने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया है. 8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बातचीत से सुलझाने का फैसला किया और इसके लिए तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति का गठन कर दिया. इस समिति के अध्यक्ष जस्टिस खलीफुल्ला, श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू शामिल हैं.

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VIDEO: अयोध्या विवाद में मध्यस्थता की रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध