सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में फैसला सुनाते हुए निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज कर दिया है (प्रतीकात्मक फोटो)
खास बातें
- निर्मोही अखाड़े ने विवादित जमीन पर मालिकाना हक जताया था
- पुनर्निर्माण और रखरखाव का अधिकार मांगा था
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन हिस्सों में बांटी दी थी विवादित भूमि
नई दिल्ली: Ayodhya verdict: अयोध्या मामले (Ayodhya Case) में सुप्रीम कोर्ट का बहुप्रतीक्षित फैसला आ गया है. शीर्ष अदालत (Supreme Court) ने अपने फैसले में कहा है कि विवादित ढांचे की जमीन हिंदुओं को दी जाए. मुसलमानों को मस्जिद के लिए दूसरी जगह मिलेगी. कोर्ट ने इस मामले में निर्मोही अखाड़े (Nirmohi Akhada)का दावा खारिज कर दिया है. CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया.संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल थे. संविधान पीठ ने, अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों,सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर यह सुनवाई शुरू की थी.
Ayodhya Verdict: अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किसने क्या कहा..
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड (Sunni Waqf Board)और निर्मोही अखाड़ा (Nirmohi Akhada) को जमीन देने का इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला गलत था. गौरतलब है कि निर्मोही अखाड़े ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी लिखित दलील में कहा था कि विवादित भूमि का आंतरिक और बाहरी अहाता भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में मान्य है. हम रामलला के सेवायत हैं. यह हमारे अधिकार में सदियों से रहा है. ऐसे में हमें ही रामलला के मंदिर के पुनर्निर्माण, रखरखाव और सेवा का अधिकार मिलना चाहिए.
अयोध्या विवाद की शुरुआत वर्ष 1950 में हुई थी जिसमें जब भगवान राम की मूर्तियां विवादित ढांचे में पाई गई थीं. हिंदुओं का दावा था कि यही भगवान राम का जन्मस्थान है और भगवान राम प्रकट हुए हैं जबकि मुस्लिमों ने कहा था किसी ने रात में चुपचाप मूर्तियां वहां रख दीं. यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया. बाद में इसे विवादित स्थल मानकर ताला लगवा दिया गया था. अयोध्या मामले में साल 1950 में फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जी दाखिल की गई. इसमें एक में राम लला की पूजा की इजाजत और दूसरे में विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखे रहने की इजाजत मांगी गई. इसके बाद 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने तीसरी अर्जी दाखिल की. निर्मोही अखाड़ा ने अपने लिए राम जन्मभूमि का प्रबंधन और पूजन का अधिकार मांगा था. सुप्रीम कोर्ट ने उसका यह दावा खारिज कर दिया. निर्मोही अखाड़े ने विवादित जमीन पर मालिकाना हक जताया था.