Ayodhya Verdict: इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला ‘कानूनी रूप से टिकाऊ’ नहीं था: सुप्रीम कोर्ट

सामाजिक ताने-बाने को बर्बाद कर रही कानूनी लड़ाई पर पर्दा गिराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जमीन के बंटवारे से किसी का हित नहीं सधेगा और ना ही स्थायी शांति और स्थिरता आएगी. 

Ayodhya Verdict: इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला ‘कानूनी रूप से टिकाऊ’ नहीं था: सुप्रीम कोर्ट

प्रतीकात्मक तस्वीर

खास बातें

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट का 2010 का फैसला ‘कानूनी रूप से टिकाऊ’ नहीं था
  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन को तीन हिस्सों में बांटा था
  • कहा कि जमीन के बंटवारे से किसी का हित नहीं सधेगा
नई दिल्ली:

अयोध्या विवादित भूमि पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने शनिवार को अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है. फैसले में कोर्ट ने विवादित भूमि पर मुस्लिम पक्ष के दावे को खारिज करते हुए पूरी जमीन को रामलला विराजमान को देने को कहा है. इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार से तीन महीने के अंदर मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने के लिए कहा. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को भी अमान्य कहा जिसमें कोर्ट ने विवादित भूमि को तीन हिस्सा में बांट दिया था. इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अयोध्या पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का 2010 का फैसला ‘कानूनी रूप से टिकाऊ' नहीं था. बता दें, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला के बीच तीन हिस्सों में बांट दिया था. वहीं सामाजिक ताने-बाने को बर्बाद कर रही कानूनी लड़ाई पर पर्दा गिराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जमीन के बंटवारे से किसी का हित नहीं सधेगा और ना ही स्थायी शांति और स्थिरता आएगी. 

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बता दें, CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि 30 सितंबर, 2010 के अपने फैसले में उच्च न्यायालय ने ऐसा रास्ता चुना जो खुला हुआ नहीं था और ऐसी राहत दी जिसकी मांग उनके समक्ष दायर मुकदमों में नहीं की गई थी. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं. पीठ ने कहा, हम पहले ही इस नतीजे पर पहुंच चुके थे कि हाईकोर्ट द्वारा विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जाना कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं था. यहां तक कि शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिहाज से भी वह सही नहीं था.

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इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में रामलला विराजमान को विवादित जमीन देने का फैसला किया था. इस फैसले के साथ ही रामलला को 2.77 एकड़ जमीन मिलेगी. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने सुनाया था. इस बेंच में CJI रंजन गोगोई भी शामिल थे. फैसले के दौरान कोर्ट ने कहा कि हमारे सामने जो सबूत रखे गए वह बताता है कि विवादित जमीन हिंदुओं की है. कोर्ट के इस फैसले का सभी राजनीतिक पार्टियों ने स्वागत किया है. इस फैसले के बाद तमाम पार्टियों ने इसे लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी. बता दें, हिंदुओं का मानना है कि ध्वस्त संरचना के स्थान पर भगवान राम का जन्म हुआ था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि उस जगह के आसपास सीता रसोई, राम चबुतरा और भंडार गृह के अस्तित्व का प्रमाण मिला है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मंदिर के निर्माण के लिए सरकार पहले एक ट्रस्ट बनाए. इसके लिए सरकार को तीन महीने का समय दिया गया है.  

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Video: अयोध्या मामले पर पांच जजों की बेंच ने सुनाया फैसला



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