SC का पूर्व जज की सुरक्षा बढ़ाने से इनकार, बाबरी मामले में BJP नेताओं समेत अन्य पर सुनाया था फैसला

Babri demolition Court case :लखनऊ स्पेशल कोर्ट के जज एसके यादव ने अपने आखिरी मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए अपनी निजी सुरक्षा जारी रखने के लिए कहा है.

SC का पूर्व जज की सुरक्षा बढ़ाने से इनकार, बाबरी मामले में BJP नेताओं समेत अन्य पर सुनाया था फैसला

Babri demolition :फैसला घटना के 28 साल बाद 30 सितंबर 2020 को आया था. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बाबरी विध्वंस मामले (Babri demolition case) में फैसला सुनाने वाले जज को सेवानिवृत्ति के बाद भी सुरक्षा मुहैया कराने की याचिका खारिज कर दी है. जज एसके यादव ने सुरक्षा जारी रखने के लिए स्वयं शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया. 

यह भी पढ़ें- बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में फैसला आने से पहले जानें 10 बड़ी बातें

जज एसके यादव ने बाबरी विध्वंस मामले में बीजेपी नेताओं समेत सभी आरोपियों को बरी करने का फैसला सुनाया था. इस मामले में एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत कई बड़े नेता आरोपी थे. अदालत ने कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद लगातार सुरक्षा मुहैया नहीं कराई जा सकती. लखनऊ स्पेशल कोर्ट के जज एसके यादव ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सुरक्षा का मांग की थी. जज यादव ने अपने आखिरी मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए अपनी निजी सुरक्षा जारी रखने के लिए कहा है.

यह भी पढ़ें- बाबरी विध्वंस फैसले पर बोले असदुद्दीन ओवैसी - किसने गिराई मेरी मस्जिद, क्या जादू से गिर गई?

ट्रायल के दौरान दी गई थी सुरक्षा
इससे पहले ट्रायल के दौरान जज ने सुप्रीम कोर्ट से सुरक्षा मुहैया करने की मांग की थी, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया था. अदालत ने यूपी सरकार को सुरक्षा देने के निर्देश दिए थे. हालांकि फैसला आने और रिटायर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जज को सुरक्षा जारी रखने से इनकार कर दिया है. गौरतलब है कि बाबरी विध्वंस मामले में यह फैसला घटना के करीब 28 साल बाद 30 सितंबर 2020 को आया था. 

28 साल बाद 30 सितंबर को आया था फैसला
बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले का ट्रायल करने वाले स्पेशल जज एस के यादव पिछले साल 30 सितंबर को ही रिटायर होने वाले थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनका कार्यकाल फैसला आगे बढ़ाया था. सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2017 में दो साल के भीतर मुकदमा निपटा कर फैसला सुनाने का आदेश दिया था. इसके बाद तीन बार समय बढ़ाया और अंतिम तिथि 30 सितंबर 2020 तय की थी. घटना की पहली FIR नंबर 197  उसी दिन 6 दिसंबर 1992 को श्रीराम जन्मभूमि सदर फैजाबाद पुलिस थाने के थानाध्यक्ष प्रियंबदा नाथ शुक्ल ने दर्ज कराई थी. दूसरी FIR नंबर 198 राम जन्मभूमि पुलिस चौकी के प्रभारी गंगा प्रसाद तिवारी की थी.

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com