बाबरी मस्जिद विध्वंस केस : CBI को लड़नी पड़ी लंबी कानूनी लड़ाई, जानें मुकदमे ने कैसे पकड़ी रफ्तार

बाबरी मस्जिद विध्वंस केस (Babri Masjid Demolition Case) में बुधवार को लखनऊ की एक स्पेशल सीबीआई कोर्ट (Special CBI Court) फैसला सुनाने वाली है. इस केस में बीजेपी (BJP) के वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह और अन्य लोग मुख्य आरोपी हैं.

बाबरी मस्जिद विध्वंस केस : CBI को लड़नी पड़ी लंबी कानूनी लड़ाई, जानें मुकदमे ने कैसे पकड़ी रफ्तार

प्रतीकात्मक तस्वीर

बाबरी मस्जिद विध्वंस केस (Babri Masjid Demolition Case) में बुधवार को लखनऊ की एक स्पेशल सीबीआई कोर्ट (Special CBI Court) फैसला सुनाने वाली है. इस केस में बीजेपी (BJP) के वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह और अन्य लोग मुख्य आरोपी हैं. कोर्ट ने सभी आरोपियों को उस दिन कोर्ट में मौजूद रहने को कहा है. हालांकि अब खबर आई है कि लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी फैसला सुनाए जाने के समय मौजूद नहीं रहेंगे. इस मामले में सीबीआई को लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी.

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में फैसला आने से पहले जानें 10 बड़ी बातें

पहले यह मुकदमा दो जगह चल रहा था. भाजपा के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित आठ अभियुक्तों के खिलाफ रायबरेली की अदालत में और बाकी लोगों के खिलाफ लखनऊ की विशेष अदालत में. रायबरेली में जिन आठ नेताओं का मुकदमा था उनके खिलाफ साजिश के आरोप नहीं थे.

उन पर साजिश में मुकदमा चलाने के लिए सीबीआई को लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी और अंत में सुप्रीम कोर्ट के 19 अप्रैल 2017 के आदेश के बाद 30 मई 2017 को अयोध्या की विशेष अदालत ने उन पर भी साजिश के आरोप तय किये और सारे अभियुक्तों पर एक साथ संयुक्त आरोपपत्र के मुताबिक एक जगह लखनऊ की विशेष अदालत में ट्रायल शुरू हुआ.

Babri Demolition Case: बुधवार को आएगा फैसला, आडवाणी, जोशी नहीं रहेंगे कोर्ट में मौजूद

इस वजह से मुकदमे ने पकड़ी रफ्तार

अप्रैल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने आठ नेताओं के खिलाफ ढांचा ढहने की साजिश में मुकदमा चलाने को हरी झंडी देते समय और रायबरेली का मुकदमा लखनऊ स्थानांतरित करते वक्त ही केस में हो चुकी अत्यधिक देरी पर क्षोभ व्यक्त करते हुए साफ कर दिया था कि नये सिरे से ट्रायल शुरू नहीं होगा जितनी गवाहियां रायबरेली में हो चुकी हैं उसके आगे की गवाहियां लखनऊ में होंगी. मामले में रोजाना सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट का यह वही आदेश था जिससे इस मुकदमें ने रफ्तार पकड़ी.

कोर्ट ने कहा था कि बेवजह का स्थगन नहीं दिया जाएगा. सुनवाई पूरी होने तक जज का स्थानांतरण नहीं होगा. इस आदेश के बाद मुकदमे की रोजाना सुनवाई शुरू हुई जिससे केस ने रफ्तार पकड़ी.

Babri Demolition Case: 49 में से 17 आरोपियों की हो चुकी है मौत, ये हैं बचे हुए 32 आरोपी

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पहले जिस आदेश ने लगभग ठहरी सुनवाई को गति दी थी वह था इलाहाबाद हाईकोर्ट का 8 दिसंबर 2011 का आदेश जिसमें हाईकोर्ट ने रायबरेली के मुकदमें की साप्ताहिक सुनवाई का आदेश दिया था. लेकिन असली रफ्तार सुप्रीम कोर्ट के रोजाना सुनवाई के आदेश से आयी. इसके बावजूद मुकदमा दो साल में नहीं निबटा और सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कर रहे जज के आग्रह पर तीन बार समय सीमा बढ़ाई. 19 जुलाई 2019 को 9 महीने और 8 मई 2020 को चार महीने बढ़ा कर 31 अगस्त तक का समय दिया और अंत में तीसरी बार 19 अगस्त 2020 को एक महीने का समय और बढ़ाते हुए 30 सितंबर तक फैसला सुनाने की तारीख तय की थी.