यह ख़बर 18 अप्रैल, 2011 को प्रकाशित हुई थी

बिनायक सेन जेल से रिहा, समर्थक खुश

खास बातें

  • सर्वोच्च न्यायालय ने तीन दिन पहले उनकी जमानत पर फैसला दिया था। अदालत ने कहा था कि सेन के खिलाफ राजद्रोह का कोई अभियोग नहीं बनता।
रायपुर:

नक्सलियों के साथ सम्बंध को लेकर निचली अदालत से राजद्रोह के अभियोग में उम्रकैद की सजा पाए सामाजिक कार्यकर्ता बिनायक सेन सर्वोच्च न्यायालय से जमानत मिलने के बाद सोमवार को रायपुर जेल से रिहा हो गए। सर्वोच्च न्यायालय ने तीन दिन पहले उनकी जमानत पर फैसला दिया था। अदालत ने यह भी कहा था कि 61 वर्षीय सेन के खिलाफ राजद्रोह का कोई अभियोग नहीं बनता। उनकी रिहाई के बाद जेल के बाहर प्रतीक्षा कर रहे लोगों में उल्लास और राहत देखा गया। जेल के बाहर उनकी बूढ़ी मां, पत्नी और बेटी के साथ बड़ी संख्या में समर्थक भी उनकी प्रतीक्षा में खड़े थे। भावुक परिजनों और समर्थकों ने सेन के बाहर निकलते ही उन्हें गले लगा लिया। छत्तीसगढ़ की एक अदालत ने बीते साल 24 दिसम्बर को उन्हें राजद्रोह के अभियोग में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उन पर कोलकाता के व्यवसायी गुहा और नक्सली विचारक नारायण सान्याल के बीच संदेशवाहक की भूमिका निभाने का आरोप है। इन दोनों को भी उम्रकैद की सजा मिली है। सेन ने उच्च न्यायालय में भी जमानत की अर्जी दाखिल की थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था। लेकिन 10 मार्च के अदालत के इस फैसले को उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को उनके हक में फैसला सुनाया और कहा कि किसी व्यक्ति के घर से महात्मा गांधी की आत्मकथा मिलने का यह अर्थ नहीं है कि वह गांधीवादी हो। न्यायाधीश हरजीत सिंह बेदी और न्यायाधीश चंद्रमोली प्रसाद की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा था, "हम एक लोकतांत्रिक देश में हैं। वह सहानुभूति रखने वाले हो सकते हैं। एक कारण को लेकर कई सहानुभूति रखने वाले हो सकते हैं।" अदालत ने छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के इस आरोप को भी नकार दिया कि सेन राज्य के खिलाफ दुराग्रह और असंगति को बढ़ावा दे रहे हैं। अदालत ने कहा, "नक्सली विचारधारा और दुष्प्रचार सामग्री वितरित करने का अर्थ राजद्रोह नहीं है। यदि ये दस्तावेज उनके पास थे, तो भी उन्हें राजद्रोह का दोषी नहीं माना जा सकता।" सेन को जमानत देते हुए अदालत ने कहा था, "यदि हम आपके (राज्य सरकार) पक्ष को लेते हैं तो भी क्या इससे राजद्रोह साबित होता है?" राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में सेन की याचिका के प्रत्युत्तर में कहा था कि उनकी विचारधारा नक्सलियों के समान ही है और कट्टर नक्सली नेता ने उन्हें कामरेड कहकर सम्बोधित किया है।


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