जब सोनिया गांधी ने कहा- 'मेरे बच्चे सड़कों पर भीख मांग लेंगे लेकिन राजनीति में नहीं आएंगे'

राहुल गांधी की राजनीतिक गलियारों में सक्रियता बढ़ी है और वह पार्टी को फिर 'फर्श से अर्श' पर पहुंचाने के लिए जी-तोड़ प्रयास कर रहे हैं.

जब सोनिया गांधी ने कहा- 'मेरे बच्चे सड़कों पर भीख मांग लेंगे लेकिन राजनीति में नहीं आएंगे'

राहुल गांधी कांग्रेस को फिर 'फर्श से अर्श' पर पहुंचाने के लिए जी-तोड़ प्रयास कर रहे हैं.

खास बातें

  • आज राहुल गांधी अपना 48वां जन्मदिन मना रहे हैं
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम बड़े नेताओं ने उन्हें बधाई दी
  • मां सोनिया गांधी कभी नहीं चाहती थीं कि राहुल राजनीति में आएं
नई दिल्ली:

आज कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का जन्मदिन है. वे अपना 48वां जन्मदिन मना रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम बड़े नेताओं ने उन्हें जन्मदिन की बधाई दी है. किसी जमाने में राजनीति की 'सिरमौर' रही कांग्रेस की कमान संभालने के बाद राहुल गांधी की राजनीतिक गलियारों में सक्रियता बढ़ी है. अपनी मां और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस की कमान संभालने वाले राहुल गांधी पार्टी को फिर 'फर्श से अर्श' पर पहुंचाने के लिए जी-तोड़ प्रयास कर रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस सोनिया गांधी ने राहुल को पार्टी की अध्यक्षी सौंपी, वह खुद कभी नहीं चाहती थीं कि उनके बच्चे राजनीति में आएं. उन्होंने तो यहां तक कहा था कि मेरे बच्चे सड़कों पर भीख मांग लेंगे, लेकिन राजनीति में कभी नहीं आएंगे.  

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किस्सा इमरजेंसी के बाद के दौर है. जनता पार्टी की 'आंधी' में कांग्रेस पूरी तरह बिखर चुकी थी. ऐसे ही एक रोज राजीव गांधी अपनी पत्नी सोनिया गांधी के साथ दिल्ली की एक आलीशान पार्टी से लौट रहे थे. उनके साथ वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह भी थीं, जो गाड़ी की पिछली सीट पर बैठी थीं. गाड़ी रेस कोर्स के बीचो-बीच 'लुटियंस दिल्ली' से गुजर रही थी. बातें शुरू हुईं और तमाम पड़ावों से होते हुए यह राजनैतिक दरवाजे पर आ टिकीं. तवलीन सिंह ने बातों-बातों में सोनिया गांधी से पूछ लिया कि क्या वह चाहती हैं कि कभी उनके बच्चे राजनीति में जाएं? सोनिया गांधी कुछ सेकेंड तक चुप रहीं और फिर पीछे मुड़ीं. उन्होंने दो टूक कहा कि 'मेरे बच्चे सड़कों पर भीख मांग लेंगे, लेकिन राजनीति में कभी नहीं आएंगे'. सोनिया के यह कहने के बाद गाड़ी में फिर चुप्पी छा गई. तवलीन सिंह अपनी किताब 'दरबार' में इस घटना को याद करते हुए लिखती हैं कि, 'सोनिया के चेहरे पर ऐसा कुछ था जिसने मुझे सोचने पर मजबूर किया कि जितनी मजबूत वह अपने आप को दिखाती हैं, उतनी हैं नहीं'.

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बहरहाल  नियति को कुछ और मंजूर था और उसके बाद जो हुआ वह पूरा देश जानता है. इंदिरा गांधी की हत्या...संजय गांधी की असमय मौत...फिर राजीव गांधी ने सत्ता संभाली और बाद में उनकी भी हत्या कर दी गई. इसके बाद तमाम उठा-पटक के बीच सोनिया गांधी को पार्टी की कमान संभालनी पड़ी और इस बीच तमाम-उतार चढ़ाव भी आए. अब कांग्रेस एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां से उसके राजनैतिक गलियारों में 'गुम' हो जाने का खतरा है. विपक्षी भाजपा के शब्दों में कहें तो 'कांग्रेस मुक्त भारत'. ऐसे वक्त में पूरी कांग्रेस पार्टी और खुद सोनिया गांधी को उम्मीद है कि राहुल गांधी कोई 'चमत्कार' करेंगे, वही सोनिया, जिन्होंने कभी नहीं चाहा था कि राहुल पर राजनैतिक गलियारे की छाया भी पड़े. 

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