बीजेपी ऐसी अकेली पार्टी, जो रिटायर मुस्लिम सांसदों को फिर से भेज रही राज्यसभा...

बीजेपी ऐसी अकेली पार्टी, जो रिटायर मुस्लिम सांसदों को फिर से भेज रही राज्यसभा...

11 जून के चुनाव को बाद राज्‍यसभा में मुस्लिम सांसदों की संख्‍या और कम हो जाएगी।

खास बातें

  • 2014 में 545 सदस्‍यीय लोकसभा में केवल 23 मुस्लिम सांसद चुने गए
  • इस साल राज्‍यसभा से जो 58 सांसद रिटायर हो रहे हैं, उनमें 6 मुस्लिम हैं
  • रिटायर हो रहे अपने दोनों सांसदों को राज्‍यसभा वापस भेज रही बीजेपी
नई दिल्ली:

वर्ष 2014 के आम चुनाव में 545 सदस्यीय लोकसभा में महज 23 मुस्लिम सांसद चुने गए, मुस्लिम सांसदों की यह संख्‍या अब तक की सबसे कम है। संसद में सबसे ज्‍यादा योगदान देने वाले और आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से मुस्लिम समाज का एक भी सदस्य चुनकर नहीं आया है।

विपक्षी पार्टियों और समीक्षकों का आरोप है कि प्रचार के दौरान बीजेपी के हिंदुत्‍व के एजेंडे के कारण वोटरों के ध्रुवीकरण के चलते यह नौबत आई। इसके करीब दो साल बाद 11 जून को हो रहे राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव चिंताओं से भरा संदेश दे रहे हैं। उच्च सदन से जो 58 सांसद रिटायर हो रहे हैं जिनमें से छह मुस्लिम हैं। इनमें से, एए टाक और मोहसिना किदवई कांग्रेस से, एमजे अकबर और केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी बीजेपी से, सलीम अंसारी बीएसपी से और गुलाम रसूल बलावी जेडीयू से हैं।

खास बात यह है कि कांग्रेस की ओर से अब तक घोषित किए गए उम्‍मीदवारों, पी. चिदंबरम, कपिल सिब्बल, जयराम रमेश, विवेक तन्खा, ऑस्‍कर फर्नांडीज, अंबिका सोनी, छाया वर्मा और प्रदीप टम्टा में रिटायर हुए इन दोनों मुस्लिम सदस्‍यों को जगह नहीं मिली है। इस बात के संकेत भी नहीं हैं कि कांग्रेस के इन दोनों मुस्लिम सदस्यों में से किसी की भी वापसी होने वाली है। यूपी से बीएसपी के सलीम अंसारी रिटायर हो रहे हैं और मायावती की पार्टी ने पार्टी के ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्रा के अलावा अशोक सिद्धार्थ को प्रत्याशी बनाया है। यूपी में मुस्लिमों के वोटों पर दावेदारी जताने वाली समाजवादी पार्टी ने भी राज्यसभा के लिए एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं चुना है। पार्टी के दो सांसद रिटायर हो रहे हैं और यह अब सात सांसद उच्‍च सदन में भेज सकती है।

इस तरह लोकसभा में मुस्लिम चेहरे के लिए तरस रहे यूपी से अब यह लगभग तय हो गया है कि अगस्‍त में दो सांसदों के रिटायर होने के बाद केवल चार मुस्लिम चेहरे रहेंगे। इस तरह से यूपी के चार करोड़ मुस्लिमों की नुमाइंदगी केवल चार लोग करेंगे। बिहार से सत्ताधारी जेडीयू के गुलाम रसूल की वापसी नहीं हो रही है। पार्टी ने पूर्व अध्‍यक्ष शरद यादव, नीतीश कुमार के करीबी आरसीपी सिंह को उतारा है। दूसरी ओर, उनके सहयोगी लालू प्रसाद यादव  ने अपनी बेटी मीसा भारती और अपने वकील राम जेठमलानी की उम्‍मीदवारी पर भरोसा जताया है।

इन सबसे अलग, बीजेपी ने अपने दोनों चेहरों को फिर से राज्यसभा में मौका देने का निर्णय लिया है। पार्टी ने मुख्तार अब्बास नकवी को झारखंड से और एमजे अकबर को मध्यप्रदेश से उम्मीदवार घोषित किया है। बजट सत्र के समापन तक राज्‍यसभा में 24 मुस्लिम सदस्‍य थे लेकिन जून 11 के चुनाव के बाद यह घटकर 20 रह जाएंगे। यह केवल संसद की ही बात नहीं है, अगले वर्ष देश जब नया राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति चुनेगा तो निर्वाचक मंडल में भी मुस्लिमों की नुमाइंदगी पहले से कम होगी।

संसद के दोनों सदनों के सदस्‍यों के अलावा राज्‍य विधानसभाओं के विधायक इन चुनाव में वोट देते हैं। वर्ष 2012 के निर्वाचक मंडल में 410 (कुल संख्या का 8.37 प्रतिशत) मुस्लिम सदस्‍य थे। उस समय दोनों सदनों के 776 सांसदों में से 53 मुस्‍लिम थे जबकि देश के 4120 विधायकों में मुस्लिमों की संख्‍या 357 थी। इसके बाद से काफी बदलाव आया है। विधायी निकायों में मुस्लिमों को भेजने के मामले में बेहतर रिकॉर्ड रखने वाली कांग्रेस अब कुछ राज्यों में सिमटकर रह गई है। दूसरी ओर, असम जैसे राज्यों में भी बीजेपी के उदय से भी राज्‍य विधानसभाओं में मुस्लिम सदस्यों की संख्‍या घटी है।


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