यह ख़बर 11 जून, 2013 को प्रकाशित हुई थी

संघ के हस्तक्षेप से नरम पड़े आडवाणी, मोदी ने किया स्वागत

खास बातें

  • भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में उत्पन्न नेतृत्व संकट का मंगलवार को संघ के हस्तक्षेप के बाद समाधान हो गया। एक दिन पहले सोमवार को अपने ही साथी नेताओं पर कड़ा प्रहार करने और पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा सौंपने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने एक दिन बाद नाटकीय रूप से
नई दिल्ली:

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में उत्पन्न नेतृत्व संकट का मंगलवार को संघ के हस्तक्षेप के बाद समाधान हो गया। एक दिन पहले सोमवार को अपने ही साथी नेताओं पर कड़ा प्रहार करने और पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा सौंपने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने एक दिन बाद नाटकीय रूप से यू-टर्न ले लिया।

आडवाणी के तेवर में यह बदलाव राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के समझाने के बाद आया। भागवत ने उनसे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी, संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से इस्तीफा देने का अपना फैसला बदलने के लिए कहा।

आडवाणी के पार्टी पदों पर बने रहने के फैसले का गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने तुरंत स्वागत किया।

आडवाणी के बारे में फैसले की घोषणा पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उनके आवास पर की। घोषणा के समय पार्टी के अन्य नेता तो मौजूद थे, लेकिन पूर्व उप प्रधानमंत्री मीडिया के सामने नहीं आए।

आडवाणी के तेवर में नरमी आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत के समझाने के बाद आई। भागवत ने उनसे राष्ट्रीय कार्यकारिणी, संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति छोड़ने का अपना फैसला वापस लेने का आग्रह किया।

राजनाथ सिंह ने बताया, "आज दोपहर मोहन भागवत ने आडवाणीजी से बात की और उनसे राष्ट्रहित में पार्टी पदों पर बने रहने के लिए कहा।" उन्होंने आगे कहा, "आडवाणीजी ने भागवतजी का परामर्श स्वीकार करने का फैसला लिया है।"

राजनाथ सिंह का बयान इस बात की छद्म पुष्टि है कि नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख नामित किए जाने में अपनी चिंताओं को दरकिनार किए जाने से नाराज होकर पार्टी के सभी पदों इस्तीफा देने के बाद वही भाजपा आडवाणी को मनाने में नाकाम रही जिसकी स्थापना उन्होंने 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी व अन्य नेताओं के साथ मिलकर की थी।

आडवाणी के पार्टी पदों से इस्तीफा देने और पार्टी के अधिकांश नेताओं पर निजी एजेंडे को तरजीह देने का आरोप लगाने के बाद भाजपा के बड़े नेताओं ने उनके आवास पर डेरा डाल दिया, लेकिन वे टस से मस नहीं हुए।

राजनाथ सिंह ने सोमवार को घोषणा की थी कि आडवाणी का पार्टी के पदों से इस्तीफा मंजूर नहीं किया जाएगा।

मंगलवार को भाजपा नेताओं और आडवाणी की बैठक जारी रही। कई नेताओं ने इस बात पर जोर दिया था कि इस संकट का शीघ्र ही समाधान हो जाएगा।

मोदी के मुखर समर्थकों में से एक राजनाथ सिंह ने कहा, "पार्टी की तरफ से मैंने आडवाणीजी को आश्वस्त किया है कि पार्टी के कामकाज के संबंध में उनकी चिंताओं का समाधान किया जाएगा और मैं उनके साथ उन चिंताओं के समाधान की युक्ति पर चर्चा करुंगा।"

भाजपा अध्यक्ष के साथ सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी और उमा भारती के अलावा अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद थे।

बीमारी का बहाना बनाते हुए आडवाणी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से दूर रहे। संपूर्ण राजनीतिक जीवन में यह पहला मौका था जब आडवाणी भाजपा की एक महत्वपूर्ण बैठक से अलग रहे।

जिस समय पूरी पार्टी मोदी के उन्नयन का जश्न मानाने में मशगूल थी उसी समय आडवाणी ने इस्तीफा देकर सभी को स्तब्ध कर दिया।

इस्तीफे से भी ज्यादा भाजपा को आडवाणी के इस्तीफे के पत्र में लगाया गया यह आरोप कि 'यह आदर्शवादी पार्टी नहीं रही' ने आहत किया था। उन्होंने यह भी कहा था कि वे भाजपा की मौजूदा कार्यप्रणाली या जिस दिशा में यह जा रही उससे तालमेल बिठाने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं।

यद्यपि मोदी पार्टी के आम सदस्यों के बीच लोकप्रिय नेता हो चुके हैं फिर भी भाजपा की कई प्रदेश इकाइयां समेत एक बड़ा वर्ग आडवाणी के साथ सहानुभूति रखता है। आडवाणी और वाजपेयी दशकों तक जनसंघ और बाद में उसकी उत्तराधिकारी भाजपा के चेहरे बने रहे।

संकट के समापन के बाद शाहनवाज हुसैन ने मंगलवार को कहा, "उन्होंने पार्टी को खड़ा करने में बड़ी भूमिका निभाई है और उम्मीद है कि उनका आशीर्वाद बना रहेगा।"

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भाजपा के भीतर उत्पन्न संकट से सकते में चल रहे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने भी राहत की सांस ली। भाजपा की सहयोगी और राजग की घटक जनता दल-यूनाइटेड के केसी त्यागी ने कहा कि राजग वेंटिलेटर पर था और उसे आडवाणी से आक्सीजन की उम्मीद थी।