यह ख़बर 08 अप्रैल, 2013 को प्रकाशित हुई थी

रिश्वत की नींव पर तैयार हुई थी मुंब्रा की इमारत

खास बातें

  • मुंब्रा में ढही इमारत ने एक बार फिर बिल्डर, नेता और अफसरों के बीच सांठगांठ को उजागर कर दिया है। पुलिस का दावा है कि बिल्डर की डायरी से उसे यह भी पता लगा है कि कब−कैसे और किसे कितनी रिश्वत दी गई।
मुंबई:

मुंब्रा में ढही इमारत ने एक बार फिर बिल्डर, नेता और अफसरों के बीच सांठगांठ को उजागर कर दिया है। पुलिस का दावा है कि बिल्डर की डायरी से उसे यह भी पता लगा है कि कब−कैसे और किसे कितनी रिश्वत दी गई।

दलदली जमीन पर सिर्फ तीन महीने में खड़ी इस इमारत की तकदीर कबाड़ी से बिल्डर बने आरोपी जमील अंसारी और उसके साथियों ने पहले ही लिख दी थी।

इस खौफनाक हादसे की शुरुआत बिल्डर के मंसूबों और जब्बार पटेल नाम के दलाल के साथ उसकी मुलाकात से शुरू हुई। पुलिस हेड कांस्टेबल जहांगीर सैय्यद को अपने साथ मिलाया। ईमान बिका 4000 रुपये में। सैय्यद के बाद कड़ी जुड़ी इलाके के सीनियर इंस्पेक्टर के. नाईक से। आंखें मूंदे रखने की कीमत तय हुई पांच लाख रुपये। जब तय हो गया कि अब मामले में पुलिस टांग नही अड़ाएगी तो बारी आई टीएमसी के अधिकारियों को पटाने की। जब्बार ने यहां सबसे पहले पकड़ा स्थानीय पार्षद हीरा पटेल को। पटेल ने टीम में शामिल होने के लिए पांच लाख रुपये लिए।

हीरा पाटिल ने बिल्डरों की मुलाकात टीएमसी के क्लर्क किशन मडके से करवाई। मडके के टीम में आते ही एडिश्नल कमिश्नर बाबा साहेब आंधले और डिप्टी कमिश्नर दीपक चव्हाण भी पांच-पांच लाख रुपये के लिए बिकने को तैयार हो गए।

देखते ही देखते सिर्फ तीन महीने में ही सात मंजिला इमारत खड़ी हो गई। अमूमन ऐसी इमारत के लिए सिर्फ संबंधित विभागों से इजाजत मिलने में ही 6−8 महीने लग जाते हैं।

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कम पैसे में घटिया माल की सप्लाई की मटेरियल सप्लायर अफरोज अंसारी ने। और जैसे−जैसे इमारत की एक−एक मंजिल बनती गई। गरीबों को किराए पर लाकर उसमें बसाया गया ताकि प्रशासन बिल्डिंग पर हथौड़ा न चले सके।