फाइल फोटो : लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार
पटना : बिहार में चुनावी साल है और हर दल अपने राजनीतिक नफा-नुकसान के हिसाब से हर मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रहा है। केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते जाति की जनगणना को सार्वजनिक नहीं करने की घोषणा क्या की, बिहार में उनके विरोधियों को बैठे-बिठाए एक मुद्दा मिल गया है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने केंद्र पर जान-बूझकर पिछड़ों, दलितों के खिलाफ साजिश का आरोप लगाते हुए इस मुद्दे पर 13 जुलाई को राजभवन मार्च करने की घोषणा की।
उधर, कुछ महीने नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी बनने के बाद पार्टी से बगावत कर भाजपा के करीब आए राजग के महादलित नेता व पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को भी जाति आधारित जनगणना रिपोर्ट का खुलासा न करने के भाजपा के फैसले पर आपत्ति है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट को गुप्त रखने की क्या जरूरत है? मांझी ने अपने फेसबुक वाल पर सोमवार को पोस्ट किया, "जब जातिगत जनगणना के लिए आयोग बना, सर्वे हुआ तो इसे गुप्त रखने की क्या जरूरत है? तथ्य सामने लाया जाना चाहिए।"
सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इस विषय पर केंद्र से पूछा कि जब वो पिछड़ा मंच बना रही है तब उसे जाति की जनगणना के आंकड़े जारी करने में क्या दिक्कत है? नीतीश ने बीजेपी पर जाति की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि इन दिनों बिहार में बीजेपी हर जाति का सम्मलेन करती है। नीतीश ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बिहार में पिछले साल लोकसभा चुनावों में अति पिछड़ी जाति का पेश किया गया, तब पार्टी जाति की जणगणना की रिपोर्ट जारी करने में परहेज क्यों कर रही है?
वहीं, भारतीय जनता पार्टी के नेता सुशील कुमार मोदी ने इस मुद्दे पर सफाई दी है कि इस रिपोर्ट में कई खामियां थीं, इसलिए केंद्र ने फ़िलहाल रिपोर्ट जारी नहीं की है। मोदी का आरोप है कि पूर्ववर्ती सरकार ने जाति की जनगणना के काम को गंभीरता से नहीं लिया, जिसका ख़ामियाजा सबको उठाना पड़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि लालू यादव, शरद यादव जैसे नेताओं के दबाव में पूर्व की मनमोहन सरकार ने वर्ष 1931 के बाद पहली बार जातिगत जनगणना के आदेश दिए थे और इसकी रिपोर्ट का हर दल को बेसब्री से इंतजार था।
(इनपुट एजेंसी से भी)