जिस अफसर को 20 साल से ढूंढ रही थी CBI,वह फर्जी प्रोफेसर बन MBBS छात्रों को पढ़ाते हुए पकड़ाया

कहानी फिल्मी है, मगर हकीकत है. सरकार को करोड़ों का चूना लगाकर फरार हुए सीमा शुल्क विभाग के जिस अफसर को सीबीआई पिछले 20 साल से ढूंढ रही थी, वह एक मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के छात्रों को पढ़ा रहा था.

जिस अफसर को 20 साल से ढूंढ रही थी CBI,वह फर्जी प्रोफेसर बन MBBS छात्रों को पढ़ाते हुए पकड़ाया

प्रतीकात्मक तस्वीर.

खास बातें

  • करोड़ों का चूना लगाकर फरार हुआ था अफसर
  • सीबीआई उसको पिछले 20 साल से ढूंढ रही थी
  • वह मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के छात्रों को पढ़ा रहा था
नई दिल्ली:

कहानी फिल्मी है, मगर हकीकत है. सरकार को करोड़ों का चूना लगाकर फरार हुए सीमा शुल्क विभाग के जिस अफसर को सीबीआई पिछले 20 साल से ढूंढ रही थी, वह एक मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के छात्रों को पढ़ा रहा था. यहां भी फर्जीवाड़े की हद पार करते हुए उसने फर्जी डिग्री से प्रोफेसर की नौकरी हासिल कर ली और मेडिकल स्टूडेंट्स को पढ़ाने लगा था. भ्रष्टाचार के मामले में फंसा यह आरोपी पूर्व सीमाशुल्क मूल्यांकक रह चुका है.  वह उत्तर प्रदेश के एक निजी मेडिकल कॉलेज में फर्जी डिग्री पर इंटरनल मेडिसिन प्रोफेसर की नौकरी करते पकड़ा गया. अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. 

दरअसल, अभिनव सिंह छद्म नाम से राजीव गुप्ता के रूप में अकबरपुर, मथुरा के के डी मेडिकल कॉलेज अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में काम कर रहा था. अस्पताल के एक अधिकारी ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर कहा, वह एमबीबीएस छात्रों को इंटरनल मेडिसिन विषय पढ़ा रहा था. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सिंह की हालिया गिरफ्तारी ने छात्रों को दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठाए हैं, जो भविष्य के डॉक्टर होंगे. मुंबई में सीमाशुल्क मूल्याकंक रहा अभिनव सिंह कथित रूप से फर्जी डीईपीबी (ड्यूटी एंटाइटेलमेंट पास बुक) पावती पत्र की पुष्टि करके सीमा शुल्क विभाग को चार करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने के मामले में 29 सितंबर, 1999 को सीबीआई द्वारा नामजद किये जाने के बाद फरार हो गया था.

अधिकारियों ने कहा कि उस पर पांच लाख रुपये की रिश्वत और मारुति ज़ेन कार लेने का भी आरोप है. अभिनव को मुंबई ले जाया गया है, जहां उससे सीबीआई अधिकारियों द्वारा पूछताछ की जा रही है। सूत्रों ने कहा, झांसी निवासी अभिनव ने पूछताछकर्ताओं को बताया कि वह पिछले दो-तीन वर्षों से के डी मेडिकल कॉलेज में कार्यरत था. इससे पहले उसने फरीदाबाद और अन्य शहरों में कई मेडिकल कॉलेजों में काम किया था. 

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