जम्मू-कश्मीर में हिंदुओं के मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में आमने-सामने

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक विभाग के सचिव और जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव की अगुवाई में ज्वाइंट कमेटी का गठन किया गया है लेकिन उसमें जम्मू कश्मीर सरकार बातचीत पर सहमत नहीं है.

जम्मू-कश्मीर में हिंदुओं के मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में आमने-सामने

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो )

नई दिल्ली:

जम्मू-कश्मी  में अल्पसंख्यक हिंदुओं को केंद्रीय और सरकारी योजनाओं के तहत सुविधाएं देने के मामले में केंद्र और राज्य की बीजेपी समर्थित सरकार सुप्रीम कोर्ट में आमने-सामने खड़ी हो गई हैं. केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि पहले जम्मू कश्मीर सरकार ने भरोसा दिया था कि वो इस मुद्दे पर कानून बनाएंगे और राज्य में अल्पसंख्यक आयोग बनाने को तैयार है लेकिन अब कह रहे है कि वक्त आने पर देखेंगे.  केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक विभाग के सचिव और जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव की अगुवाई में ज्वाइंट कमेटी का गठन किया गया है लेकिन उसमें जम्मू कश्मीर सरकार बातचीत पर सहमत नहीं है. वहीं राज्य सरकार के वकील ने कहा कि केंद्र ने बैठक का जो ब्यौरा दिया है वो सही नहीं है. राज्य ने कानून लाने को नहीं बल्कि इस पर उचित वक्त में फैसले की बात की थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर इस मुद्दे पर सरकार का ये रुख है तो कोर्ट खुद ही मेरिट के आधार पर सुनवाई करेगा और मामले की सुनवाई 4 हफ्ते बाद तय कर दी.

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आपको बता दें कि इससे पहले ही सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार और जम्मू कश्मीर सरकार आपस में बैठे और ये तय करें कि क्या जम्मू कश्मीर में मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं या नहीं. इसके तहत उन्हें कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चार हफ्ते में सरकार फैसला ले. इससे पहले याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा था. 

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गौरतलब है कि अंकुर शर्मा की ओर से दी गई याचिका में कहा गया है कि राज्य में हिंदू अल्पसंख्यक हैं और मुस्लिम बहुसंख्यक हैं. इसके बावजूद राज्य में 68 फीसदी मुस्लिमों को ही अल्पसंख्यक के तहत लाभ मिल रहा है जबकि सही में हिंदुओं को ये सुविधाएं मिलनी चाहिए.  याचिका में ये भी कहा गया है कि पिछले 50 साल से राज्य में अल्पसंख्यकों को लेकर कोई गणना नहीं हुई है और ना ही अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया है इसलिए अल्पसंख्यक आयोग भी बनाया जाए.

 


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