यह ख़बर 26 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

1984 के सिख दंगा पीड़ितों को पैसा तो मिला, इंसाफ नहीं

नई दिल्ली:

80 साल की तेज कौर के बेटे को उनके सामने ही दंगाइयों ने मार दिया था। बेटे का सहारा छिन गया, अब बैसाखी पर वह तिलक नगर मुआवजा लेने पहुंची हैं। कहती हैं पांच लाख नहीं, पांच करोड़ मिल जाए, तब भी मेरी जिंदगी का सहारा मेरा बेटा वापस नहीं आ सकता।

मेरे जिंदा रहते मुझे इंसाफ मिलेगा, कहते हुए उनका गलाभर आया। मुआवजा लेने वालों में दलबीर सिंह अपने 11 साल के बेटे के साथ खड़े हैं। जिस वक्त उनके भाई रंजीत सिंह को मारा गया था, दलबीर की उम्र 7 साल थी। भाई को मार दिया गया, पिता को दंगाइयों ने मरा समझकर छोड़ दिया था।

कूड़ा बीनकर दलबीर सिंह ने पिता का इलाज करवाया, पढ़ाई छूट गई। अब ऑटो से अपने परिवार की जिंदगी चलाने की कोशिश कर रहे हैं। वह कहते हैं कि मैं भी अच्छे स्कूल में पढ़ना चाहता था, लेकिन दंगे ने पहले पढ़ाई छुड़वाई फिर नौकरी की जगह ऑटो पकड़ा दिया।

मुआवजा मिलना ठीक है, लेकिन इंसाफ जब तक नहीं मिलता है, दिल पर मरहम नहीं लगेगा। बीजेपी ने जब इस साल दिल्ली के सिख दंगा पीड़ितों को अतिरिक्त पांच लाख रुपये मुआवजा देने की घोषणा की थी।

तब 'आप' पार्टी ने काफी हो-हल्ला मचाया था, खासकर इसकी टाइमिंग को लेकर। अब एक बार फिर आम आदमी पार्टी के नेता मुआवजा बांटे जाने के समय पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि दिल्ली में चुनाव होने वाले हैं, लिहाजा बीजेपी जल्दी में मुआवजा का लॉलीपॉप थमाकर उनका वोट लेना चाहती है।

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दिल्ली में करीब 2633 सिख दंगा पीड़ितों को मुआवजा मिलना है, पर आनन-फानन में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को 17 पीड़ितों को पांच लाख का चेक दिया है। साथ ही दंगा पीड़ितों की समस्या सुलझाने के लिए एक कमेटी का भी गठन किया है। खुद राजनाथ सिंह कहते हैं कि पैसों से सिख दंगा पीड़ितों का दर्द कम होने वाला नहीं है, लेकिन इंसाफ कैसे मिलेगा, क्या ऐसे ही दंगा पीड़ित अदालतों की चौखट का चक्कर काटते बच्चे से बुजुर्ग हो जाएंगे, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।