बहुत बड़ी चुनौती लेकर आया 2020, कहीं इन तीनों चेहरों के बीच पिस न जाए लालू प्रसाद यादव की पार्टी RJD

बिहार में साल 2020 जहां बीजेपी-जेडीयू गठबंधन, नीतीश कुमार का राजनीतिक भविष्य तय होना है तो वहीं मुख्य विपक्षी दल आरजेडी के लिए भी किसी अग्निपरीक्षा से कम साबित नहीं होने वाला है.

बहुत बड़ी चुनौती लेकर आया 2020, कहीं इन तीनों चेहरों के बीच पिस न जाए लालू प्रसाद यादव की पार्टी RJD

खास बातें

  • RJD के सामने हैं बड़ी चुनौतियां
  • परिवार का झगड़ा पार्टी पर हावी
  • नीतीश बनाम तेजस्वी की भी लड़ाई
पटना:

बिहार में साल 2020 जहां बीजेपी-जेडीयू गठबंधन, (BJP-JDU) नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का राजनीतिक भविष्य तय होना है तो वहीं मुख्य विपक्षी दल आरजेडी के लिए भी किसी अग्निपरीक्षा से कम साबित नहीं होने वाला है. साल 2015 में जब आरजेडी ने नीतीश की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था तो बीजेपी उस समय मोदी लहर पर सवार थी. लेकिन बिहार में आरजेडी और जेडीयू के वोटबैंक ने मिलकर बीजेपी को हरा दिया था. इसमें गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल और इसे उस चुनाव में महागठबंधन कहा गया था. लेकिन यहां एक बात और ध्यान देने की है उस चुनाव में नीतीश के साथ-साथ लालू प्रसाद यादव जैसा एक जमीनी नेता था जो अकेले दम पर हवा का रुख का रोकने का माद्दा रखते हैं. महागठबंधन की सरकार बनने के बाद परिस्थितियां धीरे-धीरे बदलने लगीं और लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाला मामले में जेल की सजा हो गई. इसके बाद जमीन घोटाले का आरोप भी लालू के बेटे तेजस्वी और परिवार के सदस्यों को लगा. इधर अपनी छवि को लेकर बेहद सतर्क रहने वाले नीतीश कुमार भी अब इस गठबंधन से खुश नहीं आ रहे थे और उन्होंने तेजस्वी से इस घोटाले पर सफाई देने के लिए कहा. इसके बाद से नीतीश और तेजस्वी में मतभेद बढ़ने लगे.

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कहा तो यह भी जाता है कि सरकारी कामकाज और ट्रांसफर-पोस्टिंग में तक में लालू प्रसाद यादव का दखल बढ़ गया था और नीतीश कुमार इससे भी खुश नहीं थे. इसी बीच नीतीश कुमार पर बीजेपी भी डोरे लगी थी और नीतीश कुमार भी साल 2016 में किए गए पीएम मोदी के नोटबंदी के फैसले की जमकर तारीफ कर रहे थे. फिर एक दिन अचानक रातों-रात नीतीश कुमार ने पाला बदल लिया और मुख्यमंत्री की कुर्सी से इस्तीफा दे दिया और जेडीयू को आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन से अलग कर लिया. इसके बाद बीजेपी के समर्थन से फिर मुख्यमंत्री बन गए. आरजेडी के सामने यहीं से चुनौती शुरू हो गई क्योंकि राजनीति में एक तरह से नौसिखिए तेजस्वी के सामने नीतीश कुमार जैसा बड़ा नेता था तो दूसरी ओर बीजेपी जैसी बड़ी पार्टी का समर्थन. 

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तेजस्वी के सामने एक बड़ी दिक्कत थी यह है कि उनके पास पिता जैसा चमत्कारिक व्यक्तित्व, भदेसपना और भाषण कला नहीं है. लालू प्रसाद के अंदर यही खूबी है. तेजस्वी सीधे घर के आंगन से निकलकर राजनीति में आ गए और लालू प्रसाद जेपी आंदोलन से निकले नेता हैं. जमीन से जुड़े मुद्दों को साथ लेकर कैसे नारेटिव बदला जाता है यह कला तेजस्वी को अभी सीखना बाकी है. लोकसभा चुनाव में हार के बाद एक बार तो ऐसा लगा कि तेजस्वी राजनीति के बियाबान में कहीं खो गए हैं, पटना में आई बाढ़ के दौरान भी जहां पप्पू यादव जैसे नेताओं की तस्वीरें आ रही थीं वहीं तेजस्वी यादव कहीं गायब थे. साल 2019 बीत चुका है, नए साल में तेजस्वी के सामने कई चुनौतियां हैं.

नीतीश बनाम तेजस्वी
पहली बार विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार बनाम तेजस्वी यादव पर लड़ा जाएगा. तेजस्वी पूरे विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार होंगे या आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन पर मात्र इसपर बहस जारी है. तेजस्वी के नेतृत्व पर सबसे बड़ा सवाल है कि उनकी अगुवाई में लोकसभा चुनाव पार्टी की बुरी दुर्गति हुई है और राजनीति में उनकी सक्रियता सिर्फ ट्विटर तक ही सीमित है. 

सीमिति वोट बैंक
बिहार में बीजेपी+जेडीयू+एलजीपी का वोटबैंक आरजेडी और कांग्रेस के वोटबैंक से बहुत ज्यादा है. इसे पाटने के लिए तेजस्वी को एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा. यादव-मुस्लिम के बाद तीसरा वोटबैंक कौन सा वोट है न तेजस्वी को मालूम है और पार्टी के नेता कुछ कह पाने की स्थिति में हैं. बिहार में सबसे निर्णायक वोटर अति पिछड़ा हैं. फ़िलहाल उसका रुझान आरजेडी की तरफ़ नहीं दिखता है. 

लालू प्रसाद यादव की गैर मौजूदगी
जब तक लालू प्रसाद यादव जेल से बाहर नहीं निकलते तब तक आरजेडी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ता नहीं दिखाई देता है. इसलिए देखना यह होगा कि लालू प्रसाद यादव को चुनाव से पहले निकलने में सफल होते हैं या नीतीश कुमार केंद्र सरकार की मदद से चुनाव तक उन्हें बाहर नहीं निकलने नहीं देते.  

सहयोगियों को साथ रखना बड़ी चुनौती
आरजेडी के लिए सबसे मुश्किल है सहयोगियों को साथ रखना. जब से जगदानंद सिंह राज्य आरजेडी के अध्यक्ष हुए हैं उनका भाव यही रहता हैं कि फ़िलहाल उन्हें किसी सहयोगी की ज़रूरत नहीं है. उधर पार्टी के अंदर से भी तेजस्वी यादव को लेकर थोड़ी बेचैनी बढ़ी है.

परिवार का झगड़ा पार्टी पर हावी
बीते एक साल में तेजस्वी और लालू के बड़े बेटे तेज के बीच मतभेद की खबरें हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान भी दोनों भाइयों में टिकट बंटवारे को लेकर गंभीर मतभेद उभरकर सामने आए थे. दूसरी ओर तेज और उनकी पत्नी ऐश्वर्या राय के बीच तलाक मामला लंबित है. परिवार में इस मुद्दे को लेकर उथल-पुथल किसी से छिपी नहीं है और हाल ही में ऐश्वर्य राय ने सास राबड़ी देवी और ननद पर मारपीट का केस दर्ज कराया है और उधर राबड़ी ने भी ऐश्वर्या के घर से आया सारा सामान वापस भिजवा दिया है जो थाने में रखा है. अब घर में जारी कलह के बीच तेजस्वी पार्टी के रोजमर्रा में कामों में कितना ध्यान दे पा रहे हैं इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. 

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