नोटबंदी के दौर में कांग्रेस की 'वोट-बंदी', चंडीगढ़ निकाय चुनाव में बीजेपी की रिकॉर्ड जीत

नोटबंदी के दौर में कांग्रेस की 'वोट-बंदी', चंडीगढ़ निकाय चुनाव में बीजेपी की रिकॉर्ड जीत

बीजेपी कार्यकर्ता इस जीत से काफी उत्साहित हैं....

खास बातें

  • महाराष्ट्र के निकाय चुनावों में भी बीजेपी को मिली थी जीत
  • गुजरात निकाय चुनावों में भी बीजेपी जीती थी
  • 26 में से 20 सीटों पर जीती बीजेपी
नई दिल्ली:

नोट बंदी को लेकर कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष के विरोध का सामना कर रही बीजेपी के लिए चंडीगढ़ से बड़ी रहत भरी खबर आई. पार्टी ने शहर के निकाय चुनाव में जोरदार जीत दर्ज की है.

बीजेपी दफ्तर पर जीत की खुशी में आतिशबाजी की गई, ढोल-नगाड़े गूंजे, लड्डू खाए-खिलाए गए और मालाएं पहनाई गईं. नेता से लेकर बीजेपी कार्यकर्ता तक किसी पर नोट बंदी का कोई असर नजर नहीं आया. नगर निगम चुनाव में बीजेपी को 20 साल बाद इतनी बड़ी जीत हासिल हुई है.

रविवार को शहर के 26 वार्डों के लिए मतदान हुआ था. आज घोषित नतीजे बीजेपी के लिए उम्मीद से बढ़कर रहे. बीजेपी के उम्मीदवार  22 वार्डों में उतारे गए थे जिसमें से 20 सीटों पर पार्टी को जीत हासिल हुई.  शिरोमणि अकाली दल को एक सीट मिली और कांग्रेस  सिर्फ 4 वार्डों में सिमट गई. पिछली बार कांग्रेस के 11 पार्षद थे. एक वार्ड में निर्दलीय उम्मीदवार कामयाब हुआ.

चंडीगढ़ में बीजेपी की जीत की गूंज दिल्ली तक सुनाई दी. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा,' बीजेपी को सपोर्ट करने के लिए चंडीगढ़ के लोगों का शुक्रिया, 8 नवंबर के बाद हर चुनाव में जीत यह बताती है कि लोगों ने नोटबंदी के फैसले को पास कर दिया.'

बीजेपी ने 2014 में लोकसभा सीट जीतने के बाद शहर पर अपनी पकड़ और मजबूत कर ली है.  जीत से अभिभूत चंडीगढ़ की सांसद किरण खेर ने एनडीटीवी से कहा,' मोदी जी की नीतियों को जमीन पर लागू किया है..और जीत सुनिश्चित की.'

वहीं पूर्व सांसद पवन बंसल और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी के बीच खींचतान के चलते टिकटों के बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार तक कांग्रेस खेमों में बंटी रही. इसका खामियाजा उसे शर्मनाक हार से चुकाना पड़ा. पार्टी ने चुनाव आयोग को खत लिखकर वोटों की गिनती में गड़बड़ी की आशंका जताई है.

जीत दर्ज करने वाले प्रमुख उम्मीदवारों में भाजपा के मेयर अरुण सूद और कांग्रेस के देविंदर सिंह बाबला शामिल हैं. चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में कुल 59.54 प्रतिशत मतदान हुआ.

नोटबंदी के बाद भाजपा और कांग्रेस के लिए 26 वार्डों में हुए ये नगर निगम चुनाव उनके प्रदर्शन को आंकने की एक बड़ी कसौटी थे. निर्दलीय 67 उम्मीदवारों सहित कुल 122 उम्मीदवार चुनाव में खड़े हुए थे. वहीं 2,37,374 महिलाओं सहित कुल 5,07,627 मतदाता थे.बेशक, यूपी विधानसभा चुनावों से पहले यह जीत बीजेपी के लिए हौंसला बढ़ाने का काम करेगी.

महाराष्ट्र में 3727 में 893 सीटों पर जीती थी बीजेपी
इससे पहले महाराष्ट्र में हुए नगर निकाय चुनावों में बीजेपी ने 3727 सीटों में से 893 सीटों पर जीत हासिल की थी. नोटबंदी का विरोध करने वाली शिवसेना ने 529 सीटें जीती हैं. बीजेपी ने अपना प्रदर्शन एक तरह से तीन गुना से ज़्यादा बेहतर किया है. 2011 के चुनाव में उसे 298 सीटें मिली थीं लेकिन इस बार 893 सीटें मिली हैं. वहीं शिवसेना ने 2011 के 264 सीटों के मुक़ाबले 529 सीटें जीतकर प्रदर्शन दोगुना बेहतर किया है. कांग्रेस के पास पिछले चुनाव में 771 सीटें थीं, जो घटकर 727 रह गई हैं. एनसीपी के पास 2011 में 916 सीटें थीं, जो घटकर 615 रह गई हैं. इस तरह से देखेंगे तो सबसे अधिक नुकसान एनसीपी को हुआ है और सबसे अधिक फायदा बीजेपी को हुआ है. अगर नोटबंदी कारण है, तो शिवसेना ने भी तो नोटबंदी का विरोध किया है, फिर भी उसकी सीटें डबल हो गईं.
 

laddhu

गुजरात में भी बीजेपी को 126 में से 109 सीटें मिली थीं
27 नवंबर को गुजरात में भी स्थानीय निकायों के उपचुनाव हुए थे. यहां बीजेपी ने 126 में से 109 सीटों पर जीत हासिल की थी. कांग्रेस को सिर्फ 17 सीटें मिलीं. पहले यहां बीजेपी के पास 64 सीटें थीं और कांग्रेस के पास 52 सीटें थीं. इन चुनावों में हार जीत का लोकसभा या विधानसभा के चुनावों पर भले न फर्क पड़ता हो, लेकिन पार्टी के भावी नेता तो यहीं से पैदा होते हैं. कांग्रेस की हालत बताती है कि गुजरात में उसके भीतर नेता बनाने की क्षमता समाप्त हो चुकी है. वापी नगरपालिका उपचुनावों की 44 सीटों में से बीजेपी को 41 सीटें मिली हैं. कांग्रेस को सिर्फ तीन. वैसे यहां हमेशा से बीजेपी का दबदबा रहा है. सूरत-कनकपुर-कंसाड नगरपालिका चुनाव में 28 सीटों में से बीजेपी ने 27 सीटों पर जीत हासिल कीं. कांग्रेस ने सिर्फ़ एक सीट हासिल की. राजकोट में गोंडल तहसील पंचायत के चुनाव में बीजेपी ने 22 में से 18 सीटें हासिल कीं.
(इनपुट्स भाषा से भी)

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