क्या सफल होगा चंद्रयान-2 मिशन? चंद्रमा पर विक्रम लैंडर मिलने के बाद ISRO के पास क्या हैं विकल्प, 12 प्वाइंट् में पढ़ें

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो द्वारा चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का अभियान शनिवार को अपनी तय योजना के मुताबिक पूरा नहीं हो पाया था.

क्या सफल होगा चंद्रयान-2 मिशन? चंद्रमा पर विक्रम लैंडर मिलने के बाद ISRO के पास क्या हैं विकल्प, 12 प्वाइंट् में पढ़ें

इसरो की ‘विक्रम’ मॉड्यूल से संपर्क स्थापित करने के प्रयास जारी हैं.

नई दिल्ली:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख के. सिवन ने रविवार को कहा कि चंद्रयान-2 के लैंडर ‘विक्रम' के चंद्रमा की सतह पर होने का पता चला है. ‘हार्ड लैंडिंग' की वजह से उसे नुकसान पहुंचने के सवाल पर सिवन ने कहा, ‘हमें इस बारे में अभी कुछ नहीं पता.' उन्होंने कहा कि ‘विक्रम' मॉड्यूल से संपर्क स्थापित करने के प्रयास जारी हैं. हालांकि, अभी तक लैंडर से संपर्क नहीं हो पाया है. बता दें, भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो द्वारा चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की ‘सॉफ्ट लैंडिंग' का अभियान शनिवार को अपनी तय योजना के मुताबिक पूरा नहीं हो पाया था. लैंडर को शुक्रवार देर रात लगभग एक बजकर 38 मिनट पर चांद की सतह पर उतारने की प्रक्रिया शुरू की गई, लेकिन चांद पर नीचे की तरफ आते समय 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर जमीनी स्टेशन से इसका संपर्क टूट गया. इसरो के अधिकारियों के मुताबिक चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर पूरी तरह सुरक्षित और सही है. अब पांच प्वाइंट्स में पढ़ें अब तक इसमें क्या-क्या हुआ और आगे क्या-क्या हो सकता है?

  1. इसरो के वैज्ञानिक अभी भी ऑर्बिटर का लैंडर विक्रमी से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं. इसरो के प्रमुख ने भी कहा था कि वह लैंडर से संपर्क करने की कोशिश करते रहेंगे. हालांकि, अभी तक ऑर्बिटर की ओर से जितने भी सिग्लन भेजे गए, उसका कोई जवाब नहीं आया.
  2. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर विक्रम लैंडर से संपर्क स्थापित भी होता है तो वह ज्यादा देर तक नहीं बना रह पा सकता. वहीं दूसरी बात यह है कि लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग नहीं होने की वजह से वह क्रैश हो सकता है.
  3. अंतरिक्ष विशेषज्ञों का कहना है कि इसरो द्वारा रविवार को चंद्रयान-2 के विक्रम मॉड्यूल की स्थिति की जानकारी देना ‘नि:संदेह साबित करता है' कि ऑर्बिटर सही से काम कर रहा है. अंतरिक्ष विशेषज्ञ अजय लेले ने यह जानकारी दी. लेले ने कहा, “लैंडर मॉड्यूल की स्थिति बिना किसी संदेह के साबित करती है कि ऑर्बिटर बिल्कुल सही तरीके से काम कर रहा है. ऑर्बिटर मिशन का मुख्य हिस्सा था क्योंकि इसे एक साल से ज्यादा वक्त तक काम करना है.'
  4. रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के वरिष्ठ शोधार्थी लेले ने यह भी कहा कि यह महज वक्त की बात थी कि ऑर्बिटर विक्रम को कब तक खोज पाता है लेकिन अब सवाल यह है कि लैंडर किस स्थिति में है.
  5. उन्होंने कहा कि ऑर्बिटर के सही ढंग से काम करने से मिशन के 90 से 95 फीसदी लक्ष्य हासिल कर लिए जाएंगे. लेले ने कहा कि ऑर्बिटर के काम करने की नियोजित अवधि एक साल से अधिक की है इसलिए वह डेटा भेजता रहेगा जबिक रोवर केवल एक चंद्रमा दिवस के लिए प्रयोग करने वाला था. एक चंद्रमा दिवस पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. 
  6. इसरो के पूर्व वैज्ञानिक एस नांबी नारायणन ने कहा कि अगली चुनौती लैंडर के साथ संपर्क स्थापित करने की है. उन्होंने कहा कि फिर से संपर्क स्थापित करने की संभावना कम है क्योंकि हो सकता है कि लैंडर ने क्रैश लैंडिंग की है

अब तक कब क्या हुआ?

  1. इसरो ने 22 जुलाई को चंद्रयान-2 ‘बाहुबली' कहे जाने वाले रॉकेट जीएसएलवी-मार्क ... के जरिए प्रक्षेपित किया गया. 15 जुलाई को रॉकेट में तकनीकी खामी का पता चलने के बाद इसका प्रक्षेपण टाल दिया गया था.
  2. 26 जुलाई को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा है कि ‘चंद्रयान 2' को दूसरी बार उसकी कक्षा में आगे बढ़ाया गया है जिससे वह चंद्रमा के और नजदीक पहुंच गया. ऐसा पृथ्वी से निर्देश भेज कर किया गया था.
  3. चार अगस्त को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने ‘चंद्रयान 2' से ली गई पृथ्वी की तस्वीरों का पहला सैट जारी किया. यह तस्वीरें चंद्रयान 2 पर लगे एल 14 कैमरे से ली गई हैं. यह तस्वीरें पृथ्वी को विभिन्न रूपों में दिखाती हैं.
  4. 20 अगस्त को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए चंद्रयान2 को चंद्रमा की कक्षा में मंगलवार को सफलतापूर्वक स्थापित किया. इसरो ने बताया था कि ‘यह पूरी प्रक्रिया 1,738 सेकेंड की थी और इसके साथ ही चंद्रयान2 चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित हो गया.' 
  5. 2 सितंबर को चंद्रयान-2 के ‘विक्रम' लैंडर को ऑर्बिटर से सफलतापूर्वक अलग कर दिया गया.
  6. 7 सितंबर को चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने के भारत के साहसिक कदम को उस वक्त झटका लगा जब चंद्रयान-2 के लैंडर ‘विक्रम' से चांद की सतह से महज 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर संपर्क टूट गया.

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