Chandrayaan 2 : क्‍या है 'विक्रम' लैंडर? चंद्रमा की सतह पर ये कैसे उतरेगा?

अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने 'विक्रम' लैंडर की विस्‍तृत जानकारी एक वीडियो के रूप में अपने ट्विटर पेज पर शेयर किया है.

Chandrayaan 2 : क्‍या है 'विक्रम' लैंडर? चंद्रमा की सतह पर ये कैसे उतरेगा?

इसरो ने 'विक्रम' लैंडर की विस्‍तृत जानकारी एक वीडियो के रूप में अपने ट्विटर पेज पर शेयर किया है.

नई दिल्ली:

‘चंद्रयान-2' के साथ ही भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है, जिन्‍होंने इससे पहले चांद पर अपने यान भेजे हैं. चंद्रयान में जो लैंडर तैनात है उसका नाम 'विक्रम' है. ‘चंद्रयान-2' के लैंडर ‘विक्रम' की चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग' को यान में लगे कम से कम आठ उपकरणों द्वारा अंजाम दिया जाएगा. ‘विक्रम' शनिवार तड़के डेढ़ बजे से ढाई बजे के बीच चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग' करेगा. ‘विक्रम' के अंदर रोवर ‘प्रज्ञान' होगा, जो शनिवार सुबह साढ़े पांच से साढ़े छह बजे के बीच लैंडर के भीतर से बाहर निकलेगा. शनिवार तड़के यान के लैंडर के चांद पर उतरने से पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक वीडियो के माध्यम से समझाया कि ‘सॉफ्ट लैंडिंग' कैसे होगी.

अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने 'विक्रम' लैंडर की विस्‍तृत जानकारी एक वीडियो के रूप में अपने ट्विटर पेज पर शेयर किया है. उस वीडियो में बताया गया है कि चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग' सुनिश्चित करने के लिए मशीन में तीन कैमरे-लैंडर पोजीशन डिटेक्शन कैमरा, लैंडर होरिजोंटल विलोसिटी कैमरा और लैंडर हजार्डस डिटेक्शन एंड अवोयडेंस कैमरा लगे हैं. इसके साथ दो के.ए. बैंड-अल्टीमीटर-1 और अल्टीमीटर-2 हैं. वीडियो में बताया गया है कि लैंडर के चांद की सतह को छूने के साथ ही इसरो चेस्ट, रंभा और इल्सा नाम के तीन उपकरणों की तैनाती करेगा.

भारतीय अंतरिक्ष संगठन इसरो का कहना है कि विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग काफी कठिन कार्य होगा. इसरो के अध्यक्ष के. सिवन ने कहा कि प्रस्तावित ‘सॉफ्ट लैंडिंग' दिलों की धड़कन थाम देने वाली साबित होने जा रही है, क्योंकि इसरो ने ऐसा पहले कभी नहीं किया है. चंद्रयान के चांद पर उतरने की प्रक्रिया को समझाते हुए सिवन ने कहा था कि 30 किलोमीटर की दूरी से चांद पर उतरने की प्रक्रिया शुरू होगी और इसे पूरा होने में 15 मिनट का समय लगेगा. यह समय काफी महत्‍वपूर्ण होगा. लैंडर के चांद पर उतरने के बाद इसके भीतर से रोवर ‘प्रज्ञान' बाहर निकलेगा और एक चंद्र दिवस यानी पृथ्वी के 14 दिनों की अवधि तक अपने वैज्ञानिक कार्यों को अंजाम देगा. 

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