चंद्रमा की कक्षा में 20 अगस्त को पहुंचेगा चंद्रयान-2, बुधवार को शुरू होगी ट्रांस लूनर इंजेक्शन प्रक्रिया

चंद्रयान-2 भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी का अब तक का सबसे जटिल मिशन है, जिस पर 1,000 करोड़ रुपये से कम खर्च हुआ है.

चंद्रमा की कक्षा में 20 अगस्त को पहुंचेगा चंद्रयान-2, बुधवार को शुरू होगी ट्रांस लूनर इंजेक्शन प्रक्रिया

चंद्रयान 7 सितंबर को चांद की सतह पर उतरेगा.

खास बातें

  • 7 सितंबर को चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा चंद्रयान-2
  • दक्षिणी ध्रुव पर चंद्र मिशन को अंजान देने वाला पहला देश होगा भारत
  • चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को GSLV Mk-III रॉकेट लेकर हुआ था रवाना
अहमदाबाद:

भारत के दूसरे चंद्र अभियान चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के 20 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने की संभावना है और सात सितंबर को यह चंद्रमा की सतह पर उतर जाएगा. इस बात की जानकारी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. सिवन ने सोमवार को दी. उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा कि अंतरिक्ष यान दो दिनों बाद पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलना शुरू करेगा. सिवन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक माने जाने वाले डॉ. विक्रम साराभाई की जन्मशती समारोह में हिस्सा लेने अहमदाबाद आए हुए थे. 

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इसरो प्रमुख ने कहा कि 3850 किलोग्राम के चंद्रयान-2 में तीन हिस्से हैं जिसमें एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर है. अभियान के तहत 22 जुलाई को प्रक्षेपण कार्यक्रम के बाद सात सितंबर को यह चंद्रमा की सतह पर पहुंचेगा . उन्होंने कहा, ‘‘22 जुलाई को चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण के बाद हमने पांच बार प्रक्रिया को अंजाम दिया. चंद्रयान-2 का समग्र हिस्सा फिलहाल धरती के इर्द गिर्द घूम रहा है. '' अगली सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया बुधवार सुबह शुरू होगी. उन्होंने कहा, ‘‘14 अगस्त को तड़के साढ़े तीन बजे हम ट्रांस लूनर इंजेक्शन नामक प्रक्रिया शुरू करेंगे. इस प्रक्रिया में चंद्रयान-2 पृथ्वी की कक्षा से बाहर होकर चंद्रमा की ओर बढ़ेगा. इसके बाद 20 अगस्त को हम चंद्रमा की कक्षा में पहुंचेंगे.'' 

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सिवन ने कहा कि फिलहाल अंतरिक्ष यान बहुत अच्छा कर रहा है और इसकी सभी प्रणाली सही से काम कर रही है . उन्होंने कहा कि इसरो में वैज्ञानिक आगामी दिनों में खासकर दिसंबर में काफी व्यस्त होंगे जब अंतरिक्ष एजेंसी छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित करने का अभियान शुरू करेगी.

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बता दें चंद्रयान-2 को चंद्रमा के दक्षिणी हिस्से में उतरना है. यह ऐसा इलाका है, जहां इससे पहले दुनिया के किसी भी देश ने लूनर मिशन को अंजाम नहीं दिया है. साथ ही यह भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी का अब तक का सबसे जटिल मिशन है, जिस पर 1,000 करोड़ रुपये से कम खर्च हुआ है. (इनपुट-भाषा)

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