यह ख़बर 23 फ़रवरी, 2011 को प्रकाशित हुई थी

'दया याचिका का धर्म, जाति या संप्रदाय से कुछ लेना-देना नहीं'

खास बातें

  • चिदंबरम ने कहा कि दया याचिका को राष्ट्रपति के पास भेजते समय धर्म, जाति और संप्रदाय के बारे में नहीं सोचा जाता।
New Delhi:

अफजल गुरु के अल्पसंख्यक समुदाय होने की वजह से उसकी दया याचिका पर फैसले में विलंब के विपक्ष के आरोप पर केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने बुधवार को कहा कि दया याचिका को राष्ट्रपति के पास भेजते समय धर्म, जाति और संप्रदाय के बारे में नहीं सोचा जाता और आदेश का पालन बिना किसी भय या पक्षपात के किया जाता है। दरअसल प्रश्नकाल के दौरान शिवसेना के मनोहर जोशी ने आरोप लगाया कि संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को मौत की सजा सुनाई गई लेकिन उसकी दया याचिका पर फैसला करने में इसलिए विलंब हो रहा है क्योंकि वह अल्पसंख्यक समुदाय का है। इस पर सत्तापक्ष और वाम दलों के सदस्यों ने कड़ी आपत्ति जताई। जोशी की टिप्पणी की निंदा करते हुए चिदंबरम ने कहा कि यह टिप्पणी असंसदीय और अवांछित है। चिदंबरम ने कहा मैं दया याचिकाओं को राष्ट्रपति के पास भेजते समय धर्म, जाति या संप्रदाय के बारे में नहीं सोचता। उन्होंने कहा कि आदेश का पालन बिना किसी भय या पक्षपात के किया जाता है। उन्होंने कहा कि संविधान की धारा 72 के तहत दया याचिकाओं पर फैसला करने की खातिर राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। चिदंबरम ने भाजपा के एसएस अहलूवालिया के पूरक प्रश्न के उत्तर में कहा इस प्रक्रिया में बदलाव का हमें कोई कारण नजर नहीं आता। यह सर्वोच्च संवैधानिक पदाधिकारी के अधिकार के इस्तेमाल का मामला है जो भारत का राष्ट्रपति है। उनके लिए कोई समय सीमा तय करना उचित नहीं होगा। उन्होंने बताया कि मौत की सजा सुनाए जाने की तारीख और दया याचिका दाखिल किए जाने की तारीख के बाद से लंबित सभी मामलों को एक बार फिर राष्ट्रपति के पास भेजा जा रहा है। गृहमंत्री ने बताया कि मई 2009 के बाद उन्होंने ऐसे 13 मामले राष्ट्रपति के पास भेजे थे जिनमें से सात में फैसला आ गया है। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले के तीन दोषियों का मामला भी है जिन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी। दो मामले आतंकवादियों के थे जिन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि सजा में अनावश्यक विलंब नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ऐसा करना सजा में बदलाव का आधार बन सकता है। उन्होंने कहा कि दया याचिकाओं पर फैसले के लिए राष्ट्रपति द्वारा समय लिए जाने के बारे में वह कोई टिप्पणी नहीं कर सकते। उन्होंने बताया कि वर्ष 2004 से 2008 के बीच राष्ट्रपति के पास दया याचिकाओं के 14 मामले भेजे गए थे जिनमें केवल दो में ही फैसला आया था। शेष मामलों को दोबारा उनके पास भेजा जाएगा।


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