Citizenship Bill: 'देश के विभाजन जैसा नरसंहार कहीं नहीं हुआ', जेपी नड्डा के भाषण की 10 बड़ी बातें

नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill) को लेकर आज मोदी सरकार के लिए अग्निपरीक्षा का दिन है.

Citizenship Bill: 'देश के विभाजन जैसा नरसंहार कहीं नहीं हुआ', जेपी नड्डा के भाषण की 10 बड़ी बातें

जेपी नड्डा बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं.

नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill) को लेकर आज मोदी सरकार के लिए अग्निपरीक्षा का दिन है. बिल पर राज्यसभा में चर्चा जारी है. इस दौरान गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने इस बिल को देश के लिए जरूरी बताया. उन्होंने कहा कि दुनियाभर में भारत लोगों को शरण देने के लिए पहचाना जाता है. यह बिल उन अप्रवासी भारतीयों की उम्मीद है जो हमारी ओर आशावादी नजरों से देख रहे हैं. वहीं कांग्रेस सांसद आनंद शर्मा और टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने इस विधेयक (CAB) का पुरजोर विरोध किया. बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इस बिल के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया अदा किया.

बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा के संबोधन की 10 बड़ी बातें

  1. मैं नागरिकता बिल के समर्थन में हूं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई देता हूं. पीएम ने इच्छाशक्ति जताई, जिससे लाखों लोगों को सम्मान मिलेगा. मैं यह नहीं कहना चाहूंगा कि यह समस्या आज की है, यह समस्या आजादी के बाद की है जब देश का विभाजन हुआ. उस दौरान धर्म के आधार पर विभाजन हुआ. सच्चाई यही थी कि धर्म के आधार पर विभाजन हुआ.

  2. इतिहास गवाह है कि दुनिया में ऐसा नरसंहार कहीं नहीं हुआ, जहां लोगों को एक बॉर्डर से दूसरे बॉर्डर जाना और आना पड़ा. ऐसा न कभी हुआ और न कभी देखा गया. रातोंरात अपना बिजनेस और अपना घर छोड़कर लोगों को निकलना पड़ा. देश के अंदर जो लोग लंबे समय से अन्याय के वातावरण में जी रहे थे, उनको सम्मान के साथ जीने का एक रास्ता देने का प्रयास नागरिकता संशोधन बिल के द्वारा किया गया है.

  3. आज जिस बिल की हम बात कर रहे हैं, उसका आधार सिर्फ एक है कि बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में जिन अल्पसंख्यकों की धार्मिक आधार पर प्रताड़ना हुई है और जिन्होंने भारत में शरण ली है, उन्हें नागरिकता दी जाएगी.

  4. नागरिकता संशोधन बिल को लेकर आज जो हम बात कर रहे हैं उसका आधार सिर्फ एक है और वो है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में वो अल्पसंख्यक जो धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हुए हैं, उनको नागरिकता का अधिकार देने का काम है और यह मूल बात है.

  5. देश के हित में कुछ और होता है और राजनीति के हित में कुछ होता है. हम चाहते हैं कि देश के हित में काम करें. पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या कम हुई है, भारत में अल्पसंख्यक फले-फूले. उस समय नेहरू-लियाकत पैक्ट हुआ था, जिसमें इसकी चिंता थी कि दोनों जगह पर अल्पसंख्यकों को संरक्षण मिले लेकिन ऐसा नहीं हुआ. धर्म के आधार पर विभाजन तो हुआ लेकिन पैक्ट सिर्फ कागजों में रह गया, सच्चाई में नहीं रह पाया.

  6. इस नरसंहार के समय उस समय के प्रधानमंत्री ये चाहते थे कि दोनों देशों में अल्पसंख्यकों को सुरक्षा मिले. ये उनकी इच्छा थी लेकिन इच्छा होना और सच्चाई में धरातल पर उतरने में जमीन-आसमान का अंतर होता है.

  7. इस विभाजन की जब बात करते हैं तो हम कह सकते हैं कि उस समय भारत में अल्पसंख्यक मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी थे. पाकिस्तान में उस समय हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी अल्पसंख्यक थे.

  8. नेहरू-लियाकत समझौते के अंतर्गत इस बात की चिंता की गई थी कि दोनों देशों में अल्पसंख्यकों की रक्षा की जाए और उन्हें संभालकर रखा जाए लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि धर्म के आधार पर देश का बंटवारा तो हो गया और यह सिर्फ कागजों में रह गया.

  9. 1970 के भारतीय जनसंघ के एक रेज्यूलेशन में कहा गया था कि भारत के लिए गर्व का विषय है कि देश ने अपने वचन और अल्पसंख्यकों की पूरी रक्षा की है और उन्हें बराबरी के अधिकार दिए हैं. भारत में मुसलमानों की तेजी से बढ़ती जनसंख्या इस बात की साक्षी है.

  10. पाकिस्तान ने भी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के आश्वासन का आदर किया होता तो वहां अल्पसंख्यकों की संख्या 2.5 करोड़ होनी थी, जो घटकर मात्र 90 लाख रह गई है. इस बिल से भारत के किसी भी नागरिक के समानता के अधिकार पर किसी तरह से आंच नहीं आ रही है.