नगर निगमों से पंगा लेकर क्या 'फंस' गए हैं सीएम अरविंद केजरीवाल

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

सफाई कर्मचारियों के एक सप्ताह से चली हड़ताल के बाद पूर्वी दिल्ली धीरे-धीरे कचरे के ढेर में तब्दील हो रही है, लेकिन दिल्ली सरकार और नगर निगम आपस में बैठकर इसका हल खोजने के बजाए एक-दूसरे पर खूब कीचड़ उछाल रहे हैं। दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया कहते हैं कि पूर्वी दिल्ली निगम को आमदनी बढ़ाने का जरिया खोजना पड़ेगा। सरकार फंड नहीं देगी, लेकिन जो नगर निगम किराए की बिल्डिंग में चल रहा हो, तीन साल से किराया नहीं चुकाया गया हो। साल भर में केवल 1 हज़ार करोड़ की आमदनी करती है और 2300 करोड़ का बजट हो।

उसके पास आमदनी का ब्लू प्रिंट इतनी जल्दी तैयार नहीं हो सकता है, लेकिन दिल्ली सरकार की इस सख्ती का खामियाजा खुद उनकी विधानसभा के लोग भुगत रहे हैं। लोग पानी पी-पी कर दोनों ही राजनीतिक पार्टियों को कोस रहे हैं, क्योंकि कूड़े का समाजवाद आम इलाकों से लेकर मयूर विहार फेज-1 जैसे खास इलाकों तक फैल गया है। लोगों को गहरी सांस लेकर नाक बंद करके सड़कों से गुजरना पड़ रहा है। हालांकि आम आदमी पार्टी वाली दिल्ली सरकार इस मसले पर बीजेपी शासित नगर निगम को बदनाम करके सियासी फायदा उठाने की ताक में है तो वहीं बीजेपी दिल्ली सरकार पर फंड नहीं देने का आरोप लगाकर अरविंद केजरीवाल को घेरने की कोशिश में जुटी है।

राजनीतिक शह-मात के इस खेल में अरविंद केजरीवाल का वजीर फंसा नजर आ रहा है, क्योंकि उनकी सरकार के दो महीने के कार्यकाल में एक के बाद एक विवाद खड़े होते रहे हैं। उनकी छवि इससे कोई बेहतर होती नजर नहीं आ रही है, क्योंकि स्थानीय निकायों के फंड से सीधे तौर पर केंद्र सरकार का कोई वास्ता नहीं होता है। ये फंड राज्य सरकार के माध्यम से ही निकायों तक पहुंचता है।

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ऐसे में दिल्ली सरकार का यह तर्क कि केंद्र उन्हें फंड नहीं दे रहा है किसी के गले नहीं उतर रहा है। खुद पूर्वी दिल्ली नगर निगम के मेयर हर्ष मल्होत्रा कहते हैं कि तीन महीने में 164 करोड़ रुपये राज्य सरकार को देना चाहिए, लेकिन अप्रैल में जारी किया जाने वाला 95 करोड़ का फंड अब तक नहीं मिला है। ऐसे में अगर राज्य सरकार अब निगम का फंड जारी करती है तो लोगों को ये सवाल जरूर पूछना चाहिए कि फंड देने के लिए सात दिनों के इस हड़ताल का इंतजार और लोगों को गंदगी के बीच क्यों जीने दिया गया...