महाभियोग पर 25 साल बाद कांग्रेस की भूमिका बदली

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस देने वाली कांग्रेस ने 25 साल पहले सत्ता में रहते हुए ऐसी ही कार्यवाही का विरोध किया था.

महाभियोग पर 25 साल बाद कांग्रेस की भूमिका बदली

सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश के खिलाफ कांग्रेस ने महाभियोग लाने का प्रस्‍ताव दिया

खास बातें

  • कांग्रेस ने 25 साल पहले ऐसी ही कार्यवाही का विरोध किया था
  • मई 1993 में SC के न्यायमूर्ति वी रामास्वामी पर महाभियोग चलाया गया
  • कपिल सिब्बल ने ही लोकसभा में बनाई गई विशेष बार से उनका बचाव किया था
नई दिल्ली:

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस देने वाली कांग्रेस ने 25 साल पहले सत्ता में रहते हुए ऐसी ही कार्यवाही का विरोध किया था. दिलचस्प बात यह है कि पहले तीन मौकों पर उस वक्त महाभियोग प्रस्ताव लाए गए थे जब कांग्रेस केंद्र की सत्ता में थी. मई 1993 में जब पहली बार सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति वी रामास्वामी पर महाभियोग चलाया गया तो वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में कपिल सिब्बल ने ही लोकसभा में बनाई गई विशेष बार से उनका बचाव किया था. 

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कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों द्वारा मतदान से अनुपस्थित रहने की वजह से यह प्रस्ताव गिर गया था. उस वक्त केंद्र में पी वी नरिंह राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी. न्यायमूर्ति रामास्वामी के अलावा वर्ष 2011 में जब कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया तो भी कांग्रेस की ही सरकार थी. 

सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति पी डी दिनाकरण के खिलाफ भी इसी तरह की कार्यवाही में पहली नजर में पर्याप्त सामग्री मिली थी, लेकिन उन्हें पद से हटाने के लिये संसद में कार्यवाही शुरू होने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. कांग्रेस और छह अन्य विपक्षी दलों ने देश के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर ‘कदाचार’ और ‘पद के दुरुपयोग’ का आरोप लगाते हुए शुक्रवार को उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया था.

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राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को महाभियोग का नोटिस देने के बाद इन दलों ने कहा कि ‘संविधान और न्यायपालिका की रक्षा’ के लिए उनको ‘भारी मन से ’ यह कदम उठाना पड़ा है. 
 


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